भारत में मुस्लिम शासन की स्थापना का श्रेय अफगान तुर्कों (Afghan Turks) को जाता है, जो हमलावर के रूप
में यहां आए थे। इस तरह मोहम्मद, तुगलक, खिलजी ने यहां मुस्लिम राज की नींव डाली और अकबर ने इसे
मजबूती दी। इसी बीच दोनों देशों में काफी सांस्कृतिक आदान प्रदान हुए। आ
ज भी भारत में रहन सहन, वेश-भूषा
से लेकर पाकशैली में भी तुर्की का प्रभाव देखा जा सकता है। तुर्की व्यंजन (Turkish cuisine) काफी हद तक
ऑटोमन व्यंजनों (Ottoman cuisine) की विरासत है, जिसे भूमध्यसागरीय (Mediterranean), बाल्कन (Balkan),
मध्य पूर्वी (Middle Eastern), मध्य एशियाई (Central Asian), पूर्वी यूरोपीय (Eastern European) और
अर्मेनियाई व्यंजनों (Armenian cuisines) के संलयन और शोधन के रूप में वर्णित किया जा सकता है।तुर्की
व्यंजनों में मुख्य रूप से बुलगुर (bulgur wheat), चावल, सब्जी, मसाले, मक्का, जैतून का तेल, मछली, मांस,
बैंगन, भरवां डोलमास (stuffed dolmas) और दही का प्रयोग होता है।आश्चर्य की बात नहीं है कि हमारे भोजन में
एक पूर्वी भूमध्यसागरीय प्रभाव है।
कई सारी तुर्की व्यंजनों में बैंगन, तोरी, हरी या लाल शिमला मिर्च, टमाटर और
यहां तक कि प्याज का भी उपयोग किया जाता है जैसे कि डोलमास (dolmas)। वास्तव में डोलमा न केवल
भूमध्य सागर के पूर्वी तट पर मिलते हैं बल्कि भारत के कुछ स्थानों में भी मिलते हैं। तुर्की डिलाइट (Turkish
delight) जो कि यहां की प्रसिद्ध स्थानीय मिठाई की अद्भुत किस्म है उसमें मूल रूप से गुलाब जल या नींबू के
स्वाद वाले स्टार्च और चीनी कन्फेक्शनरी (sugar confectionery) का उपयोग होता हैऔर ये सामग्री भारतीय
मिठाई में भी उपयोग होती है। यदि आप तुर्की के व्यंजनों को चखेंगे तो यही कहेंगे कि यह पूर्व और पश्चिम के
भारतीय संयोजन की तरह लगता है। इसलिये ये तुर्की व्यंजन भारतीय स्वाद के लिए बेहद उपयुक्त माने जाते हैं।
कई भारतीय व्यंजन भी ऐसे है जिनमें तुर्की व्यंजनों से समानताएं पाई जाती है। नई दिल्ली के क्राउन प्लाजा में
एक भोजन उत्सव हुआ था जिनमें यूपी के जौनपुर के व्यंजनों का प्रदर्शन भी किया गया था। यहां पर लखनऊ और
रामपुर के विशिष्ट व्यंजनों को भी गर्मजोशी से प्रदर्शित किया गया था। यहां देखा गया कि आज दुनिया भर में
लखनऊ का क़लिया और कोरमा, रामपुर का तार गोश्त वहां की पहचान माना जाता है। लेकिन जौनपुर जो सबसे
पुरानी सभ्यता रहा है यहां के मशहूर व्यंजनों को जौनपुर के नाम से कोई नहीं जानता। पहले जौनपुर का बैगन का
बना "बदिंजन बुरानी" (badinjan burani) का एक बड़ा नाम हुआ करता था जो जौनपुर की पहचान था लेकिन
आज लोगों को यह नाम कम ही सुनाई देता है।
जौनपुर के खाने की अपनी ही एक पहचान हुआ करती थी जिनका
स्वाद तीखा और जिसमें प्याज ,लहसुन की जगह दही ,छाछ और सुगंधित मसालों के मिश्रण का इस्तेमाल अधिक
होता है, जैसा कि तुर्की व्यंजनों में होता है।जैसा कि हम जानते ही है कि जौनपुर मुसलमानों और हिंदुओं के बीच
उत्कृष्ट सांप्रदायिक संबंधों के लिए जाना जाता था शायद यही वजह है कि बदिंजन बुरानी एक मुस्लिम व्यंजन होने
के बावजूदभी इसमें कई प्रकार की सब्जियों का उपयोग होता है। यह व्यंजन ईरान (Iran) के रास्ते जौनपुर में
आया था। इसमें बैंगन, सरसों का तेल, मेथी दाना, दही, लहसुन, हरी मिर्च, लाल मिर्च, भुना जीरा आदि उपयोग
होता है। यह पारंपरिक व्यंजन देश के विभिन्न हिस्सों में भी बनाई जाती है हालांकि क्षेत्र के आधार में इसमें काफी
भिन्नता पाई जाती है, जैसे कि उड़िया के दही बैगन, पाकिस्तानी दही बैंगन और बंगाली दही बैंगन आदि।
ऐसा ही
एक अन्य व्यंजन है बाबा घनौश (Baba ghanoush),जिसे भी तुर्की व्यंजनों के समान बनाया जाता है।बाबा घनौश
एक प्रसिद्ध आहार है,जो की मध्य पूर्व से आता है। यह पीता ब्रेड (pita bread) या मुख्य भोजन के साथ चटनी
की तरह खाया जाता है। इस शानदार पकवान की मूल सामग्री में भुना हुआ बैंगन, जैतून का तेल, ताहिनी (तिल
का मक्खन का प्रकार),और नींबू का रस बना रहता है। इसे प्याज, टमाटर या अन्य सब्जियों के साथ परोसा जा
सकता है।
यदि हम में लखनऊ, रामपुर और जौनपुर तीन के व्यंजनों की तुलना करें तो पायेंगे इन सभी की शुरुआत शाही
परिवारों से हुई थी, जिसमें जौनपुर सबसे पुराना है। यह 1360 में फिरोज शाह तुगलक द्वारा अपने चचेरे भाई
जौना खां(मुहम्मद बिन तुगलक) की याद में स्थापित किया गया था और एक स्वतंत्र रियासत के रूप में रहा जब
तक सिकंदर लोदी ने इसे दिल्ली सल्तनत में शामिल नहीं किया।लेकिन लखनऊ और रामपुर के व्यंजनों की तुलना
में जौनपुर के व्यंजन लुप्त हो रहे हैं। इस व्यंजन के विशेषज्ञ रसोइयों या बावर्चियों को काम शादियों और अन्य
समारोहों में ही मिलता है, शेष वर्ष के लिए, वे बेरोजगार रहते हैं। इसलिये लोग अपनी भावी पीढ़ी को कला सिखाने
की वजह अन्य व्यापार में लगाना ज्यादा ठीक समझते है, कई लोग तो इसमें कोई भविष्य ना होने की वजह से
इसे सिखना नहीं चाहते हैं। आज ये जौनपुर के कम ज्ञात व्यंजन लुप्त होने की कगार पर हैं। हालांकि आज भी
रामपुर और लखनऊ की लाल रोटी या रोगनी रोटी से बहुत ही अधिक स्वादिष्ट और सेहत के लिए बेहतर जौनपुरी
शीरमाल और ताफतान है। आज भी यीस्ट और ज़ाफ़रान के इस्तेमाल से बनी शीरमाल को बनाने वाले जौनपुर में
हैं। आज आवश्यकता है की वो बावर्ची जो इस सभी व्यंजनों को बनाना जानते हैं उन्हें सामने लाया जाये और
जौनपुर के मशहूर व्यंजनों को लोगों तक पहुंचाया जाये।आज आवश्यकता है विलुप्त होते जा रहे इन स्वादिष्ट
व्यंजनों को एक बार फिर से इनके जानकारों द्वारा जीवित करने की। एक बार जब ये स्वादिष्ट व्यंजन लोगों तक
पहुंच जायेंगे, तो इनका स्वाद ही अपनी खोयी हुयी जौनपुरी पहचान वापस लाने के लिए काफी है।
संदर्भ:
https://bit.ly/3yFfezU
https://bit.ly/3ce2hnp
https://bit.ly/3oQOmbT
https://bit.ly/3vqIk4f
https://bit.ly/3unQCbC
https://bit.ly/3yFM0RC
चित्र संदर्भ
1. तुर्की व्यंजनों की थाल का एक चित्रण (flickr)
2. तुर्की व्यंजनों की थाल का एक चित्रण (flickr)
3. भारतीय और दक्षिण एशियाई व्यंजनों में आमतौर पर उपयोग किए जाने वाले भारतीय मसालों की एक श्रृंखला का चित्रण (wikimedia)