बुद्ध पूर्णिमा विशेष सब कुछ पाकर भी कुछ अधूरा सा लगता है तो निर्वाण और मोक्ष की विधाओं को समझे

जौनपुर

 26-05-2021 07:40 AM
विचार I - धर्म (मिथक / अनुष्ठान)

में कौन हूँ? में क्या हूँ?  मेरा इस धरती पर आने का होने का उद्देश्य क्या है? यह कुछ ऐसे प्रश्न हैं जिनका उत्तर दुनिया के समस्त ज्ञान को समेटने तथा अपार धन इकट्ठा कर लेने के पश्चात भी नहीं मिलता। विश्व में कई लोग इन प्रश्नों के उत्तर बिना जाने आत्म ज्ञान के अभाव में ही मृत्यु को प्राप्त हो गए। इसी अज्ञानता ने बौद्ध धर्म के संस्थापक गौतम बुद्ध को भी विचलित कर दिया था, जिसका उत्तर जानने के उद्देश्य से उन्होंने सांसारिकता और वैभव से भरे जीवन को त्याग कर निर्वाण प्राप्त किया था। निर्वाण क्या है? कब होता है? क्यों ज़रूरी है? और ऐसे ही कई अन्य गूण (गहरे) प्रश्नो के उत्तर जानते हैं।
बौद्ध परंपरा में, निर्वाण(बुझ जाना) को "तीन आग" अथवा "तीन जहर" ( लालच , घृणा (द्वेष) और अज्ञानता) के विलुप्त होने के की स्थिति को कहा गया है।
जब इन तीनो जहर की अग्नि बुझ जाती है तब संसार में पुनः जन्म के चक्रण से मुक्ति मिल जाती है। कई विद्वानों के अनुसार निर्वाण को शून्यता अथवा अनंत की स्थिति को प्राप्त कर लेना है, अर्थात ऐसी स्थिति जहां उत्तर जानने की अपेक्षा आपके प्रश्न ही समाप्त हो गए हो गए हों। यह अवस्था अस्तित्व हीन होने की है।
निर्वाण के परिपेक्ष्य में अक्सर कुछ अन्य व्याख्या भी दी जाती हैं जैसे : "सामाजिकता से मुक्ति" "दुःख की समाप्ति" "इच्छा मुक्ति" आदि। बौद्ध परम्पराओं में दो प्रकार के निर्वाण 1. सोपाधिशेष-निर्वाण (शेष के साथ निर्वाण) 2. परिनिर्वाण अथवा अनुपाधिषेश निर्वाण (शेष रहित निर्वाण, या अंतिम निर्वाण)। मान्यताओं के अनुसार गौतम बुद्ध इन दोनों अवस्थाओं में प्रवेश कर चुके थे। निर्वाण (पुनर्जन्म के चक्र से मुक्ति) को थेरवाद परम्परा का सबसे प्रमुख उद्देश्य माना जाता है। परन्तु महायान परंपरा का सर्वोच्च उद्देश्य बुद्धत्व होता हैं, जहाँ बुद्ध प्राणियों को बौद्ध धर्म की शिक्षा के अनुरूप संसार से मुक्त होने में सहायता करते हैं।
हिन्दू, बौद्ध, जैन तथा सिख धर्मों में कई बार निर्वाण के साथ-साथ मोक्ष जैसे दार्शनिक शब्द का उच्चारण भी किया जाता है। शास्त्रों और पुराणों के आधार पर मोक्ष का मतलब जीवन और मृत्यु की निरंतरता से बाहर हो जाना है। जिसे कई बार "मुक्ति" से भी संबोधित किया जाता है। ऐसा माना जाता है की जीव कर्मों के आधार पर तथा अज्ञानता रुपी अंधकार के कारण बार-बार जन्म लेता है, संसार के दुख सुख भोगता है। अंत में मृत्यु को प्राप्त हो जाता है, तथा पुनः जन्म ले लेता है। अतः मोक्ष पा लेने पर मनुष्य को धरती पर दोबारा जन्म लेने की आवश्यकता नहीं है। वह मुक्ति पा लेता है, वेदों के अनुसार पूर्ण आत्मज्ञान के साथ मोह-माया से रहित होकर अपने शुद्ध ब्रह्म स्वरूप को पा लेना ही मोक्ष है। मोक्ष स्वर्ग-नर्क की कल्पनाओं से भी परे है, अर्थात कर्मों के आधार पर आपको स्वर्ग तथा नरक लोक की प्राप्ति होगी और कर्म के फलों को भोग कर पुनः धरती पर जन्म लेना होगा, तथा फिर से अनेक प्रकार के कष्ट भोगने पड़ेंगे।
परन्तु मोक्ष का अर्थ स्वर्ग तथा नरक की प्रक्रिया से भी बाहर हो जाना है। महायान परंपरा में बुद्ध के तीन प्रमुख लक्ष्यों को निर्धारित किया गया है: (अर्हतशिप, प्रतीक बुद्धत्व, और बुद्धत्व)। हालांकि महायान पाठ लोटस सूत्र में स्वयं के निर्वाण हेतु दूसरे प्राणियों को मुक्त करने में सहायता करना वर्णित है। इसमें बुद्धत्व को प्राप्त करना सर्वोच्च लक्ष्य बताया गया है। महायान बौद्ध धर्म में यह माना जाता है कि मनुष्य के मुक्ति के पथ को अकेले ढूंढना बेहद मुश्किल काम है, इसलिए बुद्ध को लोगो की मुक्ति पाने में सहायता करनी चाहिए। उनका यह मानना है कि "धरती पर हर जीव एक दूसरे से किसी न किसी प्रकार से जुड़े हैं" इस कारण सभी से प्रेम करो, और सभी के निर्वाण के लिए प्रयत्न करना चाहिए। द्वेष भावना से परे होकर मनुष्य ने क्रूर, हत्यारों की भी सहायता करनी चाहिए। हो सकता है की आपका किसी जन्म में उनसे कोई संबंध रहा हो। मोक्ष की परिभाषाएं और उसके प्रति नजरिया धर्मों के अनुसार बदल जाती हैं। जैसे जैन धर्म में श्रद्धा, ज्ञान और चरित्र का पालन करते हुए मोक्ष की प्राप्ति होती है। हिंदू धर्म में मोक्ष का अर्थ है आत्मा द्वारा अपना और परमात्मा का दर्शन करना। बौद्ध धर्म में निर्वाण को ही मोक्ष के समानांतर रखा गया है मोक्ष और निर्वाण बेहद विस्तृत विषय है मोक्ष और निर्वाण को थोड़ा और करीब से जाने -

संदर्भ
https://bit.ly/3ffqxrb
https://bit.ly/3udTLuu
https://bit.ly/3hKjuYY

चित्र संदर्भ
1. काठमांडू नेपाल में रंगीन थंका यंत्र बौद्ध कला का एक चित्रण (unsplash)
2. जीवन के अंतिम क्षणों (निर्वाण) को दर्शाते बुद्ध एएसआई स्मारक का एक चित्रण (wikimedia)
3. एक भावचक्र ("अस्तित्व का पहिया") अस्तित्व के विभिन्न क्षेत्रों को दर्शाता है कि एक संवेदनशील प्राणी का पुनर्जन्म हो सकता है इसका चित्रण (wikimedia)


RECENT POST

  • बैरकपुर छावनी की ऐतिहासिक संपदा के भंडार का अध्ययन है ज़रूरी
    उपनिवेश व विश्वयुद्ध 1780 ईस्वी से 1947 ईस्वी तक

     23-11-2024 09:21 AM


  • आइए जानें, भारतीय शादियों में पगड़ी या सेहरा पहनने का रिवाज़, क्यों है इतना महत्वपूर्ण
    विचार I - धर्म (मिथक / अनुष्ठान)

     22-11-2024 09:18 AM


  • नटूफ़ियन संस्कृति: मानव इतिहास के शुरुआती खानाबदोश
    सभ्यताः 10000 ईसापूर्व से 2000 ईसापूर्व

     21-11-2024 09:24 AM


  • मुनस्यारी: पहली बर्फ़बारी और बर्फ़ीले पहाड़ देखने के लिए सबसे बेहतर जगह
    पर्वत, चोटी व पठार

     20-11-2024 09:24 AM


  • क्या आप जानते हैं, लाल किले में दीवान-ए-आम और दीवान-ए-ख़ास के प्रतीकों का मतलब ?
    वास्तुकला 1 वाह्य भवन

     19-11-2024 09:17 AM


  • भारत की ऊर्जा राजधानी – सोनभद्र, आर्थिक व सांस्कृतिक तौर पर है परिपूर्ण
    आधुनिक राज्य: 1947 से अब तक

     18-11-2024 09:25 AM


  • आइए, अंतर्राष्ट्रीय छात्र दिवस पर देखें, मैसाचुसेट्स इंस्टिट्यूट ऑफ़ टेक्नोलॉजी के चलचित्र
    वास्तुकला 1 वाह्य भवन

     17-11-2024 09:25 AM


  • आइए जानें, कौन से जंगली जानवर, रखते हैं अपने बच्चों का सबसे ज़्यादा ख्याल
    व्यवहारिक

     16-11-2024 09:12 AM


  • आइए जानें, गुरु ग्रंथ साहिब में वर्णित रागों के माध्यम से, इस ग्रंथ की संरचना के बारे में
    विचार I - धर्म (मिथक / अनुष्ठान)

     15-11-2024 09:19 AM


  • भारतीय स्वास्थ्य प्रणाली में, क्या है आर्टिफ़िशियल इंटेलिजेंस और चिकित्सा पर्यटन का भविष्य
    विचार 2 दर्शनशास्त्र, गणित व दवा

     14-11-2024 09:15 AM






  • © - 2017 All content on this website, such as text, graphics, logos, button icons, software, images and its selection, arrangement, presentation & overall design, is the property of Indoeuropeans India Pvt. Ltd. and protected by international copyright laws.

    login_user_id