इस पूरे संसार में जुगनुओ के लगभग 2000 प्रजाति पाए जाते है और उसमे से सिर्फ भारत में 7 प्रजाति पाए जाते है। जुगनू कीटो दुनिया का एक लोक प्रिय जीव माने जाते है; ज्यादातर मानसून के पहले ही जुगनू दिखने की सम्भावना रहती है । अगर आप पहाड़ो पर , जंगलो में , तालाब के किनारे जायेंगे तो आपको जरूर ही जुगनू दिखेंगे। ज्यातर जुनगुओ का आकार ज्यादा बड़ा नहीं होता, वे लगभग 15 MM से 25MM तक के होते है। 2000 से ज्यादा प्रजाति होने के कारण, एक से दूसरे प्रजाति में उनका व्यवहार, चमकने की शैली , रौशनी के रंग इत्यादि परिवर्तित होते रहते है।रोशनी का प्रयोग जुगनू अपने साथी को आकर्षित करने के लिए करते हैं। नर और मादा जुगनुओं से निकलने वाले प्रकाश के रंग, चमक और उनके दिपदिपाने के समय में थोड़ा-सा अंतर होता है। इनमें ख़ासबात यह है कि मादा जुगनू के पंख नहीं होते, इसलिए वे एक स्थान पर ही बैठकर चमकती रहती हैं, जबकि नर जुगनू उड़ते हुए चमकते हैं।
जुगनुओं के चमकने के पीछे उनका मुख्य उद्देश्य अपने साथी को आकर्षित करना, अपने लिए भोजन तलाशना होता है। ये जुगनू आजकल शहरों में कम ही दिखते हैं। इन्हें ग्रामीण इलाकों में बड़ी संख्या में देखा जा सकता है।
वर्ष 1667 में इस चमकने वाले कीट की खोज वैज्ञानिक रॉबर्ट बायल (Robert Boyle) ने की थी। पहले यह माना जाता था कि जुगनुओं के शरीर में फास्फोरस(Phosphorus) होता है, जिसकी वजह से यह चमकते हैं, परंतु इटली के वैज्ञानिकों ने सिद्ध किया कि जुगनू की चमक फास्फोरस से नहीं, बल्कि ल्युसिफेरेस नामक प्रोटीनों के कारण होता है। जुगनू की चमक का रंग हरा, पीला, लाल तरह का होता है। ये ज्यादातर रात में ही चमकते हैं। दिखने में यह एकदम पतले और दो पंख वाले होते हैं। ये जंगलों में पेड़ों की छाल में अपने अंडे देते हैं।
जुगनू की तरह ही चमकने वाले ऐसे कई जीव हैं। जुगनू की तरह ही रोशनी देने वाले जीवों की एक हजार प्रजातियों की खोज की जा चुकी है, जिनमें से कुछ प्रजातियां पृथ्वी के ऊपर और समुद्र की गहराइयों में पाई जाती हैं।
अंटार्टिका को छोड़कर जुगनू पूरे दुनिया में पाए जाते है। ज्यादातर वे उष्णकटिबंधीय क्षेत्र (Tropical Region) में पाए जाते है , और उस हर स्थान पर देखे जा सकते है जहा पर नमीं रहती है जैसे की जंगलो में , तालाबों के किनारे इत्यादि । भारत उष्णकटिबंधीय देश होने के कारण, यहां जुगनू भरपूर मात्रा में पाए जाते है ।
जुगनुओ के शरीर के अंदर लुसिफेरा नामक एक रसायन होता है , जो ऑक्सीजन के साथ क्रिया करता है। क्रिया करने के दौरान लुसिफेरेके नामक उत्प्रेरक मौजूद होता है और उसी के उपस्थिति में ही क्रिया होती है और उस अभिक्रिया में उच्च ऊर्जा का एक यौगिक निकलता है और वह ऊर्जा लाइट (Light) के रूप में बाहर आती है और इस प्रकार हमें जुगनू चमकते हुए दिखते है। इस पूरी प्रक्रिया को बायोलुमणिसेन्स (biolumniscence) कहते है। इस प्रक्रिया का ऑक्सीजन पर निर्भर होने के कारण जुगनुओ का चमक पर पूरा नियंत्रण होता है अर्थात जितनी मात्रा में वे ऑक्सीजन लेते है उसी के अनुसार चमक उत्सर्जित होती है।
हालांकि वन्य जीव यात्रा ने पृथ्वी पर कीटो के दुनिया को तबाह करना शुरू कर दिया। इससे कीटो के पारिस्थिति की तंत्र (Ecosystem) पर गहरा प्रभाव पड़ रहा है, मुंबई से 220 K.M दूर पुरुषवादी (purushawadi) में वार्षिक उत्सव वन्यजीव यात्रियों के लिए आकर्षण का केंद्र बन चूका है और तो और महाराष्ट्र भारत की जुगनू राजधानी के रूप में तेज़ी से उभर रहा है|
पर्यटकों का टोर्च (Flashlight) जुगनुओ को भ्रमित करता है क्योकि वे चमक के माध्यम से ही एक – दूसरे से संवाद करते है और मादा जुगनुओ को आकर्षित करने का काम करते है पर्यटकों का टोर्च (Flashlight) इस क्रिया में दखल पैदा करता है। परन्तु जुगनू सिर्फ आकर्षित करने के अपनी चमक का प्रयोग नहीं करते , वे अपने साथी को ढूढने के लिए कुछ खास रासायनिक पदार्थ भी पैदा करते है। यदि पर्यटक सावधानी न बरते तो इससे जुगनुओ के जीवन चक्र पर बुरा प्रभाव पड़ता है |
सन्दर्भ :-
https://bit.ly/3bmVxD6
https://bit.ly/2SQe8kJ
https://bit.ly/3bFkOsv
चित्र संदर्भ:-
1.जुगनू का एक चित्रण (Wikimedia)
2.जुगनू का एक चित्रण (Pixabay)
3.टॉर्च पकडे व्यक्ति का एक चित्रण (Unsplash)