भोजन अपने आप में कोरोना महामारी के प्रसार के लिए उत्तरदायी नहीं है। विश्व स्वास्थ्य संगठन और विश्व पशु स्वास्थ्य संगठन दोनों के अनुसार, कोरोना महामारी मानव के मानव से संपर्क द्वारा फैलती है, न कि पशुओं और पशु उत्पादों के अंतर्राष्ट्रीय व्यापार से। अभी तक ऐसा कोई सबूत सामने नहीं आया है, जो यह बताता हो, कि लोगों को भोजन से कोरोना हुआ है। पर्यावरण स्वच्छता, व्यक्तिगत स्वच्छता और खाद्य सुरक्षा के लिए जो चीजें या नियम बताये गए हैं, उनके उपयोग से भोजन द्वारा संक्रमण की संभावनाएं और भी कम हो जाती हैं। कोरोना महामारी को रोकने के लिए जो प्रतिबंध लगाए गए हैं, उससे मत्स्य उद्योग और जलीय-जीव उत्पादन की आपूर्ति श्रृंखला के प्रत्येक चरण में बाधा उत्पन्न होने की संभावना है। आपूर्ति श्रृंखला के प्रत्येक चरण की सुरक्षा ही एक ऐसा माध्यम है, जिसके जरिए मछली और मछली उत्पादों की निरंतर उपलब्धता सुनिश्चित की जा सकती है। इस बात के प्रमाण बढ़ रहे हैं, कि यदि मत्स्य पालन द्वारा उत्पादित की गयी मछलियों की बिक्री नहीं हुई, तो जीवित मछलियों का स्तर बढ़ जाएगा। इससे जहां मछलियों को भोजन उपलब्ध कराने की लागत बढ़ जायेगी, वहीं मछली की मृत्यु दर के जोखिम में भी वृद्धि होगी।
कोरोना महामारी से पहले के समय की बात करें तो, 2018 में, वैश्विक मत्स्य उद्योग और जलीय-जीव उत्पादन 1790 लाख टन तक पहुंच गया था। पिछले तीन दशकों से जलीय-जीव उत्पादन,मछली उत्पादन में वृद्धि का मुख्य कारण रहा है, लेकिन वह उद्योग जिसके अंतर्गत मछलियों को सीधे जलीय पारिस्थिति की तंत्र से निकाला जाता है, मछलियों की कई प्रजातियों के लिए प्रमुख है, और घरेलू और अंतर्राष्ट्रीय खाद्य सुरक्षा के लिए महत्वपूर्ण है। लगभग 89 प्रतिशत मछली उत्पादन मानव उपभोग के लिए किया जाता है। विश्व में प्रति व्यक्ति मछली उपभोग की खपत पिछले कुछ दशकों में काफी बढ़ी है। 1960 के दशक में यह 9 किलोग्राम थी, जो कि 2017 में लगभग 20.3 किलोग्राम हुई। 2017 में, मत्स्य पालन और जलीय-जीव उत्पादन क्षेत्र के प्राथमिक क्षेत्र में लगभग 597 लाख लोग कार्यरत थे। इनमें से 404 लाख लोग मत्स्य उद्योग और 193 लाख जलीय-जीव उत्पादन से जुड़े हुए थे। दुनिया भर में, लगभग 2000 लाख लोग प्रत्यक्ष और अप्रत्यक्ष रूप से मूल्य श्रृंखला के साथ कार्यरत हैं। महिलाएं इस कार्यबल में एक महत्वपूर्ण भूमिका निभाती हैं और प्राथमिक क्षेत्र में कार्यरत लगभग 13 प्रतिशत लोगों का प्रतिनिधित्व करती हैं।
बड़े पैमाने पर कार्य करने वाले मछुआरों से लेकर छोटे पैमाने पर काम करने वाले मछुआरों तक, सभी को कोरोना महामारी के प्रसार को रोकने के लिए की गयी तालाबंदी के कारण आर्थिक कठिनाईयों का सामना करना पड़ा है।छोटे पैमाने के मछुआरों की बात करें, तो कई देशों, विशेष रूप से विकासशील देशों में, एक दिन के मछली संग्रह से छोटे पैमाने पर कार्य करने वाले मछुआरों को उस दिन का भोजन मिल पाता है। मछुआरे और इस उद्योग से सम्बंधित लोग (विशेषकर महिलाएँ) आय की हानि, कम मजदूरी और रोग संचार के जोखिम के साथ बड़ी चुनौतियों का सामना कर रहे हैं। तालाबंदी ने समाज के सबसे कमजोर वर्गों की खाद्य और आजीविका सुरक्षा को बुरी तरह से प्रभावित किया है। चूंकि, मछुआरों की आजीविका का बुनियादी ढांचा पूरी तरह से नष्ट हो गया था, इसलिए उन्होंने अपने द्वारा एकत्रित की गयी मछलियों की एक बड़ी संख्या को वापस पानी में फेंक दिया। कुछ मछुआरों ने किसी तरह अपने माल को बेचा लेकिन सामान्य से लगभग आधी कीमत पर। मछुआरों का कहना है, कि सामान्य दिनों में वे छोटी समुद्री मछली को लगभग 70 रुपये प्रति किलोग्राम में बेचते हैं, किंतु कोरोना के कारण वे इसे 38 रुपये प्रति किलोग्राम के हिसाब से बेचने को मजबूर हुए। हालांकि, कई मछुआरे अपने माल को आधे दाम पर भी बेच पाने में सफल नहीं हुए। इसके अलावा किसी प्रकार की स्वास्थ्य सुविधा भी छोटे पैमाने के मछुआरों के लिए उपलब्ध नहीं होती है।
तालाबंदी के प्रभाव से बड़े पैमाने पर कार्य करने वाले मछली उद्योग भी बच नहीं पाए हैं। मछली के बड़े भंडारों को वाहनों या जहाजों में लादने और उतारने के लिए कई लोगों की आवश्यकता होती है। अधिक मात्रा में बर्फ की व्यवस्था करने, भंडारण स्थान, मछलियों को साफ करने आदि के लिए भी कई श्रमिकों की आवश्यकता होती है। चूंकि, लगभग सभी श्रमिकों ने अपने मूल स्थानों की ओर पलायन किया, इसलिए विभिन्न कार्यों का संचालन बाधित हो गया। बड़ी नाव के मालिकों को अपना माल निर्यातक तक पहुंचाना होता है, किंतु निर्यातकों के न होने से माल को बेचना और भी कठिन हो गया। मछलियों के न बिकने से पर्यावरण पर अनावश्यक प्रभाव पड़ता है, क्योंकि मछलियां मारी तो जाती हैं, लेकिन उपभोग नहीं की जाती। इस प्रकार तालाबंदी ने यंत्रीकृत क्षेत्र की पूरी आपूर्ति श्रृंखला को बाधित किया। मछलियों से सम्बंधित उद्योग पहले से ही नुकसान का सामना कर रहा था, लेकिन मछलियों के नुकसान ने अर्थव्यवस्था और कई लोगों की खाद्य सुरक्षा को और भी अधिक बिगाड़ दिया है।भारत के सकल घरेलू उत्पाद में मत्स्य पालन क्षेत्र की हिस्सेदारी 2017-18 में लगभग 1.03% थी, और इसने 175000 करोड़ रुपये का योगदान दिया था। सरकार के अपने अनुमान के अनुसार, यह क्षेत्र प्राथमिक स्तर पर लगभग 160 लाख मछुआरों और मत्स्य पालन करने वाले लोगों को आजीविका प्रदान करता है। इस प्रकार भारत में हुई तालाबंदी के कारण लगभग 160 लाख मछुआरों को अपने रोजगार से हाथ धोना पड़ा है।
तालाबंदी के बाद, सरकार द्वारा 1.7 लाख करोड़ रुपये के राहत पैकेज की घोषणा की गई थी, लेकिन इस राहत पैकेज में पारंपरिक मछली श्रमिक शामिल नहीं थे। कोरोना महामारी ने पूरे समुद्री खाद्य उद्योग को हिला कर रख दिया है। रेस्तरां, होटल और खानपान व्यवसाय के बंद होने से ताजा समुद्री भोजन की मांग घट गई है। परिवहन प्रतिबंधों के कारण आपूर्ति श्रृंखलाओं के बाधित होने से पूरा व्यापार लड़खड़ा गया है।
संदर्भ:
https://bit.ly/3tcrWCm
https://bit.ly/3aUG64J
https://bit.ly/3vD8mkt
https://bit.ly/333LmP9
चित्र संदर्भ:-
1.महिला मछली व्यापारी तथा कोरोना वायरस का एक चित्रण (youtube,unsplash)
2.मछलियों का चित्रण (Wikimedia)
3.मछलियों तथा कोरोना वाइरस का एक चित्रण (istockphoto, Unsplash)