विज्ञान और प्रौद्योगिकी के विकास के साथ वर्तमान समय में ऐसी कई तकनीकें विकसित हो चुकी हैं, जिनका उपयोग पहले कभी संभव नहीं था। ऐसी ही एक तकनीक, डीएनए परीक्षण (Deoxyribo nucleic acid-DNA test) भी है। डीएनए परीक्षण जिसे जेनेटिक (Genetic) परीक्षण भी कहा जाता है, का उपयोग डीएनए अनुक्रम या गुणसूत्र संरचना में परिवर्तन की पहचान करने के लिए किया जाता है, जिससे शरीर में किसी बीमारी के होने की संभावना का भी पता लगाया जा सकता है।
डीएनए परीक्षण के द्वारा व्यक्ति अपने बारे में बहुत कुछ जान सकता है तथा प्राप्त जानकारी के आधार पर अपनी जीवन शैली में सुधार कर सकता है।डीएनए परीक्षण के परिणाम बहुत सटीक होते हैं, इसलिए परिणाम चाहे सकारात्मक हो या नकारात्मक, दोनों ही रूपों में फायदेमंद हैं। उदाहरण के लिए यदि व्यक्ति का परिणाम नकारात्मक आता है, तो उसे कुछ मामलों में स्वास्थ्य की अनावश्यक जांच की जरूरत नहीं पड़ेगी और यदि परिणाम सकारात्मक आता है, तो व्यक्ति के लिए यह जानना आसान हो जायेगा, कि उसे अपनी जीवन शैली में क्या बदलाव करने चाहिए तथा अपने स्वास्थ्य के लिए किस प्रकार के उपचार को अपनाना चाहिए।यदि शुरुआत में ही आनुवंशिक विकारों की पहचान कर ली जाती है, तो उसके उपचार को जल्द ही शुरू किया जा सकता है।वर्तमान समय में डीएनए परीक्षण विभिन्न उद्देश्यों के लिए किया जा रहा है, जिनमें वंश का पता लगाने, वजन और त्वचा आदि की जांच करने आदि के लिए परीक्षण शामिल है। वंशानुक्रम डीएनए परीक्षण की मदद से आप यह पता लगा सकते हैं, कि आपके पूर्वजों की उत्पत्ति कहां और कैसे हुई थी। इस परीक्षण की मदद से परिवार की विभिन्न मूल जानकारियां आसानी से प्राप्त की जा सकती हैं। वजन और त्वचा के लिए किये जाने वाले डीएनए परीक्षण की मदद से त्वचा में मौजूद कोलेजन (Collagen) की गुणवत्ता तथा एंटीऑक्सिडेंट (Antioxidants) के स्तर की सही जानकारी प्राप्त की जा सकती है। प्राप्त जानकारी के आधार पर आप अपने त्वचा की उचित देखभाल कर सकते हैं।
कुछ साल पहले डीएनए परीक्षण के लिए व्यक्ति को चिकित्सीय प्रयोगशाला में जाने की आवश्यकता होती थी, किन्तु अब वह घर बैठे भी अपने डीएनए परीक्षण को करवा सकता है।वर्तमान समय में ऐसी कई कंपनियां हैं, जो अपने ग्राहकों को आनुवंशिक परीक्षण की सुविधा ऑनलाइन (Online) उपलब्ध करवा रही हैं। इस प्रक्रिया में कंपनी अपने ग्राहक को एक परीक्षण किट (Kit) भेजती है। इस किट के माध्यम से ग्राहक अपने डीएनए नमूने को वापस कंपनी को भेजता है।
इसके बाद नमूने में से डीएनए निकाला जाता है, तथा जीन में हुए उत्परिवर्तन और जैविक मार्करों (Biological markers) की जांच के लिए उसे विस्तारित किया जाता है।इस प्रकार परीक्षण के परिणाम को ई-मेल (E-mail) आदि के माध्यम से ग्राहक तक पहुंचाया जाता है। डीएनए परीक्षण के लिए पहले खून के नमूने लिए जाते थे, किंतु अब व्यक्ति की लार, बाल, नाखून इत्यादि के नमूनों का उपयोग भी डीएनए परीक्षण के लिए किया जा रहा है। डीएनए परीक्षण के लिए कई सामान्य संसाधन या होम टेस्ट किट (Home test kit) जैसे,TDNA, AncestryDNA, 23andme आदि इंटरनेट पर उपलब्ध हैं, जिनकी मदद से घर बैठे डीएनए परीक्षण का परिणाम प्राप्त हो जाता है, जिसकी जानकारी को केवल हम तक ही सीमित रखा जाता है।घर बैठे डीएनए परीक्षण करवाने वाले भारतीयों की संख्या निरंतर बढ़ रही है, लेकिन प्राप्त जानकारी को उचित रूप से समझना अत्यंत आवश्यक है।वर्तमान समय में पूरा विश्व कोरोना महामारी की चपेट में है, तथा कई लोग इससे होने वाली बीमारियों से गंभीर रूप से प्रभावित हो रहे हैं। एक अध्ययन के अनुसार अनुमानित 50 प्रतिशत भारतीय जनसंख्या गंभीर कोविड-19 के प्रति कम संवेदनशील है।
अर्थात उन्हें कोविड-19 (COVID-19) से होने वाले रोगों से अन्य देशों की अपेक्षा कम खतरा है।इसका साक्ष्य विभिन्न देशों के बीच मृत्यु दर में मौजूद भिन्नता है, जो कि, 0.2% से लेकर लगभग 15% तक है।संयोग से, अब तक इसका प्रभाव दक्षिणी और भूमध्य रेखा के आस-पास रहने वाले लोगों की तुलना में उत्तरी गोलार्ध के देशों में अधिक स्पष्ट है। कुछ अपवादों के साथ, संक्रमण दर, गंभीरता और मृत्यु दर इटली (Italy), स्पेन (Spain), संयुक्त राज्य अमेरिका (USA), ब्रिटेन (Britain) जैसे अन्य देशों में काफी हद तक दिखाई देती है।जापान (Japan) और जर्मनी (Germany) के शोधकर्ताओं के एक समूह का दावा है, कि ऐसा संभवतः इसलिए है,क्योंकि निएंडरथल (Neanderthals) और आधुनिक मानव के बीच हजारों साल पहले अंतः प्रजनन हुआ था।निएंडरथल, पुरातन मनुष्यों की एक विलुप्त प्रजाति है, जो लगभग 40,000 साल पहले तक यूरेशिया (Eurasia) में रहते थे। पीएनएएस (Proceedings of the National Academy of Sciences USA - PNAS) में प्रकाशित एक अध्ययन के अनुसार, लगभग आधी भारतीय आबादी को 75,000 लंबा डीएनए अनुक्रम निएंडरथल से विरासत में मिला है, जो कोविड-19 से होने वाली गंभीर बीमारियों के जोखिम को कम करने में सहायक है।जापान में ओकिनावा इंस्टीट्यूट ऑफ साइंस एंड टेक्नोलॉजी ग्रेजुएट यूनिवर्सिटी (Okinawa Institute of Science and Technology Graduate University-OIST) और जर्मनी में मैक्स प्लैंक इंस्टीट्यूट फॉर इवोल्यूशनरी बायोलॉजी (Max Planck Institute for Evolutionary Biology) के शोधकर्ताओं द्वारा आयोजित अध्ययन में एक जीन वेरिएंट (Gene variant) की जांच की गयी,जिसमें गंभीर कोविड-19 से संक्रमित होने का जोखिम 22 प्रतिशत कम था। यह वेरिएंट उस वेरिएंट के समान था, जो तीन अलग-अलग निएंडरथल नमूनों में पाया गया था।इसी प्रकार,पिछले साल मैक्स प्लैंक इंस्टीट्यूट फॉर इवोल्यूशनरी एंथ्रोपोलॉजी (Max Planck Institute for Evolutionary Anthropology) के शोधकर्ताओं द्वारा किए गए एक अध्ययन में पाया गया था, कि मानव जीनोम (Genome) का एक भाग जो कोविड-19 के कारण गंभीर बीमारी के खतरे को बढ़ाता है, वह 60,000 साल पहले निएंडरथल से विरासत में मिला था। माना जाता है, कि दक्षिण एशिया (Asia) के 30 प्रतिशत लोग इस जीन अनुक्रम को वहन करते हैं। यह काफी आश्चर्यजनक है, कि 40,000 साल पहले निएंडरथल के विलुप्त होने के बावजूद भी उनकी प्रतिरक्षा प्रणाली आज भी हमें सकारात्मक और नकारात्मक दोनों तरीकों से प्रभावित करती है।
संदर्भ:
https://bit.ly/3aAG4Pk
https://bit.ly/2QYi6GF
https://bit.ly/3xfXHh4
https://bit.ly/32INMCP
https://bit.ly/3xkyYIx
चित्र सन्दर्भ:
1.चार्ल्स आर। नाइट द्वारा ले मॉवेडियर, निएंडरथल्स 1920(wikimedia)