गर्मियों के आते ही, जौनपुर बाजार जमैथा खरबूजे से भर जाता है। जमैथा खरबूज जौनपुर की खास विशेषता है, जिसे उसके छिल्के पे फैली हुई जाल से पहचाना जा सकता है। जमैथा का खरबूजा केवल जौनपुर ही नहीं, बल्कि अन्य अनेकों क्षेत्रों में भी प्रसिद्ध है, जिसका मुख्य कारण इसमें मौजूद मिठास है। खरबूजा मूल रूप से ईरान (Iran), अनातोलिया (Anatolia) और आर्मेनिया (Armenia) का है। भारत में इसे पंजाब, तमिलनाडु, उत्तर प्रदेश, महाराष्ट्र और आंध्र प्रदेश में उगाया जाता है। जहां एक समय में अपने मीठे स्वाद के कारण जौनपुर के जमैथा खरबूज को विशेष रूप से जाना जाता था, वहीं यह धीरे-धीरे अपनी लोकप्रियता खोने लगा है। यहां के खरबूजे में अब न तो वह पहले वाली मिठास बची है, और न ही इसकी बुवाई में किसान कोई खास रुझान ले रहे हैं। पहले जहां पैदावार प्रति बीघे आठ मन हुआ करती थी, वहीं आज यह घटकर आधी पहुंच गई है। इसे उगाने में अब रासायनिक खादों का अधिक से अधिक प्रयोग किया जाता है, जिसकी वजह से यह अपना मीठा स्वाद खोता जा रहा है। पहले यह शानदार फल मई माह के प्रथम सप्ताह से निकलने लगता था, किन्तु समय के साथ यह प्रक्रिया बदलने लगी। अब किसान बुवाई का कार्य अप्रैल से ही आरंभ कर देते हैं, और उत्पादन जून तक प्राप्त हो जाता है। इसके अलावा खेत भी खाली नहीं छोड़े जा रहे हैं और जैविक खादों का उपयोग बहुत कम कर दिया गया है। पहले पशुओं के गोबर व मूत्र को जैविक खाद के रूप में इस्तेमाल किया जाता था, किन्तु अब इन चीजों का अभाव है।
किसानों की आमदनी घटकर 20 से 25 हजार प्रति बीघा आ गई है, जिससे किसानों का रूझान भी इसकी तरफ कम हो चला है। पर्यावरण प्रदूषण के चलते भी खरबूजे की खेती पर बुरा प्रभाव पड़ रहा है। पहले की अपेक्षा उत्पादन में अत्यधिक गिरावट आने लगी है। पहले जहां एक पौधे में 20 फल लगते थे, वहीं अब संख्या आधे से भी कम हो गयी हैं। इसकी बुवाई के लिए सबसे उपयुक्त समय फरवरी के मध्य में होता है। उपयोग के आधार पर इसकी किस्म के बीज को 3-4 मीटर चौड़े बेड (Beds) में लगभग 1.5 सेंटीमीटर गहरा बोना चाहिए। बुवाई के लिए डिबलिंग (Dibbling) विधि और रोपाई विधियों का उपयोग किया जा सकता है। वृद्धि के प्रारंभिक चरण के दौरान बेड को खरपतवार से मुक्त रखें। उचित नियंत्रण उपायों की अनुपस्थिति के कारण खरपतवार 30% की उपज हानि कर सकती है। गर्मी के मौसम में पौधे की हर हफ्ते सिंचाई करनी चाहिए। परिपक्वता के समय जरूरत पड़ने पर ही सिंचाई करनी चाहिए। बेहतर मिठास और स्वाद के लिए, कटाई से 3-6 दिन पहले सिंचाई बंद या कम कर देनी चाहिए। खरबूज गहरी, उपजाऊ और अच्छी तरह से सूखी मिट्टी में वृद्धि करता है। चिकनी बलुई मिट्टी इसके लिए बहुत अच्छी मानी जाती है। एक ही खेत पर एक ही फसल बार-बार उगाने से इसके पोषक तत्वों में कमी आती है, और इसकी पैदावार कम होने लगती है। सामान्यता खरबूजे को केवल गर्मियों के मौसम में ही प्राप्त किया जा सकता था, लेकिन अब ग्रीन हाउसों (Green houses) में हो रही ऊर्ध्वाधर खेती के माध्यम से अब इसे ऑफ सीजन (Off season) में भी उगाया जा सकता है। गुजरात में नवसारी कृषि विश्वविद्यालय (Navsari Agriculture University - NAU) ने इसे सफलतापूर्वक साबित भी किया है। यह सब ग्रीन हाउसों में हो रही ऊर्ध्वाधर खेती के चलन के कारण संभव हुआ है। इस विधि की मदद से उत्तर प्रदेश में भी खरबूजे को ऑफ सीजन उगाया जा सकता है। खरबूज अनेकों पौष्टिक तत्वों से युक्त होता है। इसमें विटामिन A (Vitamin A), विटामिन B, विटामिन C, नियासिन (Niacin), वसा (Fat), फोलिक एसिड (Folic Acid), कोलेस्ट्रॉल (Cholesterol), सोडियम (Sodium), मैग्नीशियम (Magnesium), प्रोटीन (Protein), कार्बोहाइड्रेट (Carbohydrate), फाइबर (Fiber), पोटेशियम (Potassium), पानी, कार्बोहाइड्रेट (Carbohydrates) आदि मौजूद होते हैं। इस फल में मौजूद विटामिन A और C आंतरिक और बाहरी त्वचा के ऊतकों को फिर से बनने में मदद करते हैं। विटामिन C कोलेजन (Collagen) का उत्पादन करता है, जो शरीर की कोशिकाओं को एक साथ बांधे रखने में मदद करता है। यह पाचन तंत्र में मौजूद रक्त वाहिकाओं की भित्तियों को मजबूत करता है और खराब कोशिकाओं और ऊतकों को ठीक करने में मदद करता है। खरबूजे में मौजूद फाइबर भी स्वास्थ्य के लिए अत्यधिक लाभदायक होता है। खरबूजे को सलाद और कस्टर्ड (Custards) के लिए उपयोग किया जा सकता है।
वजन घटाने के लिए भी यह फल लाभकारी है। गर्मियों के दिनों में खुद को तरोताजा और ऊर्जावान करने के लिए इससे बना पेय बहुत लाभकारी है। वर्तमान समय में चल रही कोरोना महामारी ने जहां विभिन्न क्षेत्रों को नुकसान पहुंचाया है, वहीं खरबूज बाजार भी इससे बच नहीं पाया है। इसने किसानों और उपभोक्ताओं दोनों को आहत किया है। कटाई के लिए कोई श्रम उपलब्ध न होने और फसल को बाजार तक ले जाने के लिए कोई परिवहन सुविधा नहीं होने के कारण खरबूजे की उपज खेतों में सड़ गयी तथा किसान इन्हें मुफ्त में बांटने के लिए मजबूर हुए। इसके अलावा सड़ी उपज को खेतों से हटाने के लिए भी किसानों को और अधिक धन और समय खर्च करना पड़ा।
संदर्भ:
https://bit.ly/3wr44xK
https://bit.ly/2QXuAyo
https://bit.ly/2PWAX4J
https://bit.ly/3cPF6k0
https://bit.ly/3sPyDuX
https://bit.ly/3cOohWr
चित्र संदर्भ:
मुख्य चित्र एक प्लेट में खरबूज को दर्शाता है। (विकिमेडिया)
दूसरा चित्र दिखाता है कि खरबूज कैसा दिखता है। (pxhere)
तीसरा चित्र गर्मियों के फल खरबूज को दर्शाता है। (विकिमेडिया)