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पेड़ों और जानवरों की पूजा भारतीय संस्कृति की ऐतिहासिकता का प्रतीक है

जौनपुर

 27-03-2021 10:33 AM
सभ्यताः 10000 ईसापूर्व से 2000 ईसापूर्व
संस्‍कृति जीवन की एक विधि है। जो भोजन हम खाते हैं जो कपड़े हम पहनते हैं, जो भाषा हम बोलते हैं, जिस भगवान की हम पूजा करते हैं वे सभी हमारी संस्‍कृति का हिस्‍सा हैं। सरल शब्‍दों में हम कह सकते हैं कि संस्‍कृति उस विधि का प्रतीक है जिसमें हम सोचते हैं और कार्य करते हैं। इसमें वे चीजें शामिल हैं एक समाज के सदस्‍य के रूप में उत्‍तराधिकार में हमने प्राप्‍त की हैं। कला, संगीत, साहित्‍य, वास्‍तुविज्ञान, शिल्‍पकला, दर्शन, धर्म और विज्ञान सभी संस्‍कृति का हिस्‍सा हैं। विश्‍व के इतिहास को पलटकर देखा जाए तो यहां कई समृद्ध संस्‍कृतियां पैदा हुयीं, फली-फूलीं, उनमें से कई समाप्‍त हो गयी तो कई को अन्‍य संस्‍कृतियों द्वारा प्रतिस्‍थापित कर दिया गया। हालांकि भारतीय संस्‍कृति में स्‍थायित्‍व देखा गया है। बड़े एतिहासिक बदलावों और उतार-चढ़ाव इसके अस्तित्‍व को नहीं मिटा सके।
कुछ बात है कि हस्ती मिटती नहीं हमारी,
सदियों रहा है दुश्मन दौर-ए-जहाँ हमारा।

अतीत वर्तमान में मौजूद है। भारतीय संस्कृति जीवन जीने का सबसे पुराना और निरंतर रूप है जो प्राचीन काल से प्रचलन में है। मुख्य बात जो हम देख सकते हैं वह यह है कि सांस्कृतिक प्रवृत्तियों में कोई विराम नहीं आया है। पुराने समय की प्रथा अभी भी यथावत मौजूद है। जैसे सिंधु घाटी सभ्यता के समय से पेड़ों और जानवरों की पूजा अभी भी की जाती है। भारतीय समाज में अन्य संस्कृतियों के प्रति अनुकूलन और उनकी प्रथाओं को सरलता से अपनाने की क्षमता देखी गई है। इन विशेषताओं ने भारतीय समाज को अपनी सं‍स्‍कृतियों में समाहित करने योग्‍य बनाया है और यह आज भी अपने मूल मूल्यों को पकड़े हुए है। भारतीय समाज की सांस्कृतिक प्रथाओं ने इस्लामी प्रथाओं का समावेशन इसका प्रत्‍यक्ष उदाहरण है। भारत के पश्चिम में स्थित विभिन्न मुस्लिम राष्ट्र इसे हिंद या हिंदुस्तान के रूप में कहना पसंद करते हैं। भारतीय समाज बदलते रुझानों को अपनाने में सफल रहा है। इसने समाज को अपनी नींव खोये बिना आधुनिकीकरण को अपनाने की अनुमति दी है। भारतीय समाज में ऐसी प्रवृत्तियों का अनुसरण किया जाता है जो किसी धर्म विशेष से नहीं जुड़ी हैं। इन प्रथाओं को अन्य धर्मों में भी शामिल किया गया है और उन्हें सह-अस्तित्व के लिए जगह प्रदान की गई है। भारतीय संस्‍कृति को समृद्ध बनाने में इसकी विविधता का विशेष योगदान रहा है।
हड़प्‍पा सभ्‍यता से मिले साक्ष्‍यों से हमें तत्‍कालीन संस्‍कृति का पता चलता है, जिसका स्‍वरूप आज भी हमारी संस्‍कृति में झलकता है। इसी तरह, वैदिक, बौद्ध, जैन और कई अन्य परंपराओं का पालन आज भी किया जाता है। हमारे इतिहास कई उतार-चढ़ाव के दौर से गुजरा है, जिसके परिणामस्वरूप, कई आंदोलन हुए और कई समाज सुधार लाए गए। छठी शताब्दी ईसा पूर्व में जैन धर्म और बौद्ध धर्म वैदिक धर्म में एक सुधार आन्‍दोलन के रूप में उभरा उसी प्रकार आधुनिक भारत में अठारहवीं और उन्नीसवीं शताब्दी में धार्मिक और सामाजिक जागृति हुतु कई आन्‍दोलन हुए। जब भारतीय विचारों और प्रथाओं में क्रांतिकारी बदलाव लाए गए। प्राचीन काल से ही दूर-दूर के लोग भारत आकर बसते रहे हैं। जिनमें ईरानी (Iranian), यूनानी (Greek), कुषाण, शक, हूण, अरब, तुर्क, मुगल और यूरोपीय (European) जैसे विभिन्न जातीय समूह शामिल हैं, ये सभी अपने साथ अपनी संस्‍कृति को भी लाए, इसके बावजूद भारतीय संस्कृति ने अपना पृथक अस्तित्व बनाए रखा और नवागत संस्कृतियों की अच्छी बातों को उदारतापूर्वक ग्रहण किया। आज हम भाषा, खानपान, पहनावे, कला, संगीत आदि हर तरह से गंगा-जमुनी तहजीब या यूँ कहें कि वैश्विक संस्कृति के नमूने हैं।
भारतीय संस्कृति का रूप इसकी भोगोलिक स्थिति के समान ही भिन्‍न-भिन्‍न है। यहां पर अनेक धर्म हैं जिनकी संस्‍कृतियां अलग-अलग हैं। केरल के लोग नारियल तेल का उपयोग करते हैं जबकि उत्तर प्रदेश के लोग सरसों के तेल का उपयोग खाना पकाने के लिए करते हैं। ऐसा इसलिए है क्योंकि केरल एक तटीय राज्य है और यहां नारियल खूब होता है जबकि उत्तर प्रदेश एक मैदानी क्षेत्र है जो सरसों के विकास के लिए अनुकूल है। प्रत्येक क्षेत्र में अपनी क्षेत्रीय संस्कृति है। अलग-अलग नृत्य रूप हैं, अलग पहनावा और पकवान हैं। दुनिया के आठ महान धर्मों से संबंधित लोग भारत में सामंजस्यपूर्ण तरीके से रहते हैं। यहां वास्तुकला, मूर्तिकला और चित्रकला की कई शैलियों का विकास हुआ है। देश में लोक और शास्त्रीय दोनों तरह के संगीत और नृत्य की विभिन्न शैलियाँ मौजूद हैं। इसके साथ कई त्योहार और रीति-रिवाज भी हैं। पंजाब के भांगड़ा नृत्य, तमिलनाडु के पोंगल, असम के बिहू नृत्य में क्या समानता है? सभी फसलों के प्रचुर उत्‍पादन के बाद मनाए जाते हैं।
भारत की आध्‍यात्‍मिक संस्‍कृति का अनुसरण विभिन्‍न गुरूओं द्वारा किया जाता है। भारत में हिंदू के अलावा ईसाई और इस्लामी संस्कृति हैं। यह संस्‍कृतियां पीढ़ी दर पीढ़ी हस्‍तांतरित की जा रही हैं, हालांकि समय के साथ इनके स्‍वरूप में परिवर्तन आया है किंतु इनकी नींव एतिहासिक ही है। भारतीय समाज वसुधैव कुटुम्बकम के सिद्धांत पर आधारित है जिसका अर्थ है "दुनिया एक परिवार है" जो भारत की भौतिक विशेषताओं और सांस्कृतिक पैटर्न की अंतहीन किस्मों में परिलक्षित होता है। भारतीय समाज व्यक्ति को ब्रह्मांडीय शक्ति का केंद्र मानता है। यह समाज की जरूरतों के साथ व्यक्तिगत जरूरतों को संतुलित करने की कोशिश करता है। भारत में धर्म, भाषा, संस्कृति आदि में विविधता है लेकिन इतिहास और उद्देश्य उन्हें एक साथ लाता है। प्रेम, भाईचारे और शांति के मूल्यों का हमारी संस्कृति में गहरा प्रभाव है। हिन्‍दू नाम सिंधू नदी के कारण सदियों पहले पड़ा जो आज भी प्रचलित है यह नाम मध्‍य एशिया और पश्चिमी लोगों द्वारा दिया गया था।
इस विस्तृत विविधता ने भारतीय संस्कृति को एक ही समय में समग्र और समृद्ध और सुंदर दोनों बना दिया है। हमारी संस्कृति में इतनी विविधता क्यों है? इसके लिए कई कारण हैं। देश की विशालता और इसकी भौतिक और जलवायु विशेषताओं में भिन्नता विविधता का एक स्पष्ट कारण है। हमारी संस्कृति में विविधता का दूसरा महत्वपूर्ण कारण विभिन्न जातीय समूहों के बीच परस्पर संबंध है। अन्य संस्कृतियों से संबंधित लोगों ने अपनी सांस्कृतिक आदतों, और विचारों को लाया, जो मौजूदा संस्कृति में समामेलित हो गया। आपको यह जानकर आश्चर्य होगा कि सलवार, कुर्ता, जैसे सिले हुए कपड़े कुषाण, शक और पार्थियन द्वारा भारत लाए गए थे। इससे पहले भारतीयों द्वारा जो कपड़े पहने जाते थे बिना सिले हुए थे।
इस प्रकार, हम यह तर्क दे सकते हैं कि भारत न केवल इन मूल्यों को बनाए रखने में सफल रहा है, बल्कि भारतीय समाज ने अपनी पहचान बनाए रखने के लिए किसी भी अन्य समाज की तुलना में बेहतर प्रदर्शन किया है, जबकि कई विदेशी संस्कृतियों ने स्थानीय संस्कृति को भंग करने की चेतावनी दी है। लेकिन आधुनिक समय में हम अपनी संस्कृति का क्रमिक क्षरण देख सकते हैं क्योंकि इन दिनों कई लोग आधुनिकीकरण और पश्चिमीकरण के बीच भ्रमित हो रहे हैं। भारतीयों ने गणित व खगोल विज्ञान पर प्रामाणिक व आधारभूत खोज की। शून्य का आविष्कार, पाई का शुद्धतम मान, सौरमंडल पर सटीक विवरण आदि का आधार भारत में ही तैयार हुआ। शरतरंज और सांप सीढ़ी जैसे खेलों का आविष्‍कार भारत में सदियों पहले हुआ और आज भी लोकप्रिय खेल है। तात्कालिक कुछ नकारात्मक घटनाओं व प्रभावों ने जो धुंध हमारी सांस्कृतिक जीवन-शैली पर आरोपित की है, उसे सावधानी पूर्वक हटाना होगा। आज आवश्यकता है कि हम अतीत की सांस्कृतिक धरोहर को सहेजें और सवारें तथा उसकी मजबूत आधारशिला पर खड़े होकर नए मूल्यों व नई संस्कृति को निर्मित एवं विकसित करें।

संदर्भ:
https://bit.ly/3vsnySb
https://bit.ly/2OYjh8l
https://bit.ly/3eIjneZ
https://bit.ly/2Os5ZB7
https://bit.ly/3qLqlSQ

चित्र संदर्भ:
मुख्य चित्र में पेड़ों की पूजा करते हुए दिखाया गया है। (kamat.com)
दूसरी तस्वीर में इंडस वैली सभ्यता की पूजा को दिखाया गया है। (फ़्लिकर)
तीसरी तस्वीर में जौनपुर मंदिर के साथ पेड़ दिखाया गया है। (प्रारंग)


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