हिंदू धर्म मात्र एक धर्म नहीं है बल्कि इसमें अनेकों उप-धर्मों का समावेश है जो मुख्य रूप से किसी विशिष्ट मान्यता पर आधारित होते हैं या किसी ईश्वर विशेष की आराधना से संबंधित होते हैं। शैव धर्म ऐसे ही धर्मों में से एक है। जैसा कि शैव नाम से ही ज्ञात होता है कि यह भगवान शिव से संबंधित है। हिंदू धर्म के सर्वशक्तिमान त्रिदेवों में से एक शिव जिनकी कल्पना हम कैलाश पर्वत पर ध्यान की मुद्रा में बैठे हुए करते हैं। सुंदर नगरी, रत्न-आभूषण से जड़ें वस्त्रों आदि भौतिक सुखों के विपरीत भगवान शिव जिनका वर्णन हिंदू धर्म में हाथ में त्रिशूल और कमंडल, त्रिशूल में डमरू, कंठ में सर्प, तन पर पशु की खाल पहने एक जटाधारी योगी के रूप में किया गया है। मस्तक पर शोभित तीसरी आँख सदैव बंद रहती है। किंतु जब-जब संसार में बुराई का प्रकोप बड़ता है तब शिव के क्रोध की अग्नि उनकी तीसरी आँख से होकर पापियों का नाश करती है। ऐसा माना जाता है कि शिव की क्रोधाग्नि से बचना असंभव है। यही कारण है कि भगवान शिव को मृत्यु या मुक्ति का देव भी कहा जाता है।
शिव एक संस्कृत शब्द है जिसका अर्थ है दयालु, मिलनसार, कृपालु या शुभ। शिव शब्द का तात्पर्य "मुक्ति” भी है। शिव शब्द का उपयोग ऋग्वेद में रुद्र सहित कई ऋग्वैदिक देवताओं के लिए एक विशेषण के रूप में किया गया है। शैववाद में विभिन्न दार्शनिक विद्यालयों के अलावा नंदवाद और द्वैतवादी एक विशाल मिश्रित विद्यालय का साहित्य शामिल है।
शैव धर्म भारत में दूसरा सबसे बड़ा धार्मिक समुदाय है। यह धर्म मुख्यत: योग, तप और साधना से जुड़ा हुआ है। इस धर्म में वेदों और आगम ग्रंथों का विशेष महत्व है। हिंदू धर्म में शिव को नृत्य और नाटकीय कला का ईश्वर भी कहा जाता है। शिव के नृत्य रूप को नटराज के रूप में पूजा जाता है। भारत के भरतनाट्यम और छाऊ जैसे प्रदर्शन कला और शास्त्रीय नृत्यों में नटराज का विशेष महत्व है। बादामी गुफा मंदिरों, एलोरा गुफाओं, खजुराहो, चिदंबरम आदि शिव मंदिरों में शिव का यह स्वरूप देखने को मिलता है। पूर्व इस्लामिक धर्म में, शैव और बौद्ध धर्म को बहुत करीबी और संबद्ध धर्म माना जाता था, हालांकि वे समान धर्म नहीं थे किंतु इन धर्मों के विचारों में कुछ-कुछ समानताएँ थी। अफगानिस्तान (Afganistan) में बौद्ध धर्म के साथ शैव धर्म को अपनाया गया। जहाँ सिक्के के एक ओर शिव तथा दूसरी ओर बुद्ध को दर्शाया गया था। ईरान (Iran) और इराक (Iraq) में भी शैव धर्म की उपस्थिति के प्रमाण मिले हैं। ऐसा माना जाता है कि मक्का में भी शिव की बहुमुखी प्रतिमा मौजूद है।
शैव धर्म की उत्पत्ति के विषय में आज भी विद्वानों के बीच मतभेद है परंतु ऐसा कहा जाता है कि ईशा पूर्व पिछली शताब्दियों में आर्यन पंथ की परंपराओं के मिश्रण और हिंदू धर्म के संस्कृतकरण की प्रक्रिया के साथ शैववाद का आरम्भ हुआ। जिसमें रुद्र और अन्य वैदिक देवताओं का वास था। तत्पश्चात वैदिक-ब्राह्मणवादी विचारधारा में गैर-वैदिक शिव-परंपराओं को शामिल किया गया। भारतीय राज्यों के बाद इस परंपरा का प्रसार धीरे-धीरे दक्षिण-पूर्व एशिया में इंडोनेशिया (Indonesia) के प्रमुख द्वीपों जैसे सुमात्रा (Sumatra), जावा (Java) और बाली (Bali) के साथ-साथ कंबोडिया (Cambodia), थाईलैंड (Thailand) और वियतनाम (Vietnam) में हुआ। जहाँ हजारों की संख्या में शैव मंदिरों का निर्माण किया गया। साथ ही शिव की आराधना भारत (India), श्रीलंका (Sri Lanka) और नेपाल (Nepal) में व्यापक रूप से अखिल हिंदू परंपराओं के रूप में हुई। कई शैव जन भगवान शिव और माता शक्ति दोनों की पूजा करते हैं। इंडोनेशिया के शैववाद में, शिव का लोकप्रिय नाम भट्टारा गुरु है, जो संस्कृत भट्टारक से लिया गया है, जिसका अर्थ होता है "महान स्वामी" जिन्हें योग के देवता के रूप में पूजा जाता है। साथ ही माता दुर्गा को उमा, श्री, काली आदि नामों के साथ भट्टारा गुरु अर्थात शिव की पत्नी के रूप में पूजा जाता है।
आज से 2500-2 ईसा पूर्व सिंधु घाटी सभ्यता के प्राप्त पुरातात्विक अवशेषों जैसे पशुपति मुहर इत्यादि से यह पता चला है कि उस समय लोग किसी देवता की पूजा करते थे जो ध्यान की मुद्रा में बैठे हुए हैं और कुछ-कुछ भगवान शिव की तरह दिखाई देते हैं। ईसा पूर्व चौथी शताब्दी के बारे में भगवद गीता से पहले रचित श्वेताश्वतर उपनिषद में शैव के अस्तित्व का वर्णन एक अद्वैतवादी संरचना से सम्बंधित है और इसमें शिव, रुद्र, महेश्वर, गुरु, भक्ति, योग, आत्मान, ब्रह्म और आत्म-ज्ञान जैसे तत्वों का वर्णन किया गया है। अधिक सामान्य शैव सिद्धान्त का वर्णन सिवा सिद्धांता, श्रीदांता में मिलता है। यह वे ग्रंथ हैं जो समकालीन युग में बच गए थे और आज भी इन्हें संरक्षित किया गया है।
दक्षिण भारत, प्राचीन और मध्यकालीन भारत से संरक्षित किए हुए शैव धर्म से संबंधित कई पांडुलिपियों के संरक्षण केंद्रों में से एक है जो नेपाल और कश्मीर में फैले हिमालय क्षेत्र के साथ जुड़े हुए हैं। शुरुआती 1 सहस्राब्दी सीई में यहीं से शैव धर्म दक्षिण-पूर्व एशिया (Southeast Asia) में फैला। इन क्षेत्रों में हिंदू कलाओं, मंदिर वास्तुकला और व्यापारियों का भी प्रसार हुआ था। इसके अलावा आज भी तमिलनाडु, केरल, आंध्र प्रदेश और कर्नाटक के कुछ हिस्सों में कई ऐतिहासिक शैव मंदिर स्थित हैं।
कश्मीर शैववाद एक स्कूली शिक्षा पद्धति है और द्वैतवादी शैव सिद्धान्त मध्ययुगीन कश्मीर से चला आ रहा है। 10 वीं शताब्दी के विद्वान उत्पलदेव और 11 वीं शताब्दी के अभिनवगुप्त और क्षेमराज ने व्यापक ग्रंथों के माध्यम से शैव धर्मशास्त्र और दर्शन के अद्वैत (अद्वैतवाद) ढांचे की स्थापना की। कश्मीर शैववाद में विशेष रूप से शक्तिवाद, वैष्णववाद और वज्रयान बौद्ध धर्म के व्यापक विचारों का समावेश था।
पूरे भारत में हर साल शिवरात्रि का त्यौहार बड़ी धूम-धाम से मनाया जाता है। लाखों की संख्या में श्रद्धालु शिव मंदिर में जाकर पूजा-अर्चना करते हैं। उत्तर प्रदेश राज्य के जौनपुर शहर में स्थित त्रिलोचन महादेव मंदिर में भी श्रद्धालु शिवलिंग का जलाभिषेक करते हैं और फल-फूल, बेलपत्र, गन्ना, बेर, धतूरा आदि अर्पण करते हैं। साथ ही महादेव राजेपुर, करशूल लाथ, मेहरवा महादेव मछलीशर, पांचों शिवाला, सर्वेश्वर नाथ कृशि परिसर, मैहर देवी, हनुमान मंदिर कोतवाली चौराहा के मंदिरों में भी भक्तों की भीड़ लगी रहता है। इस मौके पर मंदिर के बाहर कई दुकानें साजो-सामान से भरी रहती हैं। जहाँ बच्चे गुब्बारे और खिलौने खरीदते हैं और महिलाएँ चूडीयों और अन्य सामानों की खूब खरीददारी करती नज़र आती हैं।
संदर्भ:
https://bit.ly/2OhBn57
https://bit.ly/3ry6ibG
https://bit.ly/30rVcJz
https://bit.ly/3ryV4np
जौनपुर-
मुख्य चित्र त्रिलोचन महादेव मंदिर को दर्शाता है। (यूट्यूब)
दूसरी तस्वीर में एक विशाल शिवलिंग दिखाया गया है। (फ़्लिकर)
तीसरी तस्वीर में नटराज को दिखाया गया है। (फ़्लिकर)