हमारे देश के कई क्षेत्रों में विभिन्न समुदाय के लोग वर्षों से स्वतंत्रतापूर्वक निवास करते आए हैं। जिनकी पहचान उनके भिन्न-भिन्न कला-संस्कृति, वेश-भूषा, भाषा, खान-पान व रहन-सहन से की जा सकती है। कई जनजातियाँ आज भी अपनी प्राचीन सभ्यता और परंपरा को जीवित रखे हुए है। अधिकतर मध्य प्रदेश और छत्तीसगढ़ राज्य में रहने वाला गोंड समुदाय ऐसी ही जनजातियों में से एक है। मध्य प्रदेश भारत का दूसरा सबसे बड़ा राज्य है जो अपने वन्यजीव अभयारण्यों, विरासत स्थलों और राष्ट्रीय उद्यानों के कारण पर्यटन के मुख्य स्थलों में से एक है। जिन्हें यूनेस्को (UNESCO) की विश्व धरोवरों की सूची में शामिल किया गया है। साथ ही मध्य प्रदेश दुनिया के सबसे बड़े आदिवासी समूहों के निवास स्थानों में से एक है। इस राज्य में गोंड आदिवासी समुदाय की लगभग चालीस लाख की आबादी रहती है।
एस-67 (S-67) पंचशील पार्क, नई दिल्ली के बेसमेंट (Basement) में स्थित आर्ट गैलरी (Art Gallery) गोंड जनजाति की कलाकृतियों को संरक्षित किए हुए है। गोंड चित्रकारी में विशेष रूप से डॉट्स (Dots) और डैश (Dash) को जोड़कर मछली, पेड़, पत्ते, जानवरों और मानव की अंडाकार आकृतियां या पैटर्न (Patterns) बनाए जाते हैं। लेकिन 1980 के दशक तक, गोंड कला अपने समुदाय तक ही सीमित थी जिसका इस्तेमाल केवल अपने घरों को सजाने के लिए किया जाता था। बाहरी दुनिया में जिसका उद्भव कुछ दशकों पूर्व ही हुआ। फिर, यह शैली भारत में मुगल शासन और उसके बाद ब्रिटिश शासन के दौरान लुप्त हो गई। किंतु बाद में वर्ष 1980 में भोपाल के एक कला भवन जिसका नाम भारत भवन था, के प्रमुख जगदीश स्वामीनाथन ने एक गोंड कलाकार जंगगढ़ सिंह श्याम का परिचय दुनिया से करवाया। जंगगढ़ सिंह श्याम पाटनगढ़ के रहने वाले थे। यह ऐसा स्थान माना जाता है जहाँ घर-घर में एक कलाकार अवश्य मिलता है। 1989 में, उनकी चित्रकारी को पेरिस (Paris) में ‘मैजिकिएन्स डी ला टेरे’ (Magiciens de la Terre) प्रदर्शनी में प्रदर्शित किया गया था।
गोंड जनजाति द्वारा बनाई गई कलाकृतियाँ और चित्रकारी आज भी विश्वभर में लोकप्रिय है। गोंड पारंपरिक चित्र जो दस साल पहले तक मात्र 150 से 200 रुपये में बिकते थे आज उनकी कीमत 2000 से 5000 तक हो गई है। इस लोकप्रियता का श्रेय मुख्य रूप से इंटरनेट (Internet) और ई-कोमर्स प्लेटफॉर्म (E-Commerce Platforms) को जाता है। जिसकी सहायता से गोंड समुदाय द्वारा बनाई गई सुंदर चित्रकारी दुनिया के कोने-कोने तक आसानी से पहुँचाई जाती है। इस कला को ऊँचाइयों तक पहुँचाने वाले कलाकारों में कुछ नाम प्रसिद्ध हैं जैसे राजेंद्र श्याम, 39, जिन्होंने 2009 में नॉटिंघम की न्यू आर्ट एक्सचेंज गैलरी (Nottingham's New Art Exchange Gallery) में और उसके बाद 2011 में लंदन के हॉरमन आर्ट गैलरी (The Horniman Art Gallery in London) में अपनी कला का प्रदर्शन किया। इनके अलावा वेंकट रमन सिंह श्याम ने कनाडा की नेशनल गैलरी (The National Gallery of Canada) में सखाह एन इंटरनेशनल स्वदेशी कला प्रदर्शनी (The Sakahà n International Indigenous Art exhibition) में 'स्मोकिंग ताज' (Smoking Taj) का प्रदर्शन किया। जिसमें उन्होंने मुंबई के ताजमहल पैलेस होटल में 26/11 के आतंकवादी हमले की छवि प्रस्तुत की।
मध्य प्रदेश में भ्रमण करते हुए वहाँ के पर्यटन स्थलों पर गोंड कलाकारियों की झलक देखी जा सकती है। गोंड समुदाय के लोग घरों में मिट्टी की दीवारों पर और भूमि पर पारंपरिक व सुंदर चित्रकारी करते हैं। गोंड समुदाय में हिंदू त्योहारों में अपनी झोपड़ियों की दीवारों और फर्श को चित्रित करने की परंपरा है। इस समुदाय के लोग इसे सौभाग्य का प्रतीक मानते हैं।
गोंड शब्द के शाब्दिक अर्थ पर विचार करें तो यह शब्द द्रविड़ियन अभिव्यक्ति से बना है जिसमें कोंड का अर्थ होता है हरा पहाड़'। हालाँकि गोंड आदिवासी समुदाय आज से लगभग 1400 साल पहले से अस्तित्व में है परंतु वर्तमान में भी इस समुदाय के लोगों ने अपने पूर्वजों की कला-कौशल को अपने मूल रूप में संजोए रखा है। वे लोग इसे मात्र कला नहीं बल्कि इसे सम्मान और ईश्वर के प्रति श्रद्धा के समान पवित्र मानते हैं।
ऐसा कहा जाता है कि गोंड चित्रकारी ऑस्ट्रेलिया (Australia) के आदिवासी कलाकारी से मिलती जुलती है। गोंड समुदाय की पहचान इतिहास में दर्ज उनके पारंपरिक टैटू, परिधान, संगीत, कला और चित्रों से होती है। गोंड कलाकारी के प्रमुख प्रेरणा स्त्रोतों में प्रकृतिक परिवेश, भारतीय मिथक और किंवदंतियां आदि प्रमुख हैं। समुदाय के लोगों के जीवन, भावनाओं, स्वप्नों और कल्पनाओं की छवि भी इनकी चित्रकारी में दिखाई पड़ती है। गोंड पेंटिंग (Paintings) में विभिन्न चमकीले, उज्ज्वल और गहरे रंगों के लिए आमतौर पर प्राकृतिक तत्वों जैसे लकड़ी के कोयला, रंगीन मिट्टी, पौधे की छाल, फूल, पत्तियों और यहां तक कि गाय के गोबर का भी इस्तेमाल किया जाता है। चुई की मिट्टी से पीला रंग, घेरु की मिट्टी से भूरा रंग और पत्तियों से हरा रंग प्राप्त किया जाता है। यह रंग इन चित्रकलाओं को और भी अधिक अनूठा और सुंदर बनाते हैं।
संदर्भ:
https://bit.ly/3sSqVQa
https://bit.ly/3kSeGjD
https://bit.ly/3c7hyFt
https://bit.ly/2PztyYF
https://bit.ly/3l27UZ3
https://bit.ly/3ef97uA
चित्र संदर्भ:
मुख्य तस्वीर में एक महिला गोंड कला को बनते दिखाती है। (विकिपीडिया)
दूसरी तस्वीर में गोंड कला को दिखाया गया है। (फ़्लिकर)
तीसरी तस्वीर में गोंड कला के साथ एक महिला को दिखाया गया है। (फ़्लिकर)