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सांस्कृतिक दृष्टि से हाथी अत्यंत महत्वपूर्ण हैं, इसलिए पारंपरिक प्रथाओं को जारी रखते हुए, आज भी भारत में हाथियों का उपयोग मंदिरों और धार्मिक उत्सवों में किया जाता है। विश्व पशु संरक्षण रिपोर्ट (Report) के अनुसार, भारत को "हाथियों को वश में करने" के लिए जाना जाता है, ताकि मनुष्यों द्वारा उनका उपयोग आसानी से किया जा सके। हाथी को अत्यंत पूजनीय हिंदू देवता भगवान गणेश का रूप भी माना जाता है, जो बाधाओं का निवारण करते हैं और सौभाग्य प्रदान करते हैं। हिन्दू धर्म में हाथी को भगवान गणेश का अवतार या प्रतिनिधि माना जाता है। इसके अलावा, लोगों का मानना है कि, एक दिव्य सफेद हाथी भगवान इंद्र ( जो कि, बारिश, तूफान आदि के देवता हैं) की सवारी भी है। इन पौराणिक और सांस्कृतिक हिंदू मान्यताओं ने हाथियों को शांति, मानसिक शक्ति और साहस के पवित्र प्रतीकों के रूप में स्थापित किया है। इन्हीं मान्यताओं का पालन करते हुए लोगों ने कई तरह से हाथियों की पूजा की और उनका इस्तेमाल किया। उदाहरण के लिए, राज्य की बहादुरी को दिखाने और अपने पद की प्रतिष्ठा को बढ़ाने के लिए राजाओं ने अपनी सेनाओं को मजबूत करने के लिए युद्ध के हाथियों को नियोजित किया। धार्मिक समारोहों और मंदिरों के अनुष्ठानों में हाथियों का उपयोग करने के लिए कुछ हाथियों को पालतू जानवर के रूप में भी रखा गया। केरल राज्य में, हाथियों से सम्बंधित अनेकों उत्सव और समारोह मनाए जाते हैं, जो स्थानीय लोगों के साथ-साथ पर्यटकों के लिये भी बहुत रोमांचक हैं। उदाहरण के लिए केरल के अनायदी गजमेला (Anayadi Gajamela) उत्सव में कई हाथियों को अलंकृत गहनों और विभिन्न सजावटी वस्तुओं से सजाकर उन्हें मंदिर परिसर में खड़ा किया जाता है। इसके बाद उन्हें अपने सिर को गर्व और प्रतिष्ठा के साथ ऊंचा उठाने का आदेश दिया जाता है। यह देखने में भले ही रोमांचक हो, लेकिन हाथियों के इन प्रदर्शनों के पीछे अप्रिय सच्चाई निहित है। हाथियों को उनके परिवारों से अलग कर ऐसा प्रशिक्षण दिया जाता है, जिसमें उन्हें असहनीय यातनाएं सहनी पड़ती हैं। बीबीसी (BBC) के अनुसार, भारत में 4,000 से भी अधिक हाथियों को कैद में रखा गया है, जिनमें से ज्यादातर असम, केरल, राजस्थान और तमिलनाडु में हैं। हाथियों के भयावह प्रशिक्षण के लिए महावत रखे जाते हैं, जो हाथियों को मानव के प्रति विनम्र बनाते हैं। कई बार बंदी हाथियों को खराब आहार और अपर्याप्त भोजन दिया जाता है, जिसके कारण उनकी आंतों, फेफड़ों आदि में संक्रमण की सम्भावनाएं अत्यधिक बढ़ जाती हैं। इसके अतिरिक्त, बंदी हाथियों के पास चरने और व्यायाम करने के लिए पर्याप्त जगह नहीं होती और वे विभिन्न प्रकार की बीमारियों से ग्रसित हो जाते हैं।
हाथियों की यह अवस्था कोरोना महामारी के कारण हुई तालाबंदी से और भी अधिक प्रभावित हुई है। हाथियों को मांस पेशियों में खिंचाव लाने और पाचन में सहायता के लिए प्रतिदिन 30 मील की पैदल दूरी तय करनी पड़ती है, किंतु महामारी के कारण हुई तालाबंदी से वे अपना नियमित अभ्यास नहीं कर पाये। कई हाथी तनावग्रस्त हुए, क्यों कि, अब वे पहले के समान न तो व्यायाम कर पा रहे थे और न ही पर्यटकों से मनोरंजन प्राप्त कर पा रहे थे। हाथी एक दिन में 200 किलोग्राम तक भोजन करते हैं, तथा इसमें प्रतिदिन 5,000 रुपये तक का खर्च आता है। हाथियों के रखरखाव के लिए सारा खर्च पर्यटन से ही प्राप्त किया जाता है, किंतु पर्यटन के बंद होने से एक पशु कल्याण संकट पैदा हुआ। कोरोना महामारी ने उन सभी समस्याओं को बढ़ा दिया है, जिनका हाथी पहले से ही सामना कर रहे थे। उपयुक्त सुविधा न मिलने के कारण हाथी तनाव में आकर उग्र व्यवहार प्रदर्शित कर रहे हैं तथा एक-दूसरे पर हमला कर अपने जीवन को नष्ट कर रहे हैं।