समोसा एक ऐसा व्यंजन है, जो भारत के लगभग हर हिस्से में आसानी से उपलब्ध हो जाता है। यह एक प्रकार की तली हुई या बेक (Baked) की हुई पेस्ट्री (Pastry) है, जिसमें मसालेदार आलू, प्याज, मटर, पनीर, मांस, दाल आदि भरा होता है। क्षेत्र के आधार पर यह विभिन्न आकारों में उपलब्ध है, जैसे त्रिकोणीय, शंकु या अर्ध-चंद्रमाकार समोसा। अफ्रीका (Africa) से लेकर चीन (China) तक हर कोई भारतीय समोसे से परिचित है। समोसा यदि आपके नियमित भोजन का हिस्सा नहीं है, तो आपको सैकड़ों साल पहले के उस समय के बारे में सोचने की आवश्यकता होगी, जब समोसे को हर दिन खाया जाता था। माना जाता है, कि समोसे की उत्पत्ति मध्यकाल या उससे पहले हुई थी। हालांकि, यह भारत में उत्पन्न नहीं हुआ, लेकिन कई इतिहासकारों का मानना है, कि इसका मूल ईरान (Iran) के संबोसाग (Sanbosag) (इस व्यंजन का उल्लेख हजारों साल पहले लिखे दस्तावेजों में मिलता है) व्यंजन से जुड़ा हुआ है। ईरान के लोग इस त्रिकोणीय व्यंजन को मेहमानों के लिए दिन के हर भोजन में शामिल किया करते थे।
चाहे किसी भी वर्ग के लोग हों, तथा कोई भी अवसर हो, समोसे को खाद्य सूची में अवश्य शामिल किया जाता रहा है। अपनी उत्पत्ति के बाद समोसे के जो भी रूप देखने को मिले, उनमें तीन रूप मुख्य हैं। पहला समसा (Samsa), दूसरा सम्बुसेक (Sambousek) और तीसरा समोसा, जिसका विस्तार भूमध्यसागर के पूर्वी तटों से लेकर तजाकिस्तान (Tajikistan) के पहाड़ों और भारत तक है। यूं तो, यह मध्य पूर्व और मध्य एशिया (Asia) में उत्पन्न हुआ, लेकिन इसके बाद यह अफ्रीका, दक्षिण पूर्व एशिया, दक्षिण एशिया और अन्य जगहों में भी फैल गया। मध्य एशियाई तुर्क (Turk) राजवंशों के आक्रमण के बाद समोसे ने भारतीय उपमहाद्वीप में और भी अधिक लोकप्रियता प्राप्त की। समोसे का संबोसाग संस्करण ईरान में, 16 वीं शताब्दी तक लोकप्रिय था, लेकिन 20 वीं शताब्दी तक, इसकी लोकप्रियता कुछ प्रांतों तक ही सीमित हो गयी। समोसे के अंदर की भराव सामग्री में भी अनेकों विविधताएं देखी गयीं। मध्य पूर्वी समोसे में पहले बारीक पीसे मीट और मिर्च का भराव किया गया था, तथा ईरानी और तुर्की साम्राज्यों के साथ यह विधि भारत में भी फैल गयी। भारत में मांस मूल रूप से पर्याप्त मात्रा में मौजूद था, लेकिन बाद में प्रोटीन (Protein) के स्रोत के रूप में दुग्ध उत्पादों को अधिक महत्व दिया जाने लगा तथा समोसे में मांस का उपयोग कम होने लगा। इसके बाद हिंदू धर्म, बौद्ध धर्म और जैन धर्म ने भी मांसाहार का निषेध किया। मंगोल (Mongol) साम्राज्य की स्थापना के बाद मोस्लेम मोगल्स (Moslem Moghuls) ने समोसे में मांस के उपयोग को फिर से शुरू किया, इस प्रकार उत्तरी भारतीय रेस्तरां में मांस से भरे समोसे अधिक बनने लगे। हालांकि, दक्षिण भारत में समोसे के लिए सब्जियों से बनी भराव सामग्री का ही इस्तेमाल किया जाता रहा। इस सामग्री में मूल रूप से पालक, दाल आदि शामिल थीं। पुर्तगालियों (Portuguese) द्वारा भारत में आलू लाए जाने के बाद, समोसे की भराव सामग्री के रूप में अन्य मसालों के साथ आलू का इस्तेमाल किया जाने लगा।
समोसे की प्रशंसा 9 वीं शताब्दी की एक कविता में भी मिलती है, जिसे फ़ारसी कवि इशाक अल-माविली (Ishaq al-Mawsili) ने लिखा है। इस व्यंजन को बनाने की विधियां 10 वीं और 13 वीं शताब्दी की अरब कुकरी (Cookery) पुस्तकों में भी मौजूद हैं। एक ईरानी इतिहासकार, अबॉलफज़ल बेहाकी (Abolfazl Bayhaqi - (995-1077) ने अपने इतिहास तारीख-ए बेयाघी (Tarikh-e Beyhaghi) में भी इसका उल्लेख किया है। दिल्ली सल्तनत के एक विद्वान और शाही कवि अमीर खुसरो (1253–1325) ने लगभग 1300 ईसा पूर्व में लिखा था, कि राजकुमार और रईस लोग ‘मांस, घी, प्याज, और अन्य सामग्रियों से बने समोसे का लुफ्त उठाया करते थे। मध्य भारत में मालवा सल्तनत के शासक घियाथ अल-दीन खिलजी (Ghiyath al -Din Khalji) के लिए बनायी गयी, एक पुस्तक निम्मतनामा-ए-नसीरुद्दीन-शाही (Nimmatnama-i-Nasiruddin-Shahi) में समोसे बनाने की विधि का उल्लेख किया गया है तथा 16 वीं सदी के मुग़ल दस्तावेज़ ऐन-ए-अकबरी (Ain-i-Akbari) में भी इसे बनाने का वर्णन मिलता है।
संदर्भ:
https://bit.ly/2ZZW0Fk
https://wapo.st/2ZXwMXZ
https://bit.ly/3uGLhNW
चित्र संदर्भ:
मुख्य तस्वीर समोसा दिखाती है। (unsplash)
दूसरी तस्वीर में तेल में समोसे को तलते हुए दिखाया गया है। (पिक्साबे)
तीसरी तस्वीर विभिन्न देशों के समोसे दिखाती है। (unsplash)