| Post Viewership from Post Date to 24- Feb-2021 (5th day) | ||||
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इस वर्ष, पिछले वर्षों की तुलना में मानसून के मौसम के दौरान एनोफिलीज मच्छर (Anopheles Mosquito) की संख्या में गिरावट दर्ज की गई थी। पिछले तीन वर्षों में, मच्छरों की प्रजातियों जैसे कि एडीज (Aedes), क्यूलिसीनी (Culicinae), एनोफिलीज (Anopheles) आदि की जनसंख्या में वृद्धि देखी गई थी, जो मलेरिया, डेंगू (Dengue), फाल्सीपेरम (Falciparum) और चिकनगुनिया (Chikungunya) के लिए जिम्मेदार हैं। मच्छर, जिसका घनत्व 2018 में 10.81 और 2019 में 10.63 था, वह इस साल अगस्त में महज 2.41 रह गया। 2019 में जौनपुर में बारिश के मौसम में जलजनित व मच्छरजनित बीमारियां बढ़ने लगी थी, डेगू, मलेरिया, मस्तिष्क ज्वर आदि के पीड़ित लोग अस्पताल में पहुंच रहे थे। मौसम के उतार-चढ़ाव व दूषित पानी के सेवन के कारण टायफाइड और वायरल फीवर के मरीजों की संख्या बढ़ गई थी। साफ-सफाई की जागरूकता ना होने से संक्रामक रोगों व मच्छरों का प्रकोप भी बढ़ गया था। परंतु 2020 से साफ-सफाई के प्रति बढ़ी जागरूकता के कारण इन संक्रामक रोगों में गिरावट आई है। मलेरिया से पीड़ित लोगो की संख्या पिछले साल की तुलना में अगस्त तक काफी कम हो गयी। लॉकडाउन के दौरान लगभग 90 प्रतिशत आबादी ने प्रतिरक्षा बढ़ाने वाली रोगनिरोधी और विटामिन लिये तथा साफ-सफाई का विशेष ध्यान रखा, जिसने वेक्टर जनित बीमारियों को नियंत्रित करने में मदद की।
मलेरिया एक वाहक-जनित संक्रामक रोग है जो प्रोटोज़ोआ (Protozoa) परजीवी (प्लास्मोडियम (Plasmodium) समूह का एकल-कोशिका सूक्ष्मजीव) द्वारा फैलता है। यह रोग उष्णकटिबंधीय और उपोष्णकटिबंधीय क्षेत्रों मुख्य रूप से अमेरिका (America), एशिया (Asia) और अफ्रीका महाद्वीपों (Africa) के क्षेत्रों में फैला हुआ है। इसने 2018 में दुनिया भर में 228 मिलियन लोगों को प्रभावित किया, जिसके परिणामस्वरूप लगभग 405,000 लोगों की मौतें हो गई। मलेरिया सबसे प्रचलित संक्रामक रोगों में से एक है और भंयकर जन स्वास्थ्य समस्या भी है। यह रोग प्लास्मोडियम गण के प्रोटोज़ोआ परजीवी के माध्यम से फैलता है। केवल चार प्रकार के प्लास्मोडियम परजीवी मनुष्य को प्रभावित करते हैं जिसमें से सबसे खतरनाक प्लास्मोडियम फैल्सीपैरम (P. falciparum) और प्लास्मोडियम विक्सैक्स (P. vivax) माने जाते हैं, साथ ही प्लास्मोडियम ओवेल (P. ovale) और प्लास्मोडियम नाउलेसी (P. knowlesi) भी मानव को प्रभावित करते हैं। मलेरिया के परजीवी का वाहक मादा एनोफ़िलेज़ (Anopheles) मच्छर है। यह परजीवी अपना जीवन चक्र दो पोषकों में पुरा करता है। इसका प्राथमिक पोषक मादा एनोफिलिज और द्वितीयक पोषक मनुष्य है।
संक्रमित मादा एनाफिलीज मच्छर के काटने से प्लास्मोडियम मानव शरीर में स्पोरोज़ोइट (Sporozoite) (संक्रामक रोग) के रूप में प्रवेश करता है। एक स्पोरोज़ोइट मनुष्य की रक्त वाहिकाओं के माध्यम से यकृत कोशिकाओं (Liver Cells ) (हेपेटोसाइट्स-Hepatocytes) तक पहुंचता है, जहां यह अलैंगिक (Asexually) रूप से प्रजनन करता है और यकृत कोशिकाओं के भीतर वृद्धि करता हैं और फिर लाल रक्त कोशिकाओं (RBCs) पर हमला करता है, लाल रक्त कोशिकाओं में प्रवेश कर के ये बहुगुणित होते हैं, जिसके परिणामस्वरूप RBC टूटने लगते हैं, जिससे रक्तहीनता (एनीमिया- Anemia) के लक्षण उभरते हैं (चक्कर आना, साँस फूलना, द्रुतनाड़ी इत्यादि)। इसके अलावा अविशिष्ट लक्षण जैसे कि बुखार, सर्दी, उबकाई और जुखाम जैसी अनुभूति भी देखी जाती हैं। गंभीर मामलों में मरीज मूर्च्छा में जा सकता है और मृत्यु भी हो सकती है। मादा एनाफिलीज़ मच्छर द्वारा किसी संक्रमित व्यक्ति को काटे जाने से ये परजीवी मच्छर के शरीर में गैमेटोसाइट्स (Gametocytes) के रूप में प्रवेश कर जाते हैं और मच्छर आंत में परिपक्व होते है। ये गैमेटोसाइट्स नर और मादा के रूप में विकसित होते है और उकाइनेट (Ookinetes) बनाते हैं। ये उकाइनेट स्पोरोज़ोइट्स में विकसित होते हैं जो मच्छर की लार ग्रंथियों की ओर पलायन करते हैं। जब ये मच्छर किसी इंसान को काटते हैं तो स्पोरोज़ोइट्स उस व्यक्ति के शरीर में प्रवेश कर जाते हैं, जिसके कारण मलेरिया संक्रमण में वृद्धि होती है।
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