बदलाव ही प्रकृति का नियम है। इतिहास गवाह है कि जब भी दुनिया में महामारी आई हैं विनाश के साथ बेहतर भविष्य के लिये एक बदलाव भी लाई हैं। जैसा की हम सभी ने इस दौर में देखा कि एक समय ऐसा भी था जब कोरोना महामारी से लड़ने में दुनिया की महाशक्तियां लाचार हो चुकी थी। परंतु इन सभी चुनौतियों ने इंसानी जीवन को और अधिक व्यवस्थित करने का काम भी किया है। कोरोना वायरस संक्रमण ने लोगों की सोच में बदलाव लाया है। स्वच्छता के प्रति लोगों में जागरूकता बढ़ी है। इस संक्रमण काल में साफ-सफाई और स्वच्छता, लोगों के दिलों-दिमाग पर घर कर गयी है। ऐसे में उम्मीद यहीं की जा सकती है कि स्वच्छता के प्रति लोगों की सोच में भारी बदलाव आगे भी बना रहेगा और इससे गंभीर बीमारियां भी कम होने की संभावना बढ़ती जाएगी। लोगों ने कोरोना वायरस संक्रमण काल में हुए लॉकडाउन में अपनी सोच को बदला है। साफ-सफाई और स्वच्छता के प्रति काफी गंभीर हो गए है। हर वर्ग जैसे बच्चे, बुजूर्ग, युवा सभी ने अपनी सोच में स्वच्छता को महत्व देना शुरू कर दिया है। आज स्वच्छता लोगों के दिल, दिमाग पर सर्वोपरि स्थान बना चुकी है। इसका फायदा भी मनुष्य को ही मिल रहा है, स्वच्छता के प्रति लोगों में जागरूकता और प्रतिरक्षा बूस्टर (Immunity Booster) ने वेक्टर-जनित बीमारियों (Vector-Borne Diseases) जैसे कि मलेरिया (Malaria) से लोगों को बचाया हैं।
इस वर्ष, पिछले वर्षों की तुलना में मानसून के मौसम के दौरान एनोफिलीज मच्छर (Anopheles Mosquito) की संख्या में गिरावट दर्ज की गई थी। पिछले तीन वर्षों में, मच्छरों की प्रजातियों जैसे कि एडीज (Aedes), क्यूलिसीनी (Culicinae), एनोफिलीज (Anopheles) आदि की जनसंख्या में वृद्धि देखी गई थी, जो मलेरिया, डेंगू (Dengue), फाल्सीपेरम (Falciparum) और चिकनगुनिया (Chikungunya) के लिए जिम्मेदार हैं। मच्छर, जिसका घनत्व 2018 में 10.81 और 2019 में 10.63 था, वह इस साल अगस्त में महज 2.41 रह गया। 2019 में जौनपुर में बारिश के मौसम में जलजनित व मच्छरजनित बीमारियां बढ़ने लगी थी, डेगू, मलेरिया, मस्तिष्क ज्वर आदि के पीड़ित लोग अस्पताल में पहुंच रहे थे। मौसम के उतार-चढ़ाव व दूषित पानी के सेवन के कारण टायफाइड और वायरल फीवर के मरीजों की संख्या बढ़ गई थी। साफ-सफाई की जागरूकता ना होने से संक्रामक रोगों व मच्छरों का प्रकोप भी बढ़ गया था। परंतु 2020 से साफ-सफाई के प्रति बढ़ी जागरूकता के कारण इन संक्रामक रोगों में गिरावट आई है। मलेरिया से पीड़ित लोगो की संख्या पिछले साल की तुलना में अगस्त तक काफी कम हो गयी। लॉकडाउन के दौरान लगभग 90 प्रतिशत आबादी ने प्रतिरक्षा बढ़ाने वाली रोगनिरोधी और विटामिन लिये तथा साफ-सफाई का विशेष ध्यान रखा, जिसने वेक्टर जनित बीमारियों को नियंत्रित करने में मदद की।
ये बदलाव भारत ही नहीं बल्कि दुनिया भर में देखने को मिला है, वाशिंगटनडीसी (Washington, DC) आधारित एक संगठन, नेशनल एसोसिएशन ऑफ काउंटी एंड सिटी हेल्थ ऑफिशियल्स (NACCHO-National Association of County and City Health Officials) ने बताया कि महामारी के दौरान स्वच्छता के प्रति लोगों में जागरूकता और प्रतिरक्षा बूस्टर से वेक्टर-जनित बीमारियों जैसे कि मलेरिया से लड़ने में काफी मदद मिली है। यहां के स्थानीय स्वास्थ्य विभाग और अन्य वेक्टर नियंत्रण कार्यक्रम काफी समय से वेक्टर-जनित रोगों की रोकथाम के लिये काम कर रहे हैं। ये बताते है कि देश के अधिकांश हिस्सों में तापमान 50 डिग्री से अधिक हो जाता है जोकि की मच्छरों के प्रजनन के लिये उत्तम होता है। जिसका अर्थ है कि कई अमेरिकी वेक्टर-जनित बीमारियों के शिकार हो सकते है, ये मच्छर घातक बीमारियां फैला सकते हैं और एक गंभीर सार्वजनिक स्वास्थ्य खतरा पैदा कर सकते हैं। परन्तु 2019 में कोरोना के दौरान इन मामलों में कमी आई है।
मलेरिया एक वाहक-जनित संक्रामक रोग है जो प्रोटोज़ोआ (Protozoa) परजीवी (प्लास्मोडियम (Plasmodium) समूह का एकल-कोशिका सूक्ष्मजीव) द्वारा फैलता है। यह रोग उष्णकटिबंधीय और उपोष्णकटिबंधीय क्षेत्रों मुख्य रूप से अमेरिका (America), एशिया (Asia) और अफ्रीका महाद्वीपों (Africa) के क्षेत्रों में फैला हुआ है। इसने 2018 में दुनिया भर में 228 मिलियन लोगों को प्रभावित किया, जिसके परिणामस्वरूप लगभग 405,000 लोगों की मौतें हो गई। मलेरिया सबसे प्रचलित संक्रामक रोगों में से एक है और भंयकर जन स्वास्थ्य समस्या भी है। यह रोग प्लास्मोडियम गण के प्रोटोज़ोआ परजीवी के माध्यम से फैलता है। केवल चार प्रकार के प्लास्मोडियम परजीवी मनुष्य को प्रभावित करते हैं जिसमें से सबसे खतरनाक प्लास्मोडियम फैल्सीपैरम (P. falciparum) और प्लास्मोडियम विक्सैक्स (P. vivax) माने जाते हैं, साथ ही प्लास्मोडियम ओवेल (P. ovale) और प्लास्मोडियम नाउलेसी (P. knowlesi) भी मानव को प्रभावित करते हैं। मलेरिया के परजीवी का वाहक मादा एनोफ़िलेज़ (Anopheles) मच्छर है। यह परजीवी अपना जीवन चक्र दो पोषकों में पुरा करता है। इसका प्राथमिक पोषक मादा एनोफिलिज और द्वितीयक पोषक मनुष्य है।
संक्रमित मादा एनाफिलीज मच्छर के काटने से प्लास्मोडियम मानव शरीर में स्पोरोज़ोइट (Sporozoite) (संक्रामक रोग) के रूप में प्रवेश करता है। एक स्पोरोज़ोइट मनुष्य की रक्त वाहिकाओं के माध्यम से यकृत कोशिकाओं (Liver Cells ) (हेपेटोसाइट्स-Hepatocytes) तक पहुंचता है, जहां यह अलैंगिक (Asexually) रूप से प्रजनन करता है और यकृत कोशिकाओं के भीतर वृद्धि करता हैं और फिर लाल रक्त कोशिकाओं (RBCs) पर हमला करता है, लाल रक्त कोशिकाओं में प्रवेश कर के ये बहुगुणित होते हैं, जिसके परिणामस्वरूप RBC टूटने लगते हैं, जिससे रक्तहीनता (एनीमिया- Anemia) के लक्षण उभरते हैं (चक्कर आना, साँस फूलना, द्रुतनाड़ी इत्यादि)। इसके अलावा अविशिष्ट लक्षण जैसे कि बुखार, सर्दी, उबकाई और जुखाम जैसी अनुभूति भी देखी जाती हैं। गंभीर मामलों में मरीज मूर्च्छा में जा सकता है और मृत्यु भी हो सकती है। मादा एनाफिलीज़ मच्छर द्वारा किसी संक्रमित व्यक्ति को काटे जाने से ये परजीवी मच्छर के शरीर में गैमेटोसाइट्स (Gametocytes) के रूप में प्रवेश कर जाते हैं और मच्छर आंत में परिपक्व होते है। ये गैमेटोसाइट्स नर और मादा के रूप में विकसित होते है और उकाइनेट (Ookinetes) बनाते हैं। ये उकाइनेट स्पोरोज़ोइट्स में विकसित होते हैं जो मच्छर की लार ग्रंथियों की ओर पलायन करते हैं। जब ये मच्छर किसी इंसान को काटते हैं तो स्पोरोज़ोइट्स उस व्यक्ति के शरीर में प्रवेश कर जाते हैं, जिसके कारण मलेरिया संक्रमण में वृद्धि होती है।
रोग के लक्षण
इस रोग के लक्षण आमतौर पर 6 से 10 घंटे तक रहते हैं और हर 24 से 72 घंटे में दोबारा दिखायी देते हैं। इसके मुख्य लक्षण निम्नलिखित हैं:
• तेज बुखार
• कंपकंपी या ठंड लगना
• पसीना आना
• सिरदर्द
• शरीर में दर्द
• जोड़ों में दर्द
• रक्ताल्पता और असामान्य रक्तस्राव
• थकावट
• सांस की तकलीफ
• जी मचलना और उल्टी होना।
उपचार
मौखिक दवाओं के साथ सरल या सीधा मलेरिया का इलाज किया जा सकता है। विश्व स्वास्थ्य संगठन (डब्ल्यूएचओ-World Health Organization (WHO)) मलेरिया के उपचार के लिये आर्टेमिसिन-कॉम्बिनेशन थेरेपी या एसीटी (Artemisinin-Based Combination Therapy (ACT)) की सिफारिश करता है। यह रक्तप्रवाह में प्लास्मोडियम परजीवी की वृद्धि को तेजी से कम करता है। एसीटी को अक्सर पार्टनर ड्रग (Partner Drug) या साथी दवाओं के साथ संयोजन में लिया जाता है, जिसमें एसीटी का उद्देश्य संक्रमण के पहले 3 दिनों के भीतर परजीवियों की संख्या को कम करना है और पार्टनर ड्रग शेष परजीवियों को खत्म कर देता हैं। 2020 में, मलेरिया के लिए एक वैक्सीन का निर्माण हुआ था जिसे आरटीएस, एस (RTS,S) के रूप में जाना जाता है। आरटीएस, एस (RTS,S) नाम का टीका रोग प्रतिरोधक तंत्र को मलेरिया के परजीवी पर हमले के लिए तैयार करता है परंतु इसके उपयोग के लिए लाइसेंस की आवश्यकता होती है।
बचाव व रोकथाम
• मलेरिया के लक्षण दिखते ही व्यक्ति को तुरंत परीक्षण और उपचार लेना चाहिए
• घरो के अन्दर डी. डी .टी. जैसी कीटनाशकों का छिड़काव कराया जाये, जिससे मच्छरो का नष्ट किया जा सके
• घरो में व आसपास गड्डो, नालियों, बेकार पड़े खाली डिब्बों, पानी की टंकियों, गमलों, टायर टयूब मे पानी इकट्ठा न होने दें
• मच्छरों को पनपने से रोकें
• जितना संभव हो उतना घर के अंदर रहे, विशेष रूप से रात के समय जब मच्छर अधिक सक्रिय होते हैं और मच्छरदानी का उपयोग करें। ऐसे कपड़े पहनें जो आपके शरीर के अधिकांश भाग को ढक सके
• आमतौर पर यह मच्छर साफ पानी मे जल्दी पनपता है। इसलिए सप्ताह मे एक बार पानी से भरी टंकियों, मटके, कूलर आदि खाली करके सुखा दे
• डीट या पिकारिडिन (DEET or Picaridin) युक्त कीट से बचने वाले रिपेलेंट (repellents) का प्रयोग करें
• खिडकियों, दरवाजों मे जालियां लगवा लें।
संदर्भ:
https://bit.ly/3bhHePh
https://bit.ly/2NAqURy
https://bit.ly/3u5ekux
https://bit.ly/3qwAnIl
https://bit.ly/3pykOOK
चित्र संदर्भ:
मुख्य तस्वीर में एक व्यक्ति का खून पीते हुए मच्छर को दिखाया गया है। (पिक्साबे)
दूसरी तस्वीर में मलेरिया परजीवी मानव लाल रक्त कोशिका से जुड़ा हुआ दिखाया गया है। (विकिमीडिया)
तीसरी तस्वीर में मातृ मलेरिया प्लेसेंटा को दिखाया गया है। (विकिमीडिया)
अंतिम तस्वीर में कोरोना वायरस के लिए परीक्षण दिखाया गया है। (unsplash)