दृष्यते हि अनेन इति दर्शनम्
(असत् एवं सत् पदार्थों का ज्ञान ही दर्शन है)
दर्शनशास्त्र सदियों से अस्तित्व में है ओर हर गुजरते वक्त के साथ इसका महत्व ओर भी बढ़ता जा रहा है। दर्शन उस विद्या का नाम है जो सत्य एवं ज्ञान की खोज करता है। व्यापक अर्थ में दर्शन, तर्कपूर्ण, विधिपूर्वक एवं क्रमबद्ध विचार की कला है। इसका जन्म अनुभव एवं परिस्थिति के अनुसार होता है। यही कारण है कि संसार के भिन्न-भिन्न व्यक्तियों ने समय-समय पर अपने-अपने अनुभवों एवं परिस्थितियों के अनुसार भिन्न-भिन्न प्रकार के जीवन-दर्शन को अपनाया। दर्शनशास्त्र में महत्वपूर्ण प्रश्नों को सूचीबद्ध किया जाता है फिर उनका उत्तर ढूंढने का प्रयास किया जाता है। यह हमें विश्व के बारे में गंभीर रूप से सोचने के लिए प्रोत्साहित करता है; यह हर प्रकार के ज्ञान की नींव है यदि इसका सही तरीके से उपयोग किया जाता है तो यह अत्यधिक लाभप्रद होता है। दर्शनशास्त्र वह ज्ञान है जो परम् सत्य और सिद्धांतों, और उनके कारणों की विवेचना करता है।
दर्शनशास्त्र पद का प्रयोग सर्वप्रथम पाइथागोरस (Pythagoras) ने लिखित रूप से किया था। दर्शनशास्त्र एक विषय विशेष तक सीमित नहीं है, यह भारत और दुनिया के इतिहास, मनोविज्ञान, राजनीति, तर्क, नैतिकता और धर्म के विभिन्न पहलुओं को जोड़ता है। दर्शन के अध्ययन में विषय के प्रति एक जुनून और ज्ञान प्राप्त करने की गहरी इच्छा की आवश्यकता होती है क्योंकि एक विषय के रूप में दर्शन को कुछ क्षेत्रों तक सीमित नहीं किया जा सकता है और यह हर चीज को विभिन्न पहलुओं से जोड़ता है। प्लेटो ने विशिष्ट अनुशासन और विज्ञान के रूप में दर्शन को विकसित किया था। यह मानवीय इतिहास के प्रारंभिक चरणों में ज्ञान के विकास के निम्न स्तर के कारण सर्वथा स्वाभाविक था। सामाजिक उत्पादन के विकास और वैज्ञानिक ज्ञान के संचय की प्रक्रिया में भिन्न भिन्न विज्ञान दर्शनशास्त्र से पृथक होते गये और दर्शनशास्त्र एक स्वतंत्र विज्ञान के रूप में विकसित होने लगा। पाश्चात्य फिलॉसफी (philosophy) शब्द फिलॉस (Philos) (प्रेम का)+सोफिया (Sophia) (प्रज्ञा) से मिलकर बना है। इसलिए फिलॉसफी का शाब्दिक अर्थ है बुद्धि प्रेम। पाश्चात्य दार्शनिक बुद्धिमान या प्रज्ञावान व्यक्ति बनना चाहते हैं। पाश्चात्य दर्शन के इतिहास से यह बात झलक जाती है कि पाश्चात्य दार्शनिक ने विषय ज्ञान के आधार पर ही बुद्धिमता हासिल की है। इसके विपरीत कुछ उदाहरण अवश्य मिलेंगें जिसमें आचरण शुद्धि तथा मनस् की परिशुद्धता के आधार पर परमसत्ता के साथ साक्षात्कार करने का भी आदर्श पाया जाता है। परंतु यह आदर्श प्राच्य है न कि पाश्चात्य। पाश्चात्य दार्शनिक अपने ज्ञान पर जोर देता है और अपने ज्ञान के अनुरूप अपने चरित्र का संचालन करना अनिवार्य नहीं समझता। केवल पाश्चात्य रहस्यवादी और समाधीवादी विचारक ही इसके अपवाद हैं।
भारतीय दर्शन में परम सत्ता के साथ साक्षात्कार करने का दूसरा नाम ही दर्शन हैं। भारतीय परंपरा के अनुसार मनुष्य को परम सत्ता का साक्षात् ज्ञान हो सकता है। इस प्रकार साक्षात्कार के लिए भक्ति ज्ञान तथा योग के मार्ग बताए गए हैं। परंतु दार्शनिक ज्ञान को वैज्ञानिक ज्ञान से भिन्न कहा गया है। वैज्ञानिक ज्ञान प्राप्त करने में आलोच्य विषय में परिवर्तन करना पड़ता है ताकि उसे अपनी इच्छा के अनुसार वश में किया जा सके और फिर उसका इच्छित उपयोग किया जा सके। परंतु प्राच्य दर्शन के अनुसार दार्शनिक ज्ञान जीवन साधना है। ऐसे दर्शन से स्वयं दार्शनिकता में ही परिवर्तन हो जाता है। उसे दिव्य दृष्टि प्राप्त हो जाती है। जिसके द्वारा वह समस्त प्राणियों को अपनी समष्टि दृष्टि से देखता है। समसामयिक विचारधारा में प्राच्य दर्शन को धर्म-दर्शन माना जाता है और पाश्चात्य दर्शन को भाषा सुधार तथा प्रत्ययों का स्पष्टीकरण कहा जाता है।
2010 में द ग्रैंड डिजाइन (The Grand Design) में स्टीफन हॉकिंग ने घोषणा की कि दर्शन "जड़" था, क्योंकि इसमें "विज्ञान, विशेषकर भौतिकी में आधुनिक विकास नहीं" हुआ था। यह नैतिकता, राजनीतिक सिद्धांत या सौंदर्यशास्त्र का जिक्र नहीं कर रहे थे। उनका तात्पर्य तत्वमीमांसा से था दर्शनशास्त्र की वह शाखा है जिसमें वास्तविकता, अस्तित्व और ब्रह्माण्ड की मूल प्रकृति का अध्ययन किया जाता है। यदि दार्शनिक वास्तव में प्रगति करना चाहते हैं तो उन्हें अपने चुनिंदा विषयों और उनके सूक्ष्म तर्कों को छोड़ना होगा और गणित और भौतिक जगत की ओर प्रवेश करना होगा। पाश्चात्य दार्शनिक इसका पूर्ण समर्थन करते हैं, ब्रिस्टल (Bristol) के दार्शनिक जेम्स लाडीमैन (James Ladyman) तत्वमीमांसा का स्वाभाविक रूप से पालन का समर्थन किया।
दर्शनशास्त्र का अध्ययन सदियों से चला आ रहा है, लेकिन पहले रोजगार के अवसर की कमी के कारण कई छात्र इसके अध्ययन को प्राथमिकता नहीं दे रहे हैं। लेकिन धीरे-धीरे चीजें बदल रही हैं। आज जब युवा देश के सामाजिक-राजनीतिक कामकाज को समझने में अधिक से अधिक रुचि ले रहे हैं तो यह विषय एक बार फिर से लोकप्रिय हो रहा है। दार्शनिकता हमें अनुचित विचारधारा, अन्यायपूर्ण अधिकार, निराधार मान्यताओं, आधारहीन प्रचार और संदिग्ध सांस्कृतिक मूल्यों से बचाती है। यदि हम इन तथ्यों के विषय में गहनता से मनन नहीं करते हैं तो ये हमें पथभ्रमित कर सकते हैं। दार्शनिकता के लिए इन विभिन्न विचारों, विश्वासों और मूल्यों की अस्वीकृति की आवश्यकता नहीं है, यह केवल इन पर एक विचार है। अन्यथा, यह सभी मूल्य, विचार या विश्वास हमारे न होते हुए भी हम इन्हें स्वीकार कर लेते हैं। अत: विचार करना श्रमसाध्य है और अज्ञानता आनंददायी है।
दर्शनशास्त्र में करियर (Career) बनाने के लिए, दर्शनशास्त्र में कला स्नातक या परास्नातक किया जा सकता है। दर्शनशास्त्र में स्नातक करने के लिए, किसी भी माध्यम में राज्य या केंद्रीय बोर्ड से 10 + 2 पूरा करना होगा। इस पाठ्यक्रम की अवधि तीन वर्ष की होती है, इसमें उच्च शिक्षा हेतु एम. फिल इन फिलॉसफी (M.Phil in Philosophy) और पीएचडी (Ph.D.) भी कर सकते हैं। दर्शनशास्त्र में करियर स्नातक और स्नातकोत्तर के लिए रोजगार के कई विकल्प मौजूद हैं, किंतु एक विषय के रूप में दर्शन का अध्ययन जुनून के लिए किया जाना चाहिए न कि उच्च पद की नौकरी के लिए। दर्शन के महत्व से संबंधित प्रश्न शिक्षा से संबंधित मुद्दों के साथ जुड़े हुए हैं। शिक्षा का अर्थ क्या है? क्या यह केवल व्यावहारिक कौशल सीखने के लिए है? एक ऐसे चिकित्सक के विषय में विचार करें, जिसने अपने पेशे का अभ्यास करने के लिए आवश्यक तकनीकों में महारत हासिल की है। क्या यह एक अच्छा चिकित्सक बनने के लिए पर्याप्त है? हम में से अधिकांश कहेंगे नहीं। क्योंकि व्यक्ति को अंतर्दृष्टि, करुणा और संचार कौशल जैसे लक्षणों की आवश्यकता भी होती है, जिसे हम दर्शन, साहित्य, जीव विज्ञान, मनोविज्ञान, इतिहास से सीख सकते हैं। यह वे विषय हैं जो हमें जीवन और लोगों के बारे में सिखाते हैं। इससे पता चलता है कि शिक्षा मात्र तकनीकी प्रशिक्षण नहीं वरन् उससे कई अधिक है।
हम शिक्षित होने के लिए के लिए परिश्रम करते हैं? क्या यह मात्र कुछ परीक्षाओं को पास कर नौकरी प्राप्त करने के लिए है? या शिक्षा का कार्य युवावस्था के दौरान जीवन की संपूर्ण प्रक्रिया को समझाना है? निश्चित रूप से, जीवन केवल एक नौकरी या एक व्यवसाय नहीं है: जीवन व्यापक और गहरा है, यह एक महान रहस्य है, एक विशाल क्षेत्र है जिसमें हम मानव के रूप में कार्य कर रहे हैं। भारत में रोजगार के अधिक अवसर उपलब्ध न होने के कारण कई विश्वविद्यालयों से दार्शनिकता का विषय पाठ्यक्रम से हटा दिया गया है। उदाहरण के लिए, बैंगलोर विश्वविद्यालय, जिसमें दर्शनशास्त्र विभाग था, ने इसे बंद कर दिया। भारत में विज्ञान और गणित माध्यम के छात्र इसमें अधिक रुचि दिखा रहे हैं। कुछ आईआईटी (IITs) ने दर्शनशास्त्र में शोध के लिए रास्ते खोले हैं।
एक दर्शन छात्र के रूप में, आप निम्नलिखित क्षेत्रों जैसे छात्र मामला या छात्र सहयोग विभाग, सार्वजनिक सेवा, पत्रकारिता, अनुसंधान, आदि में नौकरी के अवसर पा सकते हैं। जिन छात्रों ने दर्शन पर शोध किया है, वे शोध संस्थानों, विश्वविद्यालयों और कॉलेजों (Colleges) में शिक्षण कार्य का विकल्प चुन सकते हैं। दर्शन स्नातक सलाहकार, लॉबीस्ट (lobbyists) और एचआर (HR) में विशेषज्ञ आदि के रूप में भी काम कर सकते हैं। इसके अलावा, दर्शनशास्त्र में डिग्री कानून और नागरिक सेवाओं में कैरियर के लिए आपको तैयार करने में मदद करती है। दर्शनशास्त्र में क्षेत्र के अनुसार वेतन दस हजार से एक लाख तक के मध्य हो सकता है। दार्शनिक पाठ्यक्रम का भविष्य इस बात पर निर्भर करता है कि हम इसे कैसे जीवंत बनाते हैं। यदि इंजीनियरिंग (Engineering) और मेडिकल (Medical) जैसे व्यावसायिक पाठ्यक्रमों सहित हर स्कूल, कॉलेज और विश्वविद्यालय के छात्रों को दार्शनिकता का कोर्स (course) करने के लिए कहा जाता है, परिणामत: हमारी शैक्षिक प्रणाली में तथ्यों में उत्कृष्टता आएगी। दार्शनिक आलोचनात्मक और कल्पनाशील सोच के लिए एक आधार प्रदान करता है।
संदर्भ:
https://bit.ly/3tK5UbD
https://bit.ly/2LFrv3T
https://bit.ly/2MSSKbL
https://bit.ly/3jA2sf6
https://bit.ly/3qc0rYO
https://bit.ly/3tNFtBJ
चित्र संदर्भ:
मुख्य चित्र राफेल द्वारा बनाये प्रसिद्ध पेंटिंग "एथेंस के स्कूल" को दिखाया गया है। (विकिमीडिया)
दूसरी तस्वीर पाइथागोरस को दिखाती है। (प्रारंग)
तीसरी तस्वीर में स्टीफन हॉकिंग और द ग्रैंड डिजाइन कवर दिखाया गया है। (प्रारंग)