जौनपुर को आलू उत्पादन के गढ़ के रूप में जाना जाता है तथा बीज और कृषि में हुई उन्नति से यह भली-भांति परिचित है। भारत में आलू का आगमन 17 वीं शताब्दी की शुरुआत में हुआ था, जब पुर्तगालियों (Portuguese) ने पश्चिमी तट पर शकरकंद की खेती की। 1940 के दशक तक, गढ़वाल, कुमाऊँ और मेघालय की पहाड़ी ढलानों पर उगाए जाने वाले आलू की खेती यूरोपियों (Europeans) द्वारा लाए गए बीजों से की जाती थी। 1949-50 के बाद, इन बीजों को लाना बंद कर दिया गया और भारत सरकार ने खाद्य सुरक्षा के लिए इस फसल की क्षमता का दोहन करने हेतु शिमला में भारतीय कृषि अनुसंधान परिषद - केंद्रीय आलू अनुसंधान संस्थान (Central Potato Research Institute - CPRI) की स्थापना की। संस्थान ने उपयुक्त किस्मों का विकास किया, जिसने इस समशीतोष्ण फसल को पहले उप-उष्णकटिबंधीय और फिर बाद में उष्णकटिबंधीय फसल में बदला। इस प्रकार आलू की खेती का क्षेत्र फैलता चला गया। आज, भारत 490 लाख टन वार्षिक पैदावार के साथ आलू का दूसरा सबसे बड़ा उत्पादक है। इस उत्पादन में संकरण की भी विशेष भूमिका है।
तो आइए, सबसे पहले यह समझें कि आखिर संकरण है क्या? संकरण वह प्रक्रिया है, जिसमें दो अलग-अलग पौधों की किस्मों के बीच पर-परागण कराया जाता है, तथा प्राप्त उत्पाद के बीजों को फिर से उगाया जाता है। इस प्रकार प्राप्त होने वाले पौधों को संकरित पौधा कहते हैं। पर-परागण, नये या संतति पौधों में कुछ विशिष्ट गुण प्राप्त करने के लिए वाणिज्यिक रूप से कराया जाता है। इस प्रक्रिया से ऐसे संकरित पौधों को प्राप्त किया जा सकता है, जो रोग प्रतिरोधी हों, जिनकी उत्पादक क्षमता अधिक हो, जिनके फूल, फल आदि का आकार बड़ा, छोटा या फिर मध्यम हो, आदि। दूसरे शब्दों में, जो भी विशेषता हमें अपने पौधे में चाहिए, वो संकरण के द्वारा प्राप्त की जा सकती है। लोकप्रिय संकरित पौधों में संकरित लिली (Lilies), स्वीट कॉर्न (Sweet Corn), ओलंपिया (Olympia), मेयर लेमन ट्रीज (Meyer Lemon Trees), आर्जीमोन मेक्सिकाना (Argemone Mexicana) आदि शामिल हैं। संकरण की मदद से ही संकरित आलू भी प्राप्त किये गये हैं। संकरित आलू, जहां आलू क्षेत्र से जुड़े लोगों के लिए लाभदायक हैं, वहीं उन लोगों को भी फ़ायदा पहुंचाते हैं, जो इस क्षेत्र से प्रत्यक्ष रूप से नहीं जुड़े हैं। एक संकरित आलू में आलू की दो अलग-अलग किस्मों के गुण संयुक्त रूप से मौजूद होते हैं, जिससे उत्पादन की गुणवत्ता बढ़ती है। जिस तरह से एक संकरित कार इलेक्ट्रिक (Electric) और डीजल इंजन (Diesel engine) का उपयोग करके अधिकतम हॉर्सपावर (Horsepower) प्राप्त करती है, उसी प्रकार से दो विशिष्ट गुणों वाले विकसित पौधों में संकरण कराने पर एक मजबूत और अच्छी उपज वाली संतति प्रजाति या किस्म प्राप्त होती है। सफल संकरण से आलू के प्रजनन या उत्पादन को काफी बढ़ावा मिल सकता है। यह आलू कंद को वास्तविक बीजों के द्वारा प्रतिस्थापित भी कर सकता है। दूसरे शब्दों में, आलू के पौधों को आलू कंद के बजाय सीधे इसके बीजों से उगाया जा सकता है। आलू को आलू कंदों की बजाय बीज से उगाना नए अवसर प्रदान करता है। इससे नयी और मजबूत किस्मों को और अधिक तेज़ी से विकसित किया जा सकता है, और मौजूदा किस्मों में सुधार किया जा सकता है। इसके अलावा संकर किस्मों का व्यापार आलू कंदों के बजाय बीज के रूप में सम्भव हो सकता है। आलू के वास्तविक बीजों का एक थैला आलू कंदों के एक कंटेनर (Container) की तुलना में अधिक सस्ता होता है। इस प्रकार इसे एक स्थान से दूसरे स्थान में ले जाना भी बहुत आसान हो जाता है। महत्वपूर्ण बात यह है कि, आलू कंदों की तुलना में बीजों में बीमारियों का खतरा बहुत कम होता है। आलू कंदों की खेती करते समय सबसे बड़ी समस्याओं में से एक, इरविनिया बैक्टीरिया (Erwinia bacteria) है। किंतु बीजों से उत्पन्न होने वाले पौधों में यह जीवाणु हस्तांतरित नहीं होता। बीजों से संकरित आलू का उत्पादन वैश्विक खाद्य समस्या को हल करने में महत्वपूर्ण योगदान दे सकता है। आलू के बीजों से उगाये गये पौधे एक पीढ़ी से दूसरी पीढ़ी में बिल्कुल अलग तरीके से विकसित होंगे। कुछ जल्दी परिपक्व होंगे, जबकि कुछ देर से परिपक्व होंगे। कुछ में कंद होंगे तो कुछ में नहीं। संकरित प्रजनन इस अनियमितता को दूर कर सकता है।
संकरित प्रजनन के कई लाभ हैं। यह हमें लाभकारी लक्षणों के साथ किस्मों को बेहतर बनाने की क्षमता प्रदान करता है। प्रजनक, कठोर जलवायु जहां अधिक गर्मी और सूखा संभव है, के लिए अधिक मजबूत किस्में बना सकते हैं। संकरित प्रजनन से ऐसी किस्में बनायी जा सकती हैं, जो अधिक लवणीय स्थितियों को सहन कर सकें। इसके अलावा उपभोक्ताओं को ध्यान में रखते हुए, प्रजनक, आलू के आकार, रंग, बनावट आदि सहित स्वाद और अन्य चीजों में सुधार करने में सक्षम हो सकते हैं। संकरित प्रजनन की मदद से प्रजनक आलू की प्रोटीन (Protein) या स्टार्च (Starch) सामग्री में भी सुधार कर सकते हैं। प्रजनक आलू के आकार, भंडारण क्षमता, सुप्तावस्था आदि को कम करके अपशिष्ट सामग्री की मात्रा भी कम कर सकते हैं। इस प्रकार संकरित आलुओं को उगाना अत्यधिक फायदेमंद साबित हो सकता है।
संदर्भ:
https://bit.ly/3tNWWtR
https://bit.ly/2OlM0n3
https://bit.ly/3p8p5Zc
https://bit.ly/2Z3yQ07
चित्र संदर्भ:
मुख्य तस्वीर आलू की खेती को दर्शाती है। (प्रारंग)
दूसरी तस्वीर संकरित आलू और सामान्य आलू पर परीक्षण दिखाती है। (प्रारंग)
तीसरी तस्वीर संकरित आलू और सामान्य आलू दिखाती है। (विकिमीडिया)