सुश्रुत संहिता दूसरी और चौथी शताब्दी ईसा पूर्व के बीच लिखी गई, एक चिकित्सा पाठ है जो मौसमी खाद्य पदार्थों और स्वादों के नुसखे के बारे में बताती है। 1130 ईस्वी में चालुक्य के राजा सोमेश्वर तृतीय के शासन के दौरान संकलित सबसे शुरुआती ग्रंथ मानसोल्लास में "इडेरिका" का वर्णन मिलता है, और ऐसा माना जाता है कि इडेरिका से उनका तात्पर्य इडली से था, हालांकि इस विषय में कई लोगों ने असहमति भी दिखाई है। 920 ईस्वी में शिवकोटियाचार्य द्वारा लिखी गई कन्नड़ भाषा की कृति वड्डारधेन में “इडलिगे (iddalige)” व्यंजन के बारे में मिलने वाला उल्लेख सबसे पहला उल्लेख हो सकता है। भारत का इतिहास प्राचीन काल से रसोई की किताबों से भरा हुआ है। साथ ही यह स्पष्ट है कि कोविड-19 (Covid-19) संगरोध में विभिन्न व्यंजन पकाना सबसे लोकप्रिय गतिविधियों में से एक है। वहीं लॉकडाउन (Lockdown) के बाद से, फेसबुक (Facebook) और इंस्टाग्राम (Instagram) पाक गतिविधियों की छवियों से गुलजार हो गया है। पाक-कला संचार प्रौद्योगिकी में भी कई लोगों ने अपनी भागीदारी दी है। सिर्फ शौकिया रसोइये ही नहीं बल्कि सेलिब्रिटी शेफ (Celebrity chefs) भी अपनी पाक विधि को लाइवस्ट्रीम (Livestreams) के जरिए दिखने के लिए अपने घर-रसोई में प्रशंसकों को आमंत्रित कर रहे हैं।
यहां तक कि कोरोनोवायरस (Coronavirus) लॉकडाउन के पहले से ही इंटरनेट (Internet) में पाक सामग्री काफी प्रचलित थी और इसने हमारे पाक सामग्री के मुद्रित पाक विधि की किताब के उपयोग के तरीके को बदल के रख दिया है, परंतु इस डिजिटल (Digital) युग में रसोई में पाक विधि की किताब आज भी काफी प्रचलित हैं। जैसा कि द न्यू यॉर्कर (The New Yorker) के भोजन संवाददाता हेलेन रोज़नर (Helen Rosner) का कहना है, कि पाक विधि की किताबों में बदलते युग के साथ परिवर्तन करके नयापन लाया गया है, यही कारण है कि वे आज भी काफी प्रचलित है। जब भारतीय भोजन की बात आती है, तब भी किताबों का एक छोटा सा नमूना, जिसने पिछले दो दशकों में अंतरराष्ट्रीय बेस्टसेलर (Bestseller) सूचियों में जगह बनाई है, जो उपमहाद्वीप की पाक कलाओं को प्रदर्शित करती है: निलोफर इचोपोरिया किंग (Niloufer Ichaporia King) की माई बॉम्बे किचन (My Bombay Kitchen) एक पारंपरिक और आधुनिक पारसी व्यंजनों का एक संग्रह है।
एक पाक विधि की किताब दरसल व्यंजन बनाने की विधियों से युक्त होती है। इन किताबों में व्यंजनों को विभिन्न तरीकों से आयोजित किया जाता है: भोजन (क्षुधावर्धक, प्राथमिक भोजन, मुख्य भोजन, मिठाई) द्वारा, मुख्य सामग्री द्वारा, खाना पकाने की तकनीक द्वारा, वर्णानुक्रम द्वारा, क्षेत्र या देश द्वारा, और इसी तरह। इनमें व्यंजनों को तैयार करने की विधि और तैयार करने के चरणों के चित्र, खाना पकाने की तकनीक, रसोई के उपकरण, सामग्री और प्रतिस्थापन पर सलाह; ऐतिहासिक और सांस्कृतिक व्याख्या शामिल हो सकते हैं। पाक विधि की किताब व्यक्तिगत लेखकों द्वारा लिखी जा सकती है, जो रसोइये, खाना पकाने वाले शिक्षक या अन्य खाद्य लेखक हो सकते हैं; वे सामूहिक रूप से लिखे जा सकते हैं; या वे गुमनाम हो सकते हैं। उन्हें घर के रसोइयों, पेशेवर रेस्तरां (Restaurant) के रसोइयों, संस्थागत रसोइयों या अधिक विशिष्ट दर्शकों को संबोधित किया जा सकता है।
वहीं भारत में, कुछ शुरुआती मुद्रित व्यंजनों की किताबें 19 वीं शताब्दी में लोकप्रिय हो गईं और उन्हें एंग्लो-इंडियन (Anglo-Indians - जो कि ब्रिटिशों (British) के लिए इस्तेमाल किया जाने वाला एक शब्द था) के लिए लिखा गया था। व्यंजनों को पूर्व-औपनिवेशिक युग में पांडुलिपि के रूप में अभिलिखित किया गया था, उनका उत्पादन और उपयोग बहुत कुलीन, ज्यादातर शाही घरों तक सीमित था। तब भी, हमारी समकालीन व्यंजनों की किताबों के विपरीत, केवल व्यंजनों वाली पूरी किताबें ही दुर्लभ थीं, 15 वीं शताब्दी के उत्तरार्ध में मालवा की सल्तनत से फारसी (Persian) में एक निमाताम्न (Nimatnama) नामक कृति और सुपा शास्त्र (Supa Shastra) या खाना पकाने के विज्ञान, जिन्हें वर्तमान कर्नाटक क्षेत्र के एक जैन राजा द्वारा 15 वीं शताब्दी के आसपास ही रचा गया था, ये संग्रह के कुछ ज्ञात उदाहरण हैं जिनमें भोजन के लिए पाक-विधि के साथ-साथ कामोत्तेजक और स्वास्थ्य औषधि शामिल हैं।
साथ ही लोगों को क्या खाना चाहिए और क्या नहीं, इसके भी नुस्खे व्यापक तौर पर तैयार किए गए ग्रंथों में लिखे गए हैं। उदाहरण के लिए, 16 वीं शताब्दी की एक कृति, ऐन-ए-अकबरी (Ain-i-Akbari), मुख्य रूप से मुगल सम्राट अकबर के प्रशासन का एक अभिलेख है। लेकिन इस संग्रह में शाही रसोई की विभिन्न शाखाओं के प्रबंधन पर भी अनुभाग हैं और खिचड़ी और साग जैसे सरल व्यंजनों और घी में बने केसरयुक्त लैंब (Lamb – मेमना) बिरयानी और हलवे सहित समृद्ध व्यंजनों का वर्णन किया गया है। भारतीय व्यंजन क्षेत्रीय रूप से भिन्न हैं और विभिन्न प्रभावों के कारण सदियों से विकसित हुए हैं। भारतीय पाक कला में मसालों की प्रमुख भूमिका प्रारंभिक पाक विधि की किताबों से भी स्पष्ट है। लखनऊ की दम फुकट शैली के व्यंजन असंख्य पाक विधि की किताबों में वर्णित हैं।
पिछले कुछ दशकों से विश्व भर में अंग्रेजी में मुद्रित भारतीय पाक विधि की किताबें में फल-फूल रही हैं और अतिरंजित सांस्कृतिक दृष्टिकोण भोजन के उद्देश्य, पाक प्रक्रिया के विभिन्न गुणों और बढ़ते राष्ट्रीय व्यंजनों का प्रतिनिधित्व कर रहा है। राष्ट्रीय व्यंजनों के बारे में अर्जुन अप्पादुरई के विद्वतापूर्ण लेख, भारतीय इतिहास के धार्मिक और औपनिवेशिक दृष्टिकोण के पहलुओं में पाक शाला संबंधी यात्रा के स्पष्ट दृष्टिकोण बिंदुओं को दर्शाता है। उनकी कृतियाँ जठरांत्र और धार्मिक रीति-रिवाज के बावजूद राष्ट्रीय व्यंजनों के विकास पर प्रकाश डालती हैं। वहीं सामाजिक संपर्क के दौरान, भारतीय मध्यवर्गीय परिवार मौखिक और अनौपचारिक तरीके से पाक विधि का आदान-प्रदान करते हैं। यह उन्हें विभिन्न क्षेत्रों की खाद्य सीमाओं का पता लगाने की अनुमति देता है। मौखिक नुस्खा विनिमय प्रक्रिया पाक विधि की किताबों के विकास की नींव थी। प्राचीन काल से, भोजन भारत में व्यक्तियों की नैतिक और सामाजिक स्थिति के बीच बहुत मजबूत संबंध रखता है।
संदर्भ :-
https://bit.ly/2LvrwqV
https://en.wikipedia.org/wiki/Cookbook
https://en.wikipedia.org/wiki/Indian_cookbooks
https://bit.ly/2N4wNq3
https://bit.ly/2N7FSy2
चित्र संदर्भ:
मुख्य तस्वीर प्रसिद्ध खाना पकाने की किताबों को दिखाया गया है। (प्रारंग)
दूसरी तस्वीर पुरानी और प्रसिद्ध खाना पकाने की किताबों को दिखाती है। (प्रारंग)
तीसरी तस्वीर सबसे प्रसिद्ध और पुरानी रसोई की किताब Apicius को दिखाती है। (विकिमीडिया)