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सिंधु घाटी सभ्यता हमारे
लिए सबसे प्रारंभिक प्रसिद्ध सभ्यता है। विभिन्न पुरातत्वविदों ने भारत और
पाकिस्तान के विभिन्न हिस्सों में खुदाई की, जिससे हमें पता
चला कि, पर्याप्त रेत के नीचे इतिहास की एक सुनियोजित
और प्रगतिशील सभ्यता मौजूद थी। इस सभ्यता में वह सब कुछ था, जो आज हमारे पास है, जैसे देवियों के मंदिर, अद्वितीय संरचनाएं आदि। खुदाई में हमें जो मुहरें मिलीं, उनका एक विशिष्ट अर्थ था, जो यह बताता है कि, मुहरों का धार्मिक महत्व था। लेकिन
इनका उपयोग मुख्य रूप से उस समय के विभिन्न देशों जैसे मेसोपोटामिया (Mesopotamia) के साथ व्यापार के लिए किया गया। ऐसा माना जाता है कि, इस सभ्यता के कुल क्षेत्रफल का केवल एक तिहाई हिस्सा ही अभी तक खोजा जा सका
है। सबसे पहले खुदाई तब की गई थी, जब भारत और पाकिस्तान एक देश थे, लेकिन विभाजन के बाद सभ्यता के कई स्थल पाकिस्तान के हिस्से में चले गये और खुदाई
के लिए हमारी पहुंच से दूर हो गये। इस सभ्यता के घरों को योजनाबद्ध तरीके से ईंटों
की विशिष्ट माप और उचित जल निकासी प्रणाली के साथ बनाया गया था। इस सभ्यता के मुख्य शहरी केंद्र हड़प्पा, मोहनजोदड़ो, धोलावीरा, लोथल आदि थे। यहां सभामंडपों, धार्मिक और सामाजिक केंद्रों, निचले शहरों, दुर्ग आदि का भी निर्माण किया गया था। इस सभ्यता के अंत के बारे में अनेकों कहानियां
हैं, लेकिन अधिकतर यह माना जाता है कि, प्राकृतिक आपदा के कारण ही इस सभ्यता का अंत हुआ।
संदर्भ:
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