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यहां जो आपको नीचे दो चित्र चित्र नजर आ रहा वह दुनिया का पहला फोटोग्राफ (photograph) है। पहली नजर में शायद समझ में न आए कि यह क्या है, लेकिन यह दुनिया की सबसे पुरानी जीवित तस्वीर है जो आविष्कारक जोसफ नाइसफोर नीप्चे (Joseph Nicéphore Niépce - 1765-1833) द्वारा ली गई थी। उन्होंने इसे शीर्षक दिया- 'व्यू फ्रॉम द विंडो एट ले ग्रास' (View from the Window at Le Gras)। यह दुनिया का पहला फोटोग्राफ है, जो 194 साल पुराना है, इसे 1826 या 1827 में खींचा गया था। आज स्मार्टफोन (Smartphone) के इनबिल्ट कैमरों (inbuilt camera) के इस दौर में हम यह कल्पना भी नहीं कर सकते हैं कि इस बेहद साधारण चित्र को खींचने के लिए जोसफ को क्या कुछ नहीं करना पड़ा होगा। उस दौर में सस्ती तस्वीरों के लिए बढ़ती लोकप्रियता की मांग से प्रेरित होकर, जोसफ ने फोटोग्राफिक प्रयोगों को प्रिंट करने और कैमरे में वास्तविक जीवन से दृश्यों को रिकॉर्ड (record) करने के एक तकनीक इजात की। उन्होंने एक जस्ते की प्लेट पर प्रकाश के प्रति संवेदनशील बिटुमन (bitumen) और एक प्रकार का डामर के मिश्रण लगाया था। फिर उस प्लेट को कैमरा ओब्स्क्योरा (camera obscura) में डाला और फिर उसने इस प्लेट पर रोशनी को फोकस (focus) किया तथा कैमरे को बिना हिलाए-डुलाए ऐसे ही रहने दिया। सूरज की रोशनी के संपर्क में आने के कई घंटों बाद, प्लेट में आंगन, बाहर और पेड़ों की छाप दिखाई दी और इस प्रकार दुनिया की पहली तस्वीर प्राप्त हो गई।
उस समय तक फोटोग्राफी शब्द नहीं बना था। जोसफ ने इसे हेलियोग्राफी (héliographie) नाम दिया, जिसका मतलब होता है- रोशनी की लिखावट (sun writing)। पहले यह तस्वीर लेने की प्रक्रिया बहुत अधिक जटिल हुआ करती थी, इस तस्वीर को बरगंडी (Burgundy) के नीपेस एस्टेट (Niépce's estate) में एक ऊपर की खिड़की से लिया गया था। इस फोटो को अब टेक्सास ऑस्टिन विश्वविद्यालय (University of Texas-Austin) में स्थायी संग्रह का हिस्सा बना लिया गया है। टेक्सास विश्वविद्यालय ने बताया कि जोसफ ने इस पेट्रोलियम-आधारित पदार्थ को बिना किसी अवरोध के आठ घंटे तक एक कैमरा ओब्स्क्योरा में रहने दिया, प्रकाश ने धीरे-धीरे बिटुमेन को कठोर कर दिया और जहाँ वह टकराया, वहाँ एक अल्पविकसित फोटो बन गई। इसके बाद जोसफ ने बिटुमन के नरम हिस्से को और लैवेंडर के तेल (oil of lavender) से धोकर अलग कर दिया। परंतु बाद में यह प्लेट गुम हो गई थी और फिर 1952 में अचानक एक क्रैट (crate) में बरामद हुई। बिटुमन पॉलीसाइक्लिक एरोमैटिक हाइड्रोकार्बन (polycyclic aromatic hydrocarbons) (लिंक्ड बेंजीन रिंग (linked benzene rings)) की एक जटिल और विविध संरचना होती है, जिसमें नाइट्रोजन (nitrogen) और सल्फर (sulphur) का एक छोटा अनुपात होता है जिससे ये प्रकाश के संपर्क में आने से सख्त हो जाता है, इस गुण का पता पहली बार 1782 में जीन सेनेबियर (Jean Senebier) ने लगाया था जिसका फायदा जोसफ नाइसफोर नीप्चे बखूबी से उठाया।
कैमरे के इतिहास के बारे में बात करें तो कैमरे सबसे पहले कैमरा ऑब्स्क्योरा के रूप में आया। कैमरा शब्द लैटिन (Latin) के कैमरा ऑब्स्क्योरा से आया है जिसका अर्थ अंधेरा कक्ष होता है, जिसमें एक तरफ एक छोटा सा छेद या लेंस (lens) होता है जिसके माध्यम से दीवार पर एक छवि बनाई जाती है। इसमें जब किसी वस्तु से प्रकाश टकराकर एक छोटे से छेद से एक अंधेरे कक्ष में प्रवेश करता है तो वस्तु का प्रक्षेपण (projection) पीछे की दीवार पर दिखाई देता है। यह वस्तु से आने वाली प्रकाश किरणों के संकेंद्रित होने से संभव होता है, जिससे बॉक्स के पीछे की दीवार पर छवि न केवल उल्टी हो जाती है, बल्कि वापस सामने भी आती है। यह कैमरा मानव आंख के समान ही कार्य करता है। आज के आधुनिक कैमरे भी इसी सिद्धांत पर आधारित है। यदि शुरूआती कैमरों की तकनिकी देखि जाए तो पुराने समय में अँधेरे बक्से या कमरे का निर्माण करके ही कैमरों का निर्माण किया जाता था। हम पुरानी फिल्मों में अक्सर देखते हैं की फोटो खीचने वाला कैमरा एक बक्से की तरह हुआ करता था जिसमे कैमरामैन एक चद्दर से अपना सर ढक कर फोटो खीचा करता था। अरब भौतिक इब्न-अल-हयातम (Ibn al-Haytham) ने 11 वीं शताब्दी की शुरुआत में बड़े पैमाने पर कैमरा ऑब्स्क्योरा का अध्ययन किया था और बताया कि प्रकाश की किरणें सीधी रेखाओं में यात्रा करती हैं और छवि का निर्माण करती है। इब्न-अल-हयातम ने सूर्य के प्रकाश की किरणों का भी विश्लेषण किया और निष्कर्ष निकाला कि वे एक शंकु आकार (conic shape) बनाते हैं जहाँ वे छेद में एक बिंदु पर मिलते हैं, जिससे एक अन्य उल्टे आकार का शंकु अंधेरे कक्ष में छेद से विपरीत दीवार पर बनता है। उनका यह शोध यूरोप में बहुत प्रभावशाली हुआ, उन्होने विटेलो (Witelo), जॉन पेखम (John Peckham), रोजर बेकन (Roger Bacon), लियोनार्डो दा विंची (Leonardo Da Vinci), रेने डेसकार्टेस (René Descartes) और जोहान्स केप्लर (Johannes Kepler) जैसे लोगों को भी प्रेरित किया।
एक ऐसा ही अन्य कैमरा 19वीं शताब्दी के शुरुआत मे खोजा गया था जिसे कैमरा ल्युसीडा (camera lucida) या प्रकाश चित्रक (light painter) नाम से जाना जाता था। इसकी खोज सन् 1807 ई. मे वुलैस्टिन (Vulastine) ने की थी। जौनपुर के कई छायाचित्र इसी तकनीक के द्वारा बनाए गए हैं। जिसमें जौनपुर के अटाला मस्जिद व शाही किला प्रमुख हैं। डैनियल्स (Daniels) ने जौनपुर की प्राचीनतम छायाचित्रों का निर्माण किया था जो आज भी संग्रहालयों में विद्यमान हैं। अटाला मस्जिद का छायांकन डैनियल्स ने सन् 1802 ई. मे किया था। आज कैमरे अपने इतिहास से भले ही बदल गये हो या कई भिन्न प्रकार के कैमरे आ गये हो परन्तु उनकी कार्य शैली आज भी ओब्स्कुरा की तरह ही है।
यदि कोई व्यक्ति कैमरा ओब्स्कुरा बनाना चाहता है तो वह घर में इसे आसानी से बना सकता है। आइये अब जानते हैं की आखिर कैमरा ऑब्स्क्योरा कैसे एक बॉक्स से बनाया जा सकता है। यह बनने में करीब 20 मिनट का समय लेता है तथा इसमें एक खाली डिब्बा, टेप, कैंची और पिन का प्रयोग किया जाता है। अब यह बनाने के लिए डिब्बे के ऊपर चौरस के आकार के अनुरूप डिब्बे को काट लिया जाता है तथा डिब्बे के अन्दर टेप को चिपका दिया जाता है जो की स्क्रीन का कार्य करता है, अब डिब्बे के पिछले हिस्से में छेद कर दिया जाता है और आपका कैमरा ऑब्स्क्योरा तैयार है। इसे विभिन्न प्रकार के अन्य तकनीकों और आकारों से भी बनाया जा सकता हैं, आप चाहे तो इसे एक दूरबीन का आकार भी दे सकते है, बस इसकी कार्य शैली डिब्बे वाले कमरे के समान ही रहेगी। वास्तविकता में ऑब्स्क्योरा बनाना आज के समय में एक अत्यंत आसान कार्य हो गया है जो की कभी एक अत्यंत मुश्किल भरा कार्य हुआ करता था।
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