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कोविड-19 (Covid-19) महामारी और लंबी अवधि के लिए संबद्ध लॉकडाउन (Lockdown) ने विभिन्न क्षेत्रों पर एक प्रतिकूल प्रभाव उत्पन्न किया है, जिसमें भारत और कई अन्य देशों में कृषि और अन्य संबद्ध उप-क्षेत्र भी शामिल हैं। वर्तमान समीक्षा ने इस महामारी के प्रभाव और देश में पशुधन और मुर्गीपालन क्षेत्रों पर लॉकडाउन के प्रभाव को दर्शाया है। देशव्यापी सूचना की अपर्याप्तता के कारण पशुधन और मुर्गीपालन के विभिन्न उप-क्षेत्रों पर काफी लंबे समय तक नकारात्मक प्रभाव बना रहा। 187.7 मिलियन टन (2018-2019) के दुग्ध उत्पादन के साथ भारत ने विश्व में सबसे उच्च स्थान बनाए रखा है। वहीं 2014-2015 के बाद से दुग्ध उत्पादन सालाना 6% से अधिक बढ़ रहा है। कोविड -19 की घटनाओं के साथ, भारत में डेयरी उद्योग को देश में लगभग 25-30% की कम समग्र मांग के कारण काफी नुकसान देखना पड़ा है, कम से कम लॉकडाउन के बाद पहले 1 महीने के दौरान।
भारत, वर्तमान में, मात्रा के मामले में चौथा सबसे बड़ा मुर्गीपालन उत्पादक है। ऐसा अनुमान लगाया गया है कि 2019 के दौरान लगभग 3.8 मिलियन टन का खुदरा मूल्य लगभग 85,000 करोड़ रुपये रहा था। उसी समय, देश में 109 बिलियन अंडे का अनुमानित कीमत लगभग 45,000 करोड़ रुपये थी। पिछले तीन वर्षों तक इस क्षेत्र में 10-12% की वृद्धि को देखते हुए 2020 में इसमें अच्छी वृद्धि का अनुमान रहा था। हालांकि वर्ष के शरुआत में महामारी की वजह से इस क्षेत्र ने काफी नुकसान को देखा। भले ही केंद्र और राज्य सरकारों ने खाद्य वस्तुओं से निपटने वाली दुकानों के उद्घाटन पर कई प्रतिबंध नहीं लगाए, जिनमें मांस और अंडे की बिक्री शामिल है, लोगों की कम आवाजाही ने इन उत्पादों के बाजार में बाधा उत्पन्न की। संभवतया, अधिकांश मांसाहारी आबादी इन खाद्य पदार्थ को बहुत आवश्यक नहीं मानते थे और किसी भी प्रकार का जोखिम उठाने और दूर स्थानों से इनकी खरीद करने के लिए अनिच्छुक थे, क्योंकि ऐसे मांस और मांस उत्पाद आमतौर पर केवल कुछ आवंटित स्थानों में ही उपलब्ध होते हैं। यह ज्ञात है कि भारत के उपभोक्ता बड़े पैमाने पर ताजा कटे हुए चिकन खाना पसंद करते हैं और इसलिए, देश में लगभग 90% मुर्गियों की बिक्री असंगठित खुदरा दुकानों तक ही सीमित है।
हालांकि, फास्ट-फूड रेस्तरां (Fast-food restaurants) या त्वरित-सेवा वाले रेस्तरां के बंद होने से मांग पर बहुत असर पड़ा, परिवहन श्रृंखलाओं का विघटन, उपज की अस्थिरता और शहरों में कई थोक बाजारों और मॉलों (Mall) की आपूर्ति प्रभावित हुई। कोविड-19 के प्रसार से बचने के लिए हजारों जीवित पक्षियों को दफनाने, जलाने और मुफ्त में देने जैसी कई चौंकाने वाली घटनाएं सामने आई थी। वहीं पशुधन, ग्रामीण अर्थव्यवस्था का एक महत्वपूर्ण घटक है इसलिए मत्स्य मंत्रालय के तहत पशुपालन और दुग्ध विभाग को भी पशुधन और इससे सम्बंधित सटीक सूचनाओं के संग्रह और उपलब्धता के लिए महत्वपूर्ण माना जाता है। देश में पशुधन जनगणना वर्ष 1919 में शुरू हुई थी। जनगणना में आमतौर पर सभी पालतू जानवरों को शामिल किया जाता है। भारत के कुल सकल घरेलू उत्पाद में पशुधन क्षेत्र का कुल योगदान लगभग 4.11% है। 2014-15 के दौरान मौजूदा कीमतों पर पशुधन क्षेत्र से उत्पादन का मूल्य लगभग 537535 करोड़ रुपये था जोकि कृषि, मत्स्य पालन और वानिकी क्षेत्र से उत्पादन के मूल्य का लगभग 25.63 प्रतिशत था। पशुधन क्षेत्र मूल स्थिति में 110 लाख लोगों को तथा सहायक स्थिति में 90 लाख लोगों को नियमित रोजगार प्रदान करता है। फसल क्षेत्र में 35 प्रतिशत की तुलना में पशुधन क्षेत्र में महिलाएं 70 प्रतिशत श्रम शक्ति का गठन करती हैं।
संपूर्ण देश में 18 वीं पशुधन जनगणना अक्टूबर 2007 में की गयी थी जिसने 2007 में कुल पशुधन आबादी को 5,297 लाख और मुर्गीपालन पक्षियों की आबादी को 6,488 लाख पर रखा। इस जनगणना के अनुसार पूरे विश्व में भैंस की जनसंख्या के लिए भारत का स्थान पहला, मवेशियों और बकरियों के लिए दूसरा, भेड़ के लिए तीसरा, बत्तख के लिए चौथा, मुर्गियों के लिए पांचवा, और ऊंट के लिए छटवां है। 2015-16 के दौरान पशुधन ने 1379.7 लाख टन दूध, 6973 करोड़ अंडे और 447.3 लाख किलोग्राम ऊन, 26.8 लाख टन मांस और 94.5 लाख टन मछली का योगदान दिया। 2012 में देश में मवेशी, भैंस, भेड़, बकरी, सुअर, घोड़े, खच्चर, गधे, ऊंट, याक आदि को मिलाकर कुल पशुधन आबादी 5120.5 लाख थी। इस वर्ष जहां पिछली जनगणना की तुलना में कुल पशुधन आबादी में लगभग 3.33% की कमी आयी वहीं गुजरात (15.36%), उत्तर प्रदेश (14.01%), असम (10.77%), पंजाब (9.57%) बिहार (8.56%), सिक्किम (7.96%), मेघालय (7.41%), और छत्तीसगढ़ (4.34%) में पशुधन की आबादी में काफी वृद्धि हुई। 2012 में कुल गोजातीय जनसंख्या (मवेशी, भैंस, मिथुन और याक) 2,999 लाख थी, जिसने पिछली जनगणना (2007) के मुकाबले 1.57% की गिरावट को दर्शाया। गायों और भैंसों में दुधारू पशुओं की संख्या 6.75% की वृद्धि के साथ 1110.9 लाख से बढ़कर 1185.9 लाख हुई। इस वर्ष मादा मवेशियों की कुल संख्या 1,229 लाख थी जोकि पिछली जनगणना की तुलना में 6.52% बढ़ी। इसी प्रकार महिला भैंस की कुल संख्या 925 लाख थी जिसमें पिछली जनगणना के मुकाबले 7.99% की वृद्धि हुई।
20 वीं पशुधन जनगणना अक्टूबर, 2018 के दौरान शुरू की गई थी। यह जनगणना देशभर के लगभग 6.6 लाख गांवों और 89 हजार शहरी मुहल्लों में की गई थी, जिसमें 27 करोड़ से अधिक घरों और गैर-घरों को आवरित किया गया था। 20 वीं पशुधन की जनगणना की एक और महत्वपूर्ण विशेषता यह थी कि यह जानवरों और मुर्गीपालन पक्षियों की नस्ल-वार संख्या को अधिकृत करने के लिए डिज़ाइन (Design) की गयी थी। उत्तर प्रदेश राज्य में 2012 और 2019 में पशुधन जनसंख्या क्रमशः 687 और 678 लाख थी। महामारी के खतरे को कम करने के लिए सामाजिक दूरी की आवश्यकता है और कई एहतियाती उपायों का पालन करना, और लॉकडाउन की स्थिति ने भी हम में से प्रत्येक को आने वाले दिनों और वर्षों में इसी तरह की स्थिति से निपटने के लिए बेहतर तरीके से तैयार होने के लिए कई सबक सिखाए हैं।
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