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जौनपुर में इस्लामी (Islamic) वास्तुकला के कई अद्भुत उदाहरण मौजूद हैं। शर्की सम्राटों के तहत, जौनपुर इस्लामी कला, वास्तुकला और सीखने का एक महत्वपूर्ण केंद्र बना। इस वास्तुकला के अधिकांश ढांचे तब नष्ट हो गए, जब सिकंदर लोदी (Sikander Lodi) ने जौनपुर पर पुनः विजय प्राप्त की। यहां के अधिकांश कार्यों में वास्तुकला की एक बहुत ही सामान्य विशेषता देखी जा सकती है, और वह है, इसका इस्लामिक ज्यामितीय और संग्रथित पैटर्न या प्रतिरूप (Interlace patterns)। इस्लामी सजावट में इन दोनों ही सजावट रूपों का अत्यधिक महत्व है, यहां तक कि, इन्हें इस्लामी और मूरिश (Moorish) कला की पहचान भी माना जाता है।
इस्लामी कला के सजावटी पैटर्न को देंखे, तो इसे मौटे तौर पर तीन भागों में बांटा गया है, जिनमें अरबस्क (Arabesque), ज्यामितीय प्रतिरूप और हस्तलिपि शामिल हैं। इन तीनों ही प्रकारों में अक्सर विस्तृत संग्रथित पैटर्न दिखायी देता है। इस्लामिक अरबस्क की बात करें, तो यह कलात्मक सजावट का एक रूप है, जिसमें सपाट सतहों की सजावट को शामिल किया जाता है। इसमें कुंडलीनुमा और संग्रथित पत्तियों, तनों और रेखाओं के लयबद्ध रैखिक पैटर्न सम्मिलित किए जाते हैं, जो अक्सर अन्य तत्वों के साथ भी संयुक्त होते हैं। आमतौर पर इसमें एक एकल डिज़ाइन (Design) बनाया जाता है, जिसे वांछित रूप से कई बार दोहराया भी जा सकता है। सजावटी पैटर्न का अन्य रूप, हस्तलिपि, इस्लामी कला का केंद्रीय तत्व मानी जाती है, जो रूचिपूर्ण और धार्मिक संदेश का संयोजन होती है। यह कभी-कभी सजावट का मुख्य रूप होती है, लेकिन कई बार इसे अरबस्क के साथ भी उपयोग में लाया जाता है। इसका उपयोग अधिकतर मस्जिदों, मदरसों और मकबरों जैसी इमारतों की सजावट के लिए किया जाता है। इस्लामी कला के सजावटी ज्यामितीय पैटर्न की यदि बात करें तो, इन्हें ज्यामितीय आकृतियों जैसे वर्गों, वृत्तों आदि के दोहरे संयोजनों से बनाया जाता है। ये संयोजन एक दूसरे को अतिव्यापित तथा संग्रथित करते हैं। ज्यामितीय प्रतिरूप अरबस्क के साथ संयोजित होकर अधिक जटिल और मिश्रित प्रतिरूप बनाते हैं। प्रत्येक ज्यामितीय आकृति का अपना एक विशेष महत्व होता है, जो किसी न किसी चीज का प्रतीक होता है। उदाहरण के लिए वृत के आकार को एकता और विविधता का प्रतीक माना जाता है।
इस्लामी कला और वास्तुकला में ज्यामितीय पैटर्न के विभिन्न रूप देखे जा सकते हैं, जिनमें किलिम कार्पेट्स (Kilim carpets), फारसी गिरिह (Persian Girih), मोरक्कन ज़ुलेइल टाइलवर्क (Moroccan Zellige Tilework), मुकर्नस सजावटी वॉल्टिंग (Muqarnas Decorative Vaulting), सिरेमिक (Ceramics), चमड़ा, रंजित कांच, वुडवर्क (Woodwork - लकड़ी का काम), मेटलवर्क (Metalwork - धातु का काम) आदि शामिल हैं। माना जाता है, कि इस्लामी कला में उपयोग किये जाने वाले प्रतिरूपों की उत्पत्ति ग्रीक (Greek), रोमन (Roman) और सासैनियन (Sasanian) की पूर्व संस्कृतियों में उपयोग किये गये सरल डिजाइनों से हुई थी।
ज्यामितीय और संग्रथित पैटर्न की मुख्य विशेषता यह है कि, इसमें प्राकृतिक वस्तुओं का प्रतिनिधित्व नहीं किया जाता। इसका मुख्य कारण इनका इस्लामी कला से जुड़ा होना है, जो शुद्ध अमूर्त रूपों पर अपनी एकाग्रता द्वारा पहचानी जाती है। इस्लामी सजावट कला में मानव या जानवरों के जीवित रूपों के उपयोग का निषेध किया गया है। इसलिए यह कला आलंकारिक छवियों का उपयोग करने से बचती है।
इस्लामी संस्कृति में, इन प्रतिरूपों को आध्यात्मिक क्षेत्र के लिए एक पुल के रूप में देखा जाता है, जो मन और आत्मा को शुद्ध करने का एक साधन माना जाता है। यह वास्तुकला उनकी चीनी मिट्टी की कला, कपड़ा या किताबों की कला आदि में भी देखी जा सकती है, जो आत्मा को परमात्मा से जोड़ने का कार्य करती है।
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