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भारत में जबकि अधिकांश उत्सव चंद्र-सौर हिंदू पंचांग के चंद्र चक्र द्वारा निर्धारित होते हैं, तो वहीं कुछ सौर चक्रों के अनुसार भी मनाए जाते हैं, जिनमें मकर संक्रांति भी एक है। भारत और नेपाल (Nepal) के प्राचीन उत्सवों में से एक यह पर्व लगभग हमेशा हर साल एक ही ग्रेगोरियन (Gregorian) तारीख (14/15 जनवरी) को आता है, हालांकि किसी साल इसकी तारीख आगे भी हो जाती है। इस उत्सव को उत्तरायण के रूप में भी जाना जाता है, क्यों कि, इस दिन से सूर्य उत्तर दिशा की ओर यात्रा करना शुरू करता है। पूरे भारत में यह पर्व विभिन्न नामों और परंपराओं के तहत फसल उत्सव के रूप में मनाया जाता है। ऐसा विश्वास है कि, इस दिन सूर्य का मकर राशि में प्रवेश भी होता है। मकर संक्रांति मुख्य रूप से हिंदू देवता सूर्य को समर्पित है, जिनका उल्लेख ऋग्वेद जैसे हिंदू ग्रंथों में किया गया है। गायत्री मंत्र में भी हम सूर्य भगवान का उल्लेख सुनते हैं।
इस दिन कई आध्यात्मिक अभ्यास किए जाते हैं, जिनमें गंगा, यमुना, कावेरी, कृष्णा आदि नदियों में डुबकी लगाना शामिल है।
ऐसा विश्वास है कि, इन नदियों में डुबकी लगाने से पिछले सारे पाप नष्ट हो जाते हैं। लोग अपनी सफलता और समृद्धि के लिए सूर्य भगवान से प्रार्थना करते हैं तथा उन्हें धन्यवाद देते हैं। ऐसा विश्वास किया जाता है कि, मकर संक्रांति के दिन अगर किसी की मृत्यु होती है, तो वह पुनः जन्म नहीं लेता तथा उसे सीधे स्वर्ग की प्राप्ति होती है। इसके अलावा मकर संक्रांति के दिन अधिकांश स्थानों पर एक विशेष प्रकार की मिठाई भी तैयार की जाती है, जिसे मुख्य रूप से गुड़, तिल आदि से बनाया जाता है। यह मिठाई व्यक्तियों के बीच विभिन्न प्रकार की असमानताओं के बावजूद भी एक दूसरे के साथ प्रेम और आंनद के साथ रहने का प्रतीक है। भारत के कई भागों में यह काल रबी की फसल और कृषि चक्र की शुरूआत के समय को इंगित करता है, जिसके अंतर्गत फसलें प्रायः बो दी जाती हैं तथा खेतों में कठिन कार्य लगभग समाप्त हो जाता है। इस प्रकार यह पर्व समाजीकरण का प्रतीक भी है, जिसमें परिवार के लोग एक दूसरे के साथ समय बिताते हैं, मवेशियों की देखभाल करते हैं तथा होलिका जलाकर उत्सव मनाते हैं। हर बारह साल में मकर संक्रांति के साथ कुंभ मेले का भी आयोजन किया जाता है, जो दुनिया के उन सबसे बड़े मेलों में से एक है, जिसमें बहुत बड़ी संख्या में लोग एकत्रित होते हैं।
यूं तो, पूरे भारत में इसे मनाने के अनेकों तरीके हैं, लेकिन अधिकांश स्थानों जैसे गुजरात, महाराष्ट्र आदि में इसे पतंग उड़ाकर मनाया जाता है। पतंग उड़ाने का खेल प्रातः काल से ही शुरू हो जाता है। सुबह के समय पतंग उड़ाने के पीछे यह मान्यता है कि, जब सुबह की धूप शरीर पर पड़ती है, तो यह शरीर में मौजूद संक्रमण, बीमारी, और हानिकारक जीवाणुओं को नष्ट कर देती है। इसके अलावा सूर्य की रोशनी से शरीर को विटामिन डी (Vitamin D) भी प्राप्त होता है। इस दिन गुड़, तिल, मूंगफली आदि खाना भी अच्छा माना जाता है, क्यों कि, ये सभी खाद्य पदार्थ सर्दियों में शरीर को गर्म रखने में मदद करते हैं।
विभिन्न क्षेत्रों में यह पर्व अलग-अलग तिथियों में होने के कारण विभिन्न नामों से जाना जाता है। उदाहरण के लिए, उत्तर भारतीय हिंदुओं और सिखों द्वारा, इसे माघी कहा जाता है, जिससे पहले दिन लोहड़ी का उत्सव मनाया जाता है। इसके अलावा गुजरात में इसे उत्तरायण, असम में भोगली बिहू, उत्तर प्रदेश में खिचड़ी, आंध्र प्रदेश और तेलंगाना में पेद्दा पांडुगा आदि नामों से भी जाना जाता है।
भारत के अलावा यह पर्व म्यांमार (Myanmar), श्री लंका (Sri Lanka), थाईलैंड (Thai Land), कंबोडिया (Cambodia) आदि देशों में बड़े उत्साह के साथ मनाया जाता है।
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