आखिर क्‍यों नहीं छापती सरकार असीमित पैसे?

जौनपुर

 12-01-2021 11:46 AM
सिद्धान्त I-अवधारणा माप उपकरण (कागज/घड़ी)

पैसा किसी भी देश को सामाजिक-आर्थिक आधार प्रदान करता है, इसे लेकर जीवन में एक ना एक बार तो हमारे दिमाग में यह प्रश्‍न जरूर उठता है कि यदि सरकार के पास पैसे छापने की मशीन है तो यह एक बार में ढेर सारे पैसे क्‍यों नहीं छाप देती जिससे देश से गरीबी-भुखमरी दूर हो जाए। वास्‍तव में अधिक पैसे छापना आर्थिक वृद्ध‍ि नहीं होती वरन् यह देश में मात्र नकदी के प्रसार को बढ़ाता है। किसी भी देश में कितने नोट छापने हैं यह उस देश की सरकार, केंद्रीय बैंक, जीडीपी (GDP) , राजकोषीय घाटा और विकास दर के हिसाब से तय किया जाता है। हमारे देश में रिजर्व बैंक (Reserve Bank) तय करती है कि कब और कितने नोट छापने हैं। केंद्रीय बैंक ने पैसों की छपाई की सीमा को निर्धारित करने के लिए कोई विशेष मूल्य या पैटर्न को परिभा‍षित नहीं किया गया है। बस इतना आवश्‍यक है कि यह पैसे सेवाएं प्रदान करने, वस्‍तु हस्‍तांतरित करने और मुद्रा के मूल्य को पुनः प्राप्त करने के लिए पर्याप्त होने चाहिए। सामान्‍यत:, केंद्रीय बैंक कुल सकल घरेलू उत्पादन का लगभग 2-3% प्रिंट (print) करता है। यह प्रतिशत किसी देश की अर्थव्यवस्था पर निर्भर करता है और तदनुसार भिन्न-भिन्‍न हो सकता है। विकासशील देश कुल जीडीपी का 2-3% से अधिक प्रिंट करते हैं। पैसे का परिसंचरण काले धन की मात्रा पर भी निर्भर करता है और बदले में वैध प्रणाली में धन की उपलब्धता को प्रभावित करता है। कोई देश जितनी चाहे उतनी मुद्रा को प्रिंट कर सकता है लेकिन उसे प्रत्येक नोट को एक अलग मूल्य देना होगा जिसे मूल्यवर्ग कहा जाता है।
अगर कोई देश जरूरत से ज्यादा मुद्रा छापने का फैसला करता है, तो सभी निर्माता और विक्रेता अधिक पैसे की मांग करने लगते हैं। यदि मुद्रा का उत्पादन 100 गुना बढ़ा दिया जाता है, तो मूल्य निर्धारण भी उसी के अनुसार बढ़ जाएगा। मुद्रित धन का उत्पादन वस्तुओं और सेवाओं के मूल्य के साथ सही संतुलन होना चाहिए। यही कारण है कि कोई भी देश अपनी अर्थव्‍यवस्‍था के सफल होने पर ही अधिक अधिक मुद्रा या धन का उत्पादन कर सकता है। मुद्रा की अधिक आपूर्ति से मुद्रास्फीति में वृद्धि होती है और बदले में क्रय क्षमता घट जाती है। विकसित देशों में, आमतौर पर मांग और आपूर्ति समान अनुपात में होती है, इसीलिए वस्‍तु और सेवाएं एक साथ संतुलन में चलती हैं। यदि हम दूसरे पहलु से देखें तो माना हमारे पास 1 रुपये के केवल 100 नोट हैं और देश में 200 लोग हैं। अत: हर किसी को लेनदेन करने में सक्षम बनाने के लिए हमें कम से कम 200 नोटों की आवश्यकता होगी। यह उन कई कारणों में से एक है कि जिसमें देश को वृद्धिशील धन प्रिंट करने की आवश्यकता होती है। भारत, इंडोनेशिया या चीन जैसी विकासशील अर्थव्यवस्थाओं में हर साल उनके लाखों नागरिक गरीबी रेखा से ऊपर उठ रहे हैं। सरकार को इन लोगों के लिए मुद्रा उपलब्‍ध करानी है ताकि उनकी मांगों (मुद्रा) को पूरा किया जा सके। वृद्धिशील मुद्रा आपूर्ति अर्थव्यवस्था में वास्तविक उत्पादन के लिए समाआनुपातिक होना चाहिए अन्यथा यह मुद्रा की अतिरिक्त आपूर्ति की समस्‍या को बनाएगा। माना सरकार अत्‍यधिक पैसे छापकर एक एक करोड़ रूपय सब से खाते में डाल देती है। अब हर कोई एक करोड़ का मालिक बन जाएगा और इस स्थिति में लोग कार, एयर कंडीशनर (Air conditioner), फ्रिज (Fridge) और उन सभी चीजों को खरीदना शुरू कर देंगे जो वे पहले वहन करने में सक्षम नहीं थे। क्योंकि क्रय शक्ति में वृद्धि हो गई है तो अब लगभग सभी वस्तुओं और सेवाओं के लिए मांग बढ़ जाएगी। दूसरी ओर चूंकि कोई तकनीकी विकास नहीं हुआ है या वास्तविक उत्पादन में वृद्धि नहीं हुई है, तो वस्‍तुओं और सेवाओं की कुल आपूर्ति समान रहेगी। इससे मांग और आपूर्ति के बीच बड़ी खाई बन जाएगी। अमीर बनने की प्रक्रिया में, एक देश को तकनीकी रूप से उन्नत और अधिक प्रतिस्पर्धी होने की आवश्यकता है। राष्ट्रीय आय में वृद्धि विशुद्ध रूप से मौद्रिक (नाममात्र) होगी। कारण यह है कि किसी भी तरह से आर्थिक रूप से उत्पादन में सुधार करने के लिए अधिक धन की छपाई की जरूरत नहीं होती है। यह महंगाई का कारण बनता है। एक देश स्थानीय रूप से उत्पादित वस्तुओं और सेवाओं की उच्च मांग के माध्यम से धन प्राप्त करके आर्थिक विकास के मार्ग पर आगे बढ़ता है। भारतीय रिज़र्व बैंक (RBI), इसका मुख्यालय मुंबई, में स्थित है, भारत में मुद्रा का प्रबंधन करता है। इसका अन्‍य कार्य देश की जमा प्रणालियों को विनियमित करना और भारत में वित्तीय स्थिरता स्थापित करने के लिए मौद्रिक नीति का उपयोग करना है। 1934 से पहले, भारत सरकार के पास पैसे छापने की जिम्मेदारी थी। हालाँकि, भारतीय रिज़र्व बैंक अधिनियम 1934 के आधार पर RBI को मुद्रा प्रबंधन के अधिकार दे दिए गए। विशेष रूप से, RBI अधिनियम की धारा 22 इसे मुद्रा जारी करने का अधिकार देता है। भारतीय रिज़र्व बैंक के पास देवास (Dewas), मैसूर (Mysore) और सालबोनी (Salboni) में मुद्रण सुविधाएँ हैं। भारतीय रिज़र्व बैंक (RBI) भारत में मुद्रा का मुद्रण और प्रबंधन करता है, जबकि भारत सरकार इसके परिसंचरण का नियमन करती है। सिक्कों की ढलाई के लिए भारत सरकार द्वारा करवायी जाती है। RBI को 10,000 रुपए के नोटों तक की मुद्रा छापने की अनुमति है। जालसाजी और धोखाधड़ी को रोकने के लिए, भारत सरकार ने 2016 में 500 और 1,000 रुपये के नोटों को प्रचलन से वापस ले लिया। सरकार ने कहा कि इस अभ्यास का मुख्य उद्देश्य काले धन, जिसमें वह आय भी शामिल थी, जिसकी रिपोर्ट नहीं की गई थी; भ्रष्टाचार, अवैध माल की बिक्री और अवैध गतिविधियों जैसे मानव तस्करी; और जाली मुद्रा आदि पर पर अंकुश लगाना था। अन्य उल्लिखित उद्देश्यों में कर आधार का विस्तार करना और करदाताओं की संख्या बढ़ाना ; नकदी द्वारा किए गए लेनदेन की संख्या को कम करना; आतंकवादियों और कट्टरपंथी समूहों जैसे माओवादियों और नक्सलियों के लिए उपलब्ध वित्त को कम करना; और औपचारिक और अनौपचारिक अर्थव्यवस्थाओं को एकीकृत करना शामिल था। विमुद्रीकरण की घोषणा के बाद जनता को आने वाले हफ्तों में नकदी की कमी का सामना करना पड़ा, जिसने पूरी अर्थव्यवस्था में व्यवधान पैदा किया। अपने बैंकनोटों का आदान-प्रदान करने के लिए लोगों को लंबी कतारों में खड़ा होना पड़ा, और इस फैसले के कारण कई लोगों की जान भी चली गयी। भारतीय रिज़र्व बैंक की 2018 की रिपोर्ट के अनुसार, विमुद्रीकृत बैंक नोटों का लगभग 99।3%, या 15।41 लाख करोड़ रुपये का 15।30 लाख करोड़ (15।3 ट्रिलियन) बैंकिंग प्रणाली के पास जमा किया गया। लेकिन 10,720 करोड़ (107।2 बिलियन) बैंक नोटों को जमा नहीं किया गया, जिससे विश्लेषकों का कहना था कि अर्थव्यवस्था से काले धन को हटाने का प्रयास विफल रहा है। घोषणा के अगले दिन बीएसई सेंसेक्स (BSE SENSEX ) और निफ्टी (NIFTY ) 50 शेयर सूचकांक 6 प्रतिशत से अधिक गिर गए। इस कदम ने देश के औद्योगिक उत्पादन और इसकी जीडीपी विकास दर को भी कम कर दिया।
विमुद्रीकरण के बाद, नकली 100 और 50 के नोटों की संख्या में वृद्धि हुई। नकली 500 और 1,000 (डिमनेटाइज्ड वर्जन) नोटों की संख्या में 2016-17 में वृद्धि देखी गई और बाद में 2017-18 में इसमें गिरावट आई। लेकिन 2017-18 में, पिछले वर्ष की तुलना में नकली 500 और 2,000 (नए संस्करण) नोटों की वृद्धि हुई। पता चला नकली नोटों की संख्या में कोई महत्वपूर्ण बदलाव नहीं हुआ हैं। 2017-18 में, नकली नोटों की संख्या का पता चला था, जो विमुद्रीकरण से पहले की संख्या के करीब था। अनेक बाजारों में दुकानों को आयकर विभाग के छापे के डर के कारण से बंद कर दिया गया। हवाला ऑपरेटर भी भागे-भागे फिरने लगे और सोचने लगे कि इस तरह की भारी नकदी के साथ क्या करना चाहिए। देश के कई राज्यों में आयकर विभाग ने छापे मारे। 18 नवंबर को व्यवसाय चलाने के लिए पैसे नहीं होने का हवाला देते हुए मणिपुर में अखबारों ने अपने कार्यालय बंद कर दिए। इसके परिणामस्वरूप शुक्रवार के बाद से मणिपुर में अखबार नहीं छपे। जब तक स्थिति सामान्य नहीं हो जाती और पैसे की उपलब्धता नहीं हो जाती, तब तक कार्यालय बंद रहेंगे, ऐसी बात बताई गई। 500 और 1000 रुपये के नोटों का विमुद्रीकरण से उत्पन्न नकदी की कमी की समस्या से निपटने के लिये भारत सरकार ने डिजिटल (digital) भुगतान को प्रोत्साहन देना आरंभ किया है। प्रोत्साहन के लिये डिजिटल भुगतान करने पर सेवा कर में छूट तथा कई इनामों की घोषणा की गयी है। भारत में विमुद्रीकरण के निर्णय से प्रभावित होकर कुछ अन्य देशों ने भी विमुद्रीकरण का निर्णय लिया है जिसमें बेनेजुएला और आस्ट्रेलिया शामिल हैं। पाकिस्तान की सीनेट ने भी 5000 के नोटों की बंदी का प्रस्ताव किया है। हालांकि इनमें से कुछ देश स्‍वयं को भारत के समान संभाल नहीं पाए।

संदर्भ:
https://bit.ly/38oASxi
https://bit.ly/2MHf8UZ
https://bit.ly/2XoWBig
https://bit.ly/38s9iiA
https://bit.ly/2XlsOHx
चित्र संदर्भ:
मुख्य तस्वीर में भारतीय मुद्रा को दिखाया गया है। (Wikimedia)
दूसरी तस्वीर में मुद्रा का मुद्रण दिखाया गया है। ((loc.getarchive))
तीसरी तस्वीर में सीरियल नंबर में भारतीय मुद्रा को दिखाया गया है। (Pixahive)


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