भारत के कुछ प्रसिद्ध अंत:कक्ष खेलों का इतिहास

जौनपुर

 11-01-2021 10:56 AM
हथियार व खिलौने

एक शानदार खेल को खेलने वाले राजाओं की प्रसिद्ध कहानियाँ राजाओं में पीढ़ी-दर-पीढ़ी प्रचलित है, जिसमें एक विशेष कहानी एक राजा के बारे में बताती है, जिसके पास 2 प्रशिक्षित चूहे थे जिन्हें "सुंदरी और मुंद्री" कहा जाता था। यह राजा अपने प्रतिद्वंद्वी को विवरण, कहानियों और कथाओं से विचलित कर देता था। वह फिर मौका देख कर सुंदरी और मुंद्री को आवाज लगाता है और जब प्रतिद्वंद्वी का ध्यान कथा की ओर होता है तब वे चूहे प्रतिद्वंद्वी की गोटियों को हिला देते थे। बिल्कुल सही हम यहाँ पर चौपड़ के खेल की बात कर रहे हैं। वहीं ऐसा माना जाता है कि युधिष्ठिर और दुर्योधन के बीच महाकाव्य महाभारत में खेले गए पासे वाले खेल का ही चौपड़ रूपांतर है। इस खेल को अधिकतम चार खिलाड़ी खेलते हैं। प्रत्येक एक पट्टी के सामने बैठते हैं और पट्टी के केंद्र को घर कहा जाता है। शुरू करने के लिए, प्रत्येक खिलाड़ी को पासे को फेंकना होता है।
उच्चतम अंकों वाला खिलाड़ी पहले शुरू करता है। एक खिलाड़ी खेल में अपनी गोटी तभी ला सकता है जब उसके पास ‘उचित’ अंक हों, जैसे, 11, 25 या 30 अंक या उससे अधिक। गोटी बाहरी परिधि स्तंभों के चारों ओर गणनाफलक दक्षिणावर्त दिशा में चल सकती है। इससे पहले कि कोई खिलाड़ी अपनी किसी भी गोटी को ‘घर’ ला सके, उसे दूसरे खिलाड़ी की कम से कम एक गोटी को काटना होता है। इसे ‘तोड़’ कहा जाता है। केवल खिलाड़ी की अपनी गोटी ही उस खिलाड़ी के घर के खाने में प्रवेश कर सकती हैं। एक बार जब गोटी फूल की आकृति को पार कर लेती है, तो यह इंगित करता है कि वो गोटी अब सुरक्षित है। इस खेल की विविधताएं पूरे भारत और पाकिस्तान के कुछ हिस्सों में खेली जाती हैं। यह पचीसी, पारचेसी और लूडो (Ludo) के कुछ मायनों में समान है। पंजाब, हरियाणा और राजस्थान के अधिकांश गांवों में, यह खेल वृद्ध व्यक्तियों द्वारा खेला जाता है।
जबकि पच्चीसी एक तिरछे और गोल आकार का बोर्ड गेम (Board game) है जिसकी उत्पत्ति मध्यकालीन भारत में हुई थी और इसे "भारत का राष्ट्रीय खेल" के रूप में वर्णित किया गया है। ऐसा कहा जाता है कि पच्चीसी का खेल भगवान शिव और देवी पार्वती द्वारा भी खेला जाता था। उत्तर भारत के फतेहपुर सीकरी में 16वीं सदी में इसे अकबर के दरबार में भी खेला जाता था। दरबार को ही लाल और सफेद वर्गों में विभाजित किया हुआ था और दासों को खिलाड़ियों की गोटी के रंग के कपड़े पहनाए जाते थे, जो पासे के अनुसार चाल चलते थे। 1938 में, अमरीकी (America) खिलौना कंपनी (Company) ट्रांसोग्राम (Transogram) ने बाज़ार में बेचने योग्य इस बोर्ड गेम संस्करण की शुरुआत की, जिसे गेम ऑफ इंडिया (Game of India) नाम दिया गया। उसे बाद में पा-चिज़-सी: द गेम ऑफ़ इंडिया (Pa-Chiz-Si: The Game of India) के रूप में विपणन किया गया था।
पच्चीसी को दो, तीन या चार खिलाड़ियों के साथ खेला जाता है, चार आमतौर पर दो समूहों में खेलते हैं। एक समूह के पास पीली और काली गोटियाँ होती हैं, वहीं दूसरे समूह में लाल और हरे रंग की गोटियाँ होती हैं। जो समूह अपने सभी टुकड़ों को सबसे पहले अंतिम स्थान पर ले जाता है, वह खेल जीत जाता है। इस खेल के बोर्ड को आमतौर पर कपड़े पर कढ़ाई करके बनाया जाता है। खेल का क्षेत्र क्रॉस (Cross) या प्लस (Plus) के आकार का होता है। केंद्र में एक बड़ा वर्ग होता है, जिसे चरकोनी कहा जाता है। यह गोटियों का शुरुआती और अंतिम स्थान होता है। प्रत्येक खिलाड़ी का उद्देश्य अपनी सभी चार गोटियों को पूरी तरह से एक बार बोर्ड के चारों ओर गणनाफलक दक्षिणावर्त की दिशा के विपरीत ले जाना होता है। प्रत्येक खिलाड़ी द्वारा पासा फेंकने पर खेलने का क्रम तय किया जाता है। उच्चतम अंक वाला खिलाड़ी दुबारा से शुरू करता है, और बोर्ड के चारों ओर गणनाफलक दक्षिणावर्त की दिशा में खेलना आरंभ करता है। कुछ संस्करणों में, प्रत्येक खिलाड़ी पासे को फेंकता है और 2, 3 या 4 आने तक गोटी को आगे नहीं बढ़ाते हैं। इसे खेलने के कई सारे संस्करण मौजूद हैं। इन खेलों में से किसी एक का पहला वर्णन 16 वीं शताब्दी में किया गया था, जब आगरा और फतेहपुर सीकरी में मुगल सम्राट अकबर के दरबार में चौपड़ एक सामान्य जुआ खेल था। जिस तरह पच्चीसी बोर्ड के चित्र अकबर के महलों और राजस्थानी और पहाड़ी लघु चित्रों में पूरे भारत में पाए जा सकते हैं, उसी तरह चाहे पारचेसी के रूप में या किसी अन्य नाम के तहत, अमेरिकी घरों में आठ या उससे अधिक आयु के बच्चों के बीच यह बड़ी संख्या में देखा जा सकता था। वहीं आज मोबाइल फोन (Mobile Phone) के बढ़ते चलन से ग्रामीण क्षेत्रों के युवा मिट्टी से जुड़े खेलों से दूर होते जा रहे हैं। एक ऐसा खेल 'सुरबग्घी' भी है, जो अपनी पहचान खो रहा है। पहले के समय में जमीन के बीचों-बीच सुरबग्घी की चौकोर बिसात बनाई जाती थी जो कुछ हद तक चाईनीज़ चेकर (Chinese Checker) और शतरंज के खेलों से मिलती जुलती थी। चाईनीज़ चेकर जर्मन (German) मूल का एक रणनीति एक रणनीति आधारित बोर्ड गेम है जिसे दो, तीन, चार या छह लोग व्यक्तिगत रूप से या भागीदारी में खेल सकते हैं। चाईनीज़ चेकर का खेल हल्मा खेल का एक आधुनिक और सरलीकृत रूपांतर है। ऐसे ही सुरबग्घी खेल में 32 गोटियों की ज़रूरत पड़ती हैं, जिसमें 16 गोटियां एक खिलाड़ी के पाले में होती हैं और बाकी 16 दूसरे खिलाड़ी के पास होती हैं। दोनों पक्षों की गोटियों का रंग अलग होता है। इसे जीतने के लिए दिमाग का इस्तेमाल अधिक होता है क्योंकि आपकी एक गलत चाल आपको हरा सकती है और इसलिए खेल खेलने वाले खिलाड़ियों को इसे बड़े ध्यानपूर्वक खेलने की आवश्यकता होती है। इस खेल में बनाई गई चौकौर बिसात में बिन्दु के सहारे एक पंक्ति पर गोटियाँ चलाई जाती हैं। मान लीजिए कि आपकी और आपके विपक्षी खिलाड़ी की गोटी अगल-बगल है और तीसरा बिन्दु खाली है और आपकी गोटी बीच में है और अब चाल अगले खिलाड़ी की है। अगर विपक्षी खिलाड़ी आपकी गोटी को काट कर आगे के बिन्दु पर अपनी गोटी रख देता है, तो आपकी गोटी कट जाएगी और दूसरा खिलाड़ी बाज़ी जीत जाएगा। सुरबग्घी का खेल न सिर्फ हमारी मानसिक शक्ति को बढ़ाने में मदद करता है, बल्कि खाली समय में यह खेल मनोरंजन के अच्छे साधन की तरह भी काम करता है। पुराने समय में ग्रामीण सजावट के तौर पर लोग सुरबग्घी को अपने घर की ज़मीन या फिर दीवारों पर बनवाते थे। इससे घर के बच्चों के साथ-साथ महिलाएं भी खाली समय में यह खेल खेला करती थी। वहीं इस खेल के साक्ष्य अकबर के शासन काल से भी प्राप्त होते हैं। अकबर और उसके अधिकारी, अंत:कक्ष खेले जाने वाले खेलों के बहुत शौकीन थे। वे व्यक्तिगत रूप से ‘चंदल-मंदल’ और ‘पच्चीसी’ के खेल को खेलना पसंद करते थे। साथ ही उस समय ग्रामीण क्षेत्रों के लोग कबड्डी और सुरबग्घी खेलना बहुत पसंद करते थे। 2009 में लखनऊ के पास ग्रामीण ओलम्पिक (Olympic) खेलों का आयोजन किया गया था। इस आयोजन में कई खेल जैसे भैंस दुहना, साइकिल दौड़, नहर में तैरना, कबड्डी, वॉलीबाल (Volleyball), पतंगबाजी, रस्साकशी, शतरंज, सुरबग्घी आदि का आयोजन किया गया था। इस प्रतियोगिता में उत्तर भारत के सात राज्यों ने भाग लिया तथा पुरस्कार के रूप में पदक के बजाय देसी घी के डिब्बे दिये गये। राजस्थान, उत्तराखंड, हरियाणा, जम्मू और कश्मीर, मध्य प्रदेश, हिमाचल प्रदेश और उत्तर प्रदेश के लगभग 500 प्रतिभागियों ने ग्रामीण ओलंपिक खेल में भाग लिया। यह पहली बार था जब किसी गाँव में इस तरह के पैमाने पर राष्ट्रीय ग्रामीण खेलों का आयोजन किया गया हो।

संदर्भ :-
https://en.wikipedia.org/wiki/Chaupar
https://bit.ly/3pXqjaq
https://en.wikipedia.org/wiki/Pachisi
http://www.chapatimystery.com/archives/univercity/of_dice_and_men.html
https://bit.ly/3q51BFm
https://bit.ly/35pcFFg
https://en.wikipedia.org/wiki/Chinese_checkers
https://bit.ly/2XmuUqy
चित्र संदर्भ:
मुख्य चित्र लूडो को दिखाया गया है। (Unsplash)
दूसरी तस्वीर में चौपड़ को दिखाया गया है। (Wikimedia)
तीसरी तस्वीर में पचीसी को दिखाया गया है। (Wikimedia)
आखिरी तस्वीर में चाईनीज़ चेकर को दिखाया गया है। (Wikimedia)


RECENT POST

  • नटूफ़ियन संस्कृति: मानव इतिहास के शुरुआती खानाबदोश
    सभ्यताः 10000 ईसापूर्व से 2000 ईसापूर्व

     21-11-2024 09:24 AM


  • मुनस्यारी: पहली बर्फ़बारी और बर्फ़ीले पहाड़ देखने के लिए सबसे बेहतर जगह
    पर्वत, चोटी व पठार

     20-11-2024 09:24 AM


  • क्या आप जानते हैं, लाल किले में दीवान-ए-आम और दीवान-ए-ख़ास के प्रतीकों का मतलब ?
    वास्तुकला 1 वाह्य भवन

     19-11-2024 09:17 AM


  • भारत की ऊर्जा राजधानी – सोनभद्र, आर्थिक व सांस्कृतिक तौर पर है परिपूर्ण
    आधुनिक राज्य: 1947 से अब तक

     18-11-2024 09:25 AM


  • आइए, अंतर्राष्ट्रीय छात्र दिवस पर देखें, मैसाचुसेट्स इंस्टिट्यूट ऑफ़ टेक्नोलॉजी के चलचित्र
    वास्तुकला 1 वाह्य भवन

     17-11-2024 09:25 AM


  • आइए जानें, कौन से जंगली जानवर, रखते हैं अपने बच्चों का सबसे ज़्यादा ख्याल
    व्यवहारिक

     16-11-2024 09:12 AM


  • आइए जानें, गुरु ग्रंथ साहिब में वर्णित रागों के माध्यम से, इस ग्रंथ की संरचना के बारे में
    विचार I - धर्म (मिथक / अनुष्ठान)

     15-11-2024 09:19 AM


  • भारतीय स्वास्थ्य प्रणाली में, क्या है आर्टिफ़िशियल इंटेलिजेंस और चिकित्सा पर्यटन का भविष्य
    विचार 2 दर्शनशास्त्र, गणित व दवा

     14-11-2024 09:15 AM


  • क्या ऊन का वेस्ट बेकार है या इसमें छिपा है कुछ खास ?
    नगरीकरण- शहर व शक्ति

     13-11-2024 09:17 AM


  • डिस्क अस्थिरता सिद्धांत करता है, बृहस्पति जैसे विशाल ग्रहों के निर्माण का खुलासा
    शुरुआतः 4 अरब ईसापूर्व से 0.2 करोड ईसापूर्व तक

     12-11-2024 09:25 AM






  • © - 2017 All content on this website, such as text, graphics, logos, button icons, software, images and its selection, arrangement, presentation & overall design, is the property of Indoeuropeans India Pvt. Ltd. and protected by international copyright laws.

    login_user_id