समय - सीमा 267
मानव और उनकी इंद्रियाँ 1034
मानव और उनके आविष्कार 801
भूगोल 264
जीव-जंतु 304
| Post Viewership from Post Date to 30- Dec-2020 (5th Day) | ||||
|---|---|---|---|---|
| City Subscribers (FB+App) | Website (Direct+Google) | Messaging Subscribers | Total | |
| 2095 | 302 | 0 | 2397 | |
| * Please see metrics definition on bottom of this page. | ||||
क्रिसमस (Christmas) के पर्व के दौरान सजावट का विशेष महत्व होता है। समय के साथ इस सजावट ने विभिन्न रूप लिए हैं, जो आज एक अनोखे रूप में दिखायी देते हैं। क्रिसमस की सजावट के साथ सबसे पहला नाम सदाबहार देवदार के पेड़ का जुड़ा हुआ है, जिसका उपयोग पारंपरिक रूप से हजारों वर्षों से सर्दियों के त्यौहारों को (पेगन (Pagan) या बुतपरस्त और ईसाई धर्म के लोगों द्वारा) मनाने के लिए किया जा रहा है। बुतपरस्त इसकी शाखाओं का उपयोग शीत सोलस्टिस (Winter solstice) के दौरान अपने घरों को सजाने के लिए करते हैं, जो वसंत के आने का प्रतीक है। वहीं रोम (Rome) के लोगों ने अपने त्यौहार सेटर्नेलिया (Saturnalia) के दौरान देवदार पेड़ों का इस्तेमाल मंदिरों को सजाने के लिए किया। इसी प्रकार से ईसाई धर्म के लोगों के लिए यह ईश्वर के साथ चिरस्थायी जीवन के संकेत का प्रतीक भी है। लेकिन यह बात शायद ही स्पष्ट रूप से पता चल पायी है कि, क्रिसमस के पेड़ के रूप में देवदार का उपयोग पहली बार कब किया गया था? यह माना जाता है कि, इसका उपयोग शायद उत्तरी यूरोप (Europe) में लगभग 1000 साल पहले शुरू हुआ था। कई शुरुआती क्रिसमस पेड़ों को चेन (Chain) का उपयोग करके झूमर, लाइटिंग हुक (Lighting hooks) आदि पर लटकाया गया था। उत्तरी यूरोप के कई हिस्सों में, क्रिसमस के पेड़ के रूप में चेरी (Cherry) या नागफनी के पौधे का भी उपयोग किया गया था। अगर कोई वास्तविक पौधा नहीं खरीद सका, तो उसने लकड़ी से बने पिरामिड (Pyramids) बनाए और उन्हें कागज, सेब और मोमबत्तियों के साथ सजाकर क्रिसमस पेड़ बनाया। लकड़ी के इन पिरामिड पेड़ों को स्वर्ग का पेड़ माना गया तथा मध्ययुगीन जर्मन (German) में क्रिसमस की पूर्व संध्या पर चर्चों (Churches) के सामने किए गए रहस्यमयी या चमत्कारी नाटकों में इनका उपयोग किया गया। क्रिसमस और नए साल के जश्न में पेड़ के पहली बार उपयोग के सन्दर्भ में एस्टोनिया (Estonia) के तेलिन (Tallinn) शहर तथा लातविया (Latvia) के रीगा (Riga) शहर के बीच द्वन्द है। दोनों यह दावा करते हैं कि, उन्होंने क्रमशः सन् 1441 और 1510 में पहली बार पेड़ का उपयोग क्रिसमस मनाने के लिए किया था, जबकि, क्रिसमस पेड़ को खाद्य चीजों से सजाने की शुरुआत जर्मनी में की गयी थी। टिनसेल (Tinsel) और क्रिसमस स्पाइडर (Christmas spider) अन्य वस्तुएं हैं, जिनका उपयोग क्रिसमस की सजावट में किया जाता है। टिनसेल को जर्मनी में मूल रूप से चांदी की पतली स्ट्रिप्स (Strips) से बनाया गया था, लेकिन जब प्लास्टिक या मानव निर्मित टिनसेल का आविष्कार हुआ, तब असली चांदी की तुलना में बहुत सस्ता तथा अधिक उपयुक्त होने के कारण इसका उपयोग टिनसेल बनाने के लिए किया गया। इसी प्रकार से क्रिसमस स्पाइडर के उपयोग के पीछे किवदंती एक गरीब परिवार से जुड़ी हुई है, जो अपने क्रिसमस के पेड़ को सजाने का खर्च नहीं उठा सकता था। जब उस परिवार के बच्चे क्रिसमस की पूर्व संध्या पर सो जाते हैं, तो एक मकड़ी उस पेड़ में जाल बना लेती है। क्रिसमस की सुबह यह जाल जादुई रूप से चांदी और सोने के स्ट्रैंड (Strand) में बदल जाता है, जो पेड़ को सजावटी रूप देता है। कहानी के कुछ संस्करणों के अनुसार ऐसा सूर्य के प्रकाश के कारण हुआ जबकि, अन्य का मानना है कि, यह सेंट निकोलस (St. Nicholas) या सांता क्लॉज़ (Santa Claus) का चमत्कार था। इसी प्रकार से सजावट के लिए क्रिसमस पेड़ पर लाइटें भी लगाई जाती हैं।
भारत में भी क्रिसमस का एक अलग रूप देखने को मिलता है। भारत में 240 लाख ईसाई रहते हैं, जो देश की कुल आबादी का 2% हिस्सा बनाते हैं। यहां क्रिसमस एक धार्मिक त्यौहार ही नहीं, बल्कि उससे भी बढ़कर है, क्यों कि, यहां हर शहर में विभिन्न धर्मों के स्थानीय लोगों द्वारा यह पर्व बहुत उत्साह के साथ मनाया जाता है। लोग अपने घरों को पेड़ों और रोशनी से सजाते हैं, और यहां तक कि, अपने दोस्तों और परिवार के लिए स्वादिष्ट दावतें भी आयोजित करते हैं। पूरे भारत में, आपको सड़कों पर सांता हैट (Hats) बेचने वाले विक्रेता दिख जायेंगे। वहीं पेड़ों, चमकीली टिनसेल से सजी दुकानों, सामयिक कैरोल (Carol) गायकों और कई अन्य चीजों का भी एक अलग ही रूप दिखायी देगा। भारत में क्रिसमस समारोह का आयोजन अन्य देशों से बहुत अलग है, क्यों कि, इस समारोह में स्थानीय प्रथाओं और सार्वभौमिक रीति-रिवाजों को शामिल किया जाता है तथा प्रत्येक शहर या राज्य की अपनी अनूठी शैली है। सामान्य अंग्रेजी कैरोल और स्थानीय मिठाइयों के साथ ईसा मसीह की प्रशंसा में गीत स्थानीय भाषाओं में गाए जाते हैं। भारत में इसे विशेषकर बड़ा दिन के नाम से जाना जाता है। दिल्ली, मुम्बई तथा कोलकाता जैसे बड़े शहरों में क्रिसमस का एक अलग भव्य रूप देखने को मिलता है। भारत में क्रिसमस का आयोजन इतना भव्य है कि, अन्य देशों के लोग भी यहां आकर इस आयोजन में भाग लेते हैं।
कोरोनो विषाणु के चलते आंशिक तालाबंदी, यात्रा प्रतिबंध और सामाजिक दूरी के मानदंडों ने क्रिसमस के जश्न की भावना को कम कर दिया है। इस दौरान जबकि, कुछ लोगों ने क्रिसमस की परंपराओं और उत्सवों की तीव्रता को कम किया है, वहीं कुछ इसका उपयोग महामारी को प्रतिबिंबित करने के लिए कर रहे हैं, उदाहरण के लिए ऑस्ट्रेलिया (Australia) में उपभोक्ता प्लास्टिक के क्रिसमस पेड़ों की जगह ताजे देवदार के पेड़ों का चयन करके क्रिसमस मना रहे हैं। क्रिसमस के दौरान खिलौनों की अत्यधिक बिक्री होती है तथा इसे देखते हुए स्पेन (Spain) में, टायमेकर फैमोसा (Toymaker Famosa) की लोकप्रिय नैन्सी गुड़िया (Nancy doll) को कोरोना से बचाव के लिए अनुकूलित किया गया है। यह गुड़िया एक सुरक्षात्मक मास्क (Mask) पहने हुए है, तथा इसमें विषाणु परीक्षक (Virus tester) भी लगाया गया है। क्रिसमस के दौरान जहां अधिकांश बाजार बंद हैं, वहीं जर्मनी में खुली हवा में शराब के स्टैंड (Stands) लगाए गए हैं, ताकि रेस्तरां मालिक तालाबंदी के दौरान कुछ आय अर्जित कर सकें।