City Subscribers (FB+App) | Website (Direct+Google) | Total | ||
2377 | 311 | 2688 |
***Scroll down to the bottom of the page for above post viewership metric definitions
भारत में समुद्री भोजन की बात हो तो मछली का नाम शीर्ष पर आता है। भारत में खाई जाने वाली मछलियों में लेबियो रोहिता (रोहू) (Labeo Rohita (Rohu)) सबसे आम मछली है। भोजन के रूप में अपनी उत्कृष्टता के कारण मीठे पानी में रहने वाली यह मछली सबसे ज्यादा पालतू है। हमारे जौनपुर शरह में बहने वाली पांच नदियों में रोहू मछली सर्वाधिक मात्रा में पायी जाती है। रोहू उत्तरी और मध्य और पूर्वी भारत (India), पाकिस्तान (Pakistan), वियतनाम (Vietnam), बांग्लादेश (Bangladesh), नेपाल (Nepal) और म्यांमार (Myanmar) की अधिकांश नदियों में पायी जाती है, तथा प्रायद्वीपीय भारत और श्रीलंका की कुछ नदियों में इन्हें ले जाया गया है। रोहू, रुई या रोहू लेबियो (लेबियो रोहिता) कार्प परिवार (carp family) की मछली की एक प्रजाति है। रोहू विशिष्ट साइप्रिनिड आकार (Cyprinid Shape) की एक बड़ी मछली है जिसका रंग चांदी के रंग का होता है, इसका सिर धनुषाकार का होता है। एक वयस्क रोहू मछली का वजन 45 किलो और लंबाई 2 मीटर तक हो सकती है, इसकी औसतन लंबाई लगभग 1 मीटर होती है। यह अपने दूसरे वर्ष के अंत तक यौन परिपक्वता तक पहुंच जाती हैं। यह साल में एक बार मुख्यत: वर्षा ऋतु (जून से अगस्त के बीच) में ही प्रजनन करती हैं। यह प्राकृतिक नदी के वातावरण में ही प्रजनन करती हैं। इनके अंडे गोल आकार के और 15 मिमी व्यास के होते हैं, जो हल्के लाल रंग के और गैर चिपचिपे होते हैं। निषेचन के बाद यह 3 मिमी आकार के और पूरी तरह से पारदर्शी हो जाते हैं। निषेचन के बाद हैचिंग (hatching) की प्रक्रिया 16-20 घंटों में पूरी होती है। रोहू के अंडे देने का मौसम सामान्यत: दक्षिण-पश्चिम मानसून के समय का ही होता है। इन अण्डों को नदियों से एकत्र करके टैंकों और झीलों में पाला जा सकता है।
दक्षिण एशिया की नदियों में पाई जाने वाली यह मछली एक सर्वभक्षी जीव है, जो जीवन के विभिन्न चरणों में भिन्न-भिन्न खाद्य पदार्थों को खाती हैं। अपने जीवनचक्र के शुरुआती चरणों के दौरान, यह मुख्य रूप से ज़ोप्लांकटन (zooplankton) खाती हैं, लेकिन जैसे-जैसे यह बढ़ती हैं, यह अधिकांशत: पादप प्लवक या फाइटोप्लांकटन (phytoplankton) खाती हैं, और किशोरावस्था में आने पर यह शाकाहारी भोजन करने लगती हैं। यह सर्वाहारी मछली बड़े पैमाने पर जलीय कृषि में उपयोग की जाती हैं। इस मछली को सर्वप्रथम 1800 में हैमिल्टन (Hamilton) द्वारा निचली बंगाल की नदियों में खोजा गया था। 1925 में इसे कलकत्ता से अंडमान, उड़ीसा, कावेरी नदी और दक्षिण की कई नदियों में ले जाया गया और 1944 से 1949 के बीच इसे अन्य राज्यों में ले जाया गया। 1947 में इसे पटना की पचई झील से मुंबई भेजा गया। मुख्य रूप से यह गंगा नदी की मछली है और जोहिला और सोन नदियों में भी पाई जाती है।
मीठे पानी की किसी अन्य मछली को इसके जैसी प्रसिद्धि नहीं मिली है। व्यापारिक दृष्टि से इसे रोहू या रोही के नाम से जाना जाता है। इसका स्वाद, पोषक तत्व से भरपूर, देखने में सुंदर और छोटे और बड़े तालाबों में पालन के लिए आसान उपलब्धता इसकी प्रसिद्धि के मुख्य कारण हैं। इसके स्वाद के कारण रोहू का मांस लोगों द्वारा बहुत पसंद किया जाता है। रोहू भारतीय प्रमुख कार्प (carp) में सबसे मूल्यवान मछली है। यह अन्य मछलियों के साथ रहने की आदी है इसलिए यह तालाबों और जलाशयों में पाले जाने के लिए उपयुक्त है। एक वर्ष के पालन-पोषण की अवधि में ये 500 ग्राम से 1 किलोग्राम वजन तक की हो जाती है। इसे स्वाद, महक की उपस्थिति और गुणवत्ता में सबसे अच्छा माना जाता है इसलिए इसे बाजारों में उच्च कीमत और प्राथमिकता पर बेचा जाता है। रोहू को बांग्लादेश, नेपाल, पाकिस्तान और भारतीय राज्यों त्रिपुरा, नागालैंड, बिहार, ओडिशा, असम, पश्चिम बंगाल, आंध्र प्रदेश, तमिलनाडु और उत्तर प्रदेश में बहुत खाया जाता है।
कर्नाटक के शासक सोमेश्वर तृतीय द्वारा संकलित 12 वीं शताब्दी के संस्कृत विश्वकोश, मानसोलासा में तली हुई रोहू मछली की एक रेसिपी (Recipe) बतायी गयी है। इस रेसिपी में, हींग और नमक को मिलाकर मछली की त्वचा पर लगाया जाता है। फिर इसे हल्दी वाले पानी में डुबाकर तला जाता है। मुगल साम्राज्य में रोहू मछली का ना सिर्फ भोजन में वरन् तत्कालीन सवश्रेष्ठ सम्मान के प्रतीक के रूप में भी विशेष स्थान था। इस सम्मान को माही-मरातीब के नाम से जाना जाता था, जो की वर्तमान के भारत रत्न के तुल्य है। यह सम्मान 1632 में मुग़ल शासक शाहजहां द्वारा पेश किया गया था किन्तु इसकी उत्पत्ति और भी पहले की बताई जाती है। इसकी उत्पत्ति के सन्दर्भ में कई मान्यताएं हैं जिनमें से एक के अनुसार इसकी उत्पत्ति दक्षिण भारत के हिन्दू राजाओं द्वारा की गयी थी। शाहजहाँ के दरबारी अब्दुल हमीद लाहौरी द्वारा इस मान्यता का समर्थन किया गया था। मुगल साम्राज्य का यह सर्वोच्च सम्मान प्रतिष्ठा, बहादुरी, और शक्ति का प्रतीक है जिसमें एक छड़ (pole) पर स्केल (scale) और लोहे के दांत के साथ रोहू मछली का बड़ा सा सिर बना हुआ है। इसके पिछले हिस्से पर एक लंबा वस्त्र लगा हुआ है जोकि रोहू मछली के शरीर का प्रतीक है। जब हवा मछली के मुख से होते हुए जाती है तो यह कपड़ा लहराता है। इस सम्मान की पूरी संरचना को माही-ओ-मरातिब के नाम से जाना जाता है।
© - 2017 All content on this website, such as text, graphics, logos, button icons, software, images and its selection, arrangement, presentation & overall design, is the property of Indoeuropeans India Pvt. Ltd. and protected by international copyright laws.