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जौनपुर में वर्तमान काल में जितनी भी महत्वपूर्ण मस्जिदें उपलब्ध हैं उनको बनाने का कार्य अफ़्रीकी (African) शासक ने ही किया था। अवध के अंतिम राजा, वाजीद अली शाह (Wajid Ali Shah) की तीसरी पत्नी, यास्मीन महल (Yasmin Mahal) अफ्रीकी थीं। यहां तक कि शर्की वंश (Sharqi dynasty) को अफ्रीकी वंश कहा जाता है। मध्ययुगीन काल में अफ्रीकियों के वंशजों ने भी उत्तर भारत में एक केंद्रीय भूमिका निभाई। चौदहवीं शताब्दी के अंतिम कुछ वर्षों में, उत्तरी भारत में कई प्रांतीय सल्तनतें पनपीं, जिनमें से एक जौनपुर का राज्य था, जो तुगलक साम्राज्य की एक महत्वपूर्ण प्रांतीय राजधानी थी। तुगलक वंश के ह्रासोन्मुख वर्षों के दौरान, जौनपुर पर शर्की का शासन रहा था। वहीं कई इतिहासकारों की मानें तो जौनपुर पर पूरे सौ वर्ष शासन करने वाला राजवंश शर्की वास्तव में अफ़्रीकी थे। इस राजवंश की नींव मलिक सरवार ने रखी थी। मलिक सरवार वास्तव में फिरोज़ शाह तुगलक का दास था।
सचिन और मुरुड जंजीरा आदि स्थानों पर अफ़्रीकियों (African) ने अपने साम्राज्य की स्थापना की थी जो कि वहां पर ‘सिदी’ नाम से जाने जाते हैं। मुरुड जंजीरा भारत का एक अत्यंत ही महत्वपूर्ण और मज़बूत किला है। इस किले पर बहुत लम्बे समय तक अफ्रीकियों का आधिपत्य रहा था। अफ्रीकियों को उनके रंग भेद के कारण ‘हब्शी’ नाम से भी बुलाया जाता है और भारत के कई हिस्सों में आज एक छोटी हब्शी आबादी निवास करती है, जिसे सिद्दी समुदाय के नाम से जाना जाता है। यह आबादी मुख्य रूप से दासों की तरह लायी गयी थी जो कि बाद में दास प्रथा उन्मूलन के बाद आज़ाद हुयी। भारत में आज वर्तमान समय में सिद्दी की आबादी बहुत ज्यादा तो नहीं है परन्तु ये छिटपुट तरीके से गुजरात, महाराष्ट्र, कर्नाटका आदि स्थानों पर पाए जाते हैं। सिद्दियों के भारत आने के विषय में कई कहानियाँ प्रचलित हैं और इनके ऐतिहासिक साक्ष्य भी बड़े तरीके से उपलब्ध हैं। ऐसा माना जाता है कि पहला सिद्दी समुदाय भारत में 628 ईस्वी में आया था।
सिद्दियों ने भारत में कई स्थानों पर फ़ैल कर अपना वजूद बचाए रखा है। एक कहानी के अनुसार इनको बावा गोर अपने साथ खजूर आदि का काम करने के लिए लाए थे। ऐसा भी कहा जाता है कि सिद्दियों को दासों के रूप में भी लाया गया था। प्राचीन काल और मध्यकाल का भारत दासों के खरीद के लिए अत्यंत प्रचलित हुआ करता था, जिन दासों को यहाँ लाया गया था, या जो यहाँ व्यापार करने आये तथा जिन्होंने यहाँ पर अपना शासन स्थापित कर लिया था, समय के साथ-साथ वापस न जाने के कारण वे यहीं के हो गए थे। अधिकांश सिद्दी सूफी मुस्लिम हैं, और कुछ ईसाई या हिंदू हैं। लगभग 50,000 से 70,000 सिद्दी (जिनके पूर्वज मूल रूप से इरिट्रिया (Eritrea), इथियोपिया (Ethiopia), सोमालिया (Somalia), निचला मिस्र (Lower Egypt), सूडान (Sudan), केन्या (Kenya), तंजानिया (Tanzania), मलावी (Malawi) और मोजाम्बिक (Mozambique) से आए थे) भारत में रहते हैं। इसलिए कोई आश्चर्य नहीं कि अधिकांश भारतीयों ने उनके बारे में कभी नहीं सुना है और कभी-कभी इन्हें विदेशी मान लेते हैं।
भारत लाए गए दास सिद्दी उन्मूलन से पहले स्वतंत्र रियासतों के शाही दरबारों में बड़ी संख्या में कार्यरत थे, 1947 में स्वतंत्रता के बाद उन्होंने अपनी नौकरी और अपना दर्जा खो दिया। आज वे या तो टेक्सी (Taxi) चालक, गृहसेवक, फेरीवाले, किसान और मजदूर हैं, जबकि कुछ मध्यम वर्ग के हैं। 1987 में, भारतीय खेल प्राधिकरण ने अपने विशेष क्षेत्र खेल कार्यक्रम के तहत पदक जीतने के लिए भारतीय-अफ्रीकियों के प्राकृतिक एथलेटिकवाद (Athleticism) का उपयोग करने का निर्णय लिया था, जिसके बाद कई सिद्दी बच्चों ने अंतर्राष्ट्रीय मंच पर भारत के लिए कई पदक जीते और राष्ट्रीय में सुर्खियों में आने लगे। 2009 में, बराक ओबामा की राष्ट्रपति की पहली वर्षगांठ मनाने के लिए उनमें से कुछ हजार एक साथ उन्हें सम्मान देने के लिए आए थे।
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