जादू एक प्रदर्शन कला है जो हाथ की सफाई से प्राकृतिक साधनों का उपयोग करते हुए असंभव घटना को संभव बना देती है, वास्तव में इसमें भ्रम जाल की रचना द्वारा दर्शकों का मनोरंजन किया जाता है। इन करतबों को जादुई हाथ की सफाई, प्रभाव या भ्रम जाल कहा जाता है। वह व्यक्ति जो ऐसे भ्रम जालों का प्रदर्शन करता है, जादूगर कहलाता है। कुछ कलाकारों को उनके द्वारा प्रस्तुत किए जाने वाले विशिष्ट जादूओं के नाम से पुकारा जाता है, जैसे मायावी, बाजीगर, परामनोवैज्ञानिक, या बच निकलनेवाला कलाकार। आधुनिक मनोरंजन जादू का उद्भव 19वीं सदी में हुआ जिसके विकास में जादूगर जीन यूजीन रॉबर्ट-हौडिन (Jean Eugène Robert-Houdin) का विशेष योगदान रहा, जिसने आगे चलकर एक लोकप्रिय नाट्य कला का रूप लिया। 19वीं और 20वीं शताब्दी के उत्तरार्ध में, मैस्केली (Maskelyne) और डेवैंट (Devant), हॉवर्ड थर्स्टन (Howard Thurston), हैरी केलर (Harry Kellar) और हैरी हौदिनी (Harry Houdini) जैसे जादूगरों ने इस दौरान व्यापक व्यावसायिक सफलता हासिल की, इस समय को "गोल्डन एज ऑफ मैजिक" (Golden Age of Magic) के रूप में जाना जाने लगा।
जादू एक प्रकार की कला है जो वर्षों से लोगों का मनोरंजन करती आई है हालांकि यह बहुत ही रहस्यमयी कलाओ में से एक है जिसे जानना, सीखना और समझना तीनों को काफी कठिन समझा जाता है। विभिन्न जादूगर अपने कौशल में इतने पारंगत हो गए हैं कि वे असंभव घटना का भी दर्शकों के मन में भ्रम उत्पन्न कर देते हैं। हाल के वर्षों में वैज्ञानिकों ने हमारी समझ को आगे बढ़ाने के लिए इस विशेषज्ञता की खोज करने में दिलचस्पी ली है। इस विशेषज्ञता के उद्भव के विषय में किसी को भी विशेष जानकारी नहीं है। जादुई विशेषज्ञता अन्य कलाओं (जैसे, संगीत, स्टैंड-अप कॉमेडी (stand-up comedy)) से काफी भिन्न होती है, जिसमें अधिकांश सीखने का अभ्यास व्यक्तिगत स्तर पर होता है, जो अनौपचारिक सामाजिक समूह और बहुत कम औपचारिक प्रशिक्षण (यानी, जादू स्कूल) के भीतर संपन्न होता है। जादू को भलि भांति करने हेतु औपचारिक प्रशिक्षण अत्यंत आवश्यक है। अधिकांश अन्य कला (जैसे, खेल, शतरंज) में, विशेषज्ञता को औपचारिक प्रतियोगिताओं के माध्यम से मापा जा सकता है। जबकि कई राष्ट्रीय और अंतर्राष्ट्रीय जादुई प्रतियोगिताएं होती हैं, किंतु अधिकांश सर्वश्रेष्ठ जादूगर इन प्रतियोगिताओं में भाग नहीं लेते हैं। इसके अलावा, एक जादू प्रतियोगिता जीतने के लिए आवश्यक कौशल और तकनीक अक्सर पेशेवर जादूगरों द्वारा उपयोग किए जाने वाले से भिन्न होती है। उदाहरण के लिए, साथी जादूगरों को धोखा दिया जा सकता है, लेकिन ऐसे लोगों को धोखा देना बहुत मुश्किल है, जिनके पास जादुई तकनीकों को बनाने के विषय में परिष्कृत ज्ञान है। इसके अतिरिक्त, आमतौर पर साथी जादूगरों को धोखा देने के लिए जो तरकीबें इस्तेमाल की जाती हैं, वे अक्सर लोगों के मनोरंजन के लिए की गयी तरकीबों से बहुत अलग होती हैं। साथी जादूगरों के लिए प्रदर्शन करते समय, जादूगर आम तौर पर ऐसे तरीकों (जैसे, हाथ के कठिन स्लीप, कठिन मानसिक कौशल, जटिल तरीके) का उपयोग करते हैं जो अधिक जटिल और प्रभावशाली होते हैं, तब एक आम दर्शकों के लिए प्रदर्शन करते हैं।
जादुई विशेषज्ञता का अध्ययन करने में एक और समस्या यह है कि इसका अध्ययन करने वाले में कई प्रकार के कौशल शामिल होने चाहिए। उदाहरण के लिए, एक जादूगर के पास मनोवैज्ञानिक कौशल की एक विस्तृत श्रृंखला होनी चाहिए, जैसे कि बाहरी संकेतों और लक्षणों (जैसे, प्रतिक्रियाएं, वाहवाही, मौखिक प्रतिक्रिया) का उपयोग करने की क्षमता रखें तथा दर्शकों की मानसिक स्थिति (जैसे, प्रभाव का अनुभव, चाहे उन्होंने विधि का पता लगा लिया हो) के बारे में अनुमान लगाने की क्षमता होनी चाहिए। इसी तरह, जादूगरों को दर्शकों को प्रभावी रूप से समझने के लिए मनोवैज्ञानिक तकनीकों का उपयोग करने में सक्षम होना चाहिए, और दर्शकों पर प्रभाव पैदा करने के लिए इस्तेमाल की जाने वाली विधि को नोट करने से रोकना की क्षमता होनी चाहिए। इनमें से कई गलत तकनीकों को प्रलेखित और वर्णित किया गया है, और प्रभावी धोखे के लिए इन मनोवैज्ञानिक सिद्धांतों की ठोस समझ की आवश्यकता होती है। अन्य कौशलों में मोटर स्किल्स (motor skills) (हाथ की सफाई), टेक्निकल इनसाइट्स (technical insights) (जैसे, जादूयी तकनीकों का अमूर्त ज्ञान), साथ ही प्रदर्शन विशिष्ट तकनीक (जैसे, कॉमेडी, डांस (comedy, dance)) शामिल हैं। यद्यपि जादू में अन्य प्रदर्शन कलाओं के समान कुछ समानताएं भी हैं, यह गुप्त ज्ञान और क्षमता पर बहुत अधिक निर्भर करता है, जिसे अनुभवी जादूगरों के एक श्रृंखला के भीतर प्रसारित किया जाता है। नवागंतुक अपने अभ्यास समुदाय के साथ भाग लेकर और ज्ञान साझा करके जादूगर बनते हैं और जादू के कौशल को बढ़ावा देते हैं विशेषज्ञों के मार्गदर्शन के माध्यम से विशेषज्ञता विकसित करते हैं।
भारत में जादू का इतिहास बहुत प्राचीन है, प्राचीन समय में, भारतीय जादूगरों को केवल मनोरंजन के लिए नहीं, बल्कि वैध रहस्यमय चमत्कारों का कार्यकर्ता भी माना जाता था। एम्पायर ऑफ एञ्चन्त्मेन्त: द स्टोरी ऑफ़ इंडियन मैजिक (Empire of Enchantment: The Story of Indian Magic) के लेखक जॉन ज़ुर्ज़ेकी (John Zubrzycki) के अनुसार, भारतीय जादू का इतिहास 3500 ईसा पूर्व की हड़प्पा सभ्यता से चला आ रहा है। इस बात के प्रमाण मिले हैं कि उस दौरान लोग ताबीज इत्यादि का उपयोग करते थे। रोमन साम्राज्य में प्राचीन भारतीय भाग्य बताने वालों के प्रमाण भी मिले हैं। भारतीय जादूगरों को 1813 में पश्चिम में, जहाज के एक अंग्रेजी कप्तान द्वारा ले जाया गया था इसने काले सागर के पार मद्रास (Madras) में बाजीगरों के एक समूह को उनके प्रदर्शन के लिए एक बड़ा इनाम दिया था। गुजरात (Gujarat) के भावनगर के निंगला (Ningala) में 1850 में जन्मे मोहम्मद छेल (Mohammed Chhel) का स्थान जादू की दुनिया में उल्लेखनीय है। क्षेत्रीय रूप से लोकप्रिय छेल को एक रहस्यवादी माना जाता था। छेल आम तौर पर स्टेज शो (stage shows) और वाणिज्यिक प्रदर्शनों का व्यवसाय नहीं करते थे। उनके लक्षित दर्शक किसान थे, साधारण - सामान्य लोग, ग्रामीण, रेल यात्री और समाज के इस प्रकार का वर्ग होते थे। अपने प्रदर्शन / कृत्यों के साथ वह अक्सर लोगों को जीवन के कुछ संदेश देना चाहते थे, और वे वंचित लोगों के लाभ के लिए अपने कृत्यों / जादू के साथ विस्तार करने का प्रयास करते थे।
केरल (Kerala) में जादू के पितामाह वाज़ाकुन्नम नीलकंडन नमबोथिरी (Vazhakunnam Neelakandan Namboothiri) को माना जाता है। उन्होंने जादू को एक कला के रूप में विकसित करने में महत्वपूर्ण भूमिका निभाई। वाज़ाकुन्नम (Vaazhakunnam) बाद में कयोथुक्कम के लिए प्रसिद्ध हुए, हालांकि कभी-कभी उन्होंने छोटे पारिवारिक समारोहों के लिए "चेपम पंथम" (Cheppum Panthum) भी किया। 1940 के बाद उन्होंने अपनी मंडली के साथ वास्तविक मंच प्रदर्शन शुरू किया।
मेले के अतिरिक्त यह जादूगर स्थान-स्थान पर अपना कार्यक्रम आयोजित करते हैं, किंतु इस कोरोना महामारी ने इनका अस्तित्व खतरे में डाल दिया है। कोरोना के कारण लोग भीड़-भाड़ वाली जगह से बच रहे हैं जिसके चलते इन जादूगरों को अपना कार्यक्रम स्थगित करना पड़ रहा है जिस कारण ये जीविकोपार्जन के लिए भी संघर्ष कर रहे हैं। सामान्य दिनों में शाम के समय में ये जादूगर अपने जादू से दर्शकों को सम्मोहित कर देते थे।
पलक झपकते ही गायब हो जाना और उसी क्षण प्रकट हो जाना दर्शकों को मंत्रमुग्ध कर देता है। अपनी टोपी से कबूतर उड़ाना, अपने मूंह से भयावह अवाज निकालना जैसे अतरंगी करतब दिखाना इनकी कला का प्रमुख हिस्सा है। यह जादूगर मुख्यत: बड़े-बड़े शहरों में अपनी कला का प्रदर्शन करते हैं। एक प्रसिद्ध शहरी जादूगर सुब्रत कुमार मुखर्जी ने अपने जादू के माध्यम से लोगों को कोरोना के प्रति जागरूक किया इसमें इन्होंने एक कागज के टूकड़े पर कोरोना उपन्यास लिखकर उसे एक बॉक्स (box) पर डाला और बॉक्स खोलते ही कागज गायब हो गया। जिसके माध्यम से वे संदेश देना चाहते हैं कोरोना महामारी को गायब करने के लिए हमें घर के अंदर ही रहना होगा।
मुखर्जी कहते हैं कि यह दौर इनके लिए बहुत कठिन है इनकी आजीविका पूर्णत: इनकी प्रदर्शनकला पर निर्भर करती है किंतु कोरोना के चलते इन्हें भारत ही नहीं वरन् विश्व स्तर पर अपने कार्यक्रम स्थगित करने पड़े। जादू के स्टेज-शो (stage-shows ) में आयी कमी ने वैसे भी जादूगरों को निजी स्तर पर कार्यक्रमों में आयोजित करने के लिए विवश कर दिया है, किंतु लॉकडाउन (lockdown) ने इनसे यह अवसर भी छिन लिया। पेशेवर जादूगरों के लिए सहायक और टीम के सदस्यों को भुगतान करना एक बड़ी चिंता का विषय बन गया है। छोटे जादूगरों की स्थिति का अनुमान लगाना और भी कठिन कार्य होगा। द मैजिक आर्टिस्ट्स सोसायटी (The Magic Artistes Society), जिसके मुखर्जी एक संस्थापक सदस्य और सचिव हैं, ने इन कलाकारों की ओर राज्य सरकार का ध्यान आकर्षित करने का निर्णय लिया।
जादू एक अद्वितीय प्रदर्शन कला है और यह दर्शकों को धोखा देने पर ध्यान केंद्रित करने वाले अन्य व्यवसायों से अलग है। जादू की एक विशेषता यह है कि यह प्रक्रिया पूरी तरह से जादुई विशेषज्ञों के समुदायों द्वारा संचालित होती है जो कि अनौपचारिक प्रशिक्षण के माध्यम से होता है। जादुई प्रक्रिया में तीन चीज प्रमुख हैं जादू की चाल, प्रदर्शन और दर्शक। हालाँकि जादू की चाल में जादू की गतिविधि का एक केंद्रीय पहलू होता है, जिसे जादूगर मुख्यत: गोपनीय ही रखते हैं, जो कि जादूयी संस्कृति का अभिन्न अंग है।
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