कहा जाता हैं कि साहित्य समाज का आईना होता है और दशकों बाद टेलीविजन जगत को देखते हुए लगता है कि सिनेमा (Cinema) और वेब सीरीज़ (Web Series) भी समाज का आईना है। वहीं जब साहित्य और टेलीविजन जगत मिल जाते हैं तो समाज को बेहतर तरीके से समझने का एक नजरिया मिलता है। परंतु हमने अक्सर देखा है कि सिनेमा और वेब सीरीज़ अपने मूल उपन्यासों (Novels) या लघु कहानियों (Short stories) से थोड़ी अलग होती हैं, ऐसा शायद समय, बजट (Budget), प्रौद्योगिकी (Technology) और निर्देशन (Direction) जैसे कारक की वजह से हो सकता है। सिनेमा और टीवी शो की समय सीमा सीमित होती है जिसमें दर्शकों के सामने कहानी को उपन्यासों के समान बेहतर ढंग से रखना असान काम नहीं है। सीमित समय के कारण सिनेमा और वेब सीरीज़ में केवल आवश्यक बिंदुओं को ही फिल्माया जाता है। बजट प्रौद्योगिकी को प्रभावित कर सकता है और प्रौद्योगिकी इसे प्रभावित कर सकती है। किसी भी टेलीविजन सीरीज को बनाने में बजट और प्रौद्योगिकी महत्वपूर्ण भूमिका निभाते हैं। एक किताब में लिखे गए सभी विवरणों में स्थान, भवन, कमरे, कस्बे, लोग, जानवर इत्यादि के बारे में जिक्र होता है, और इन सबको फिल्माने में बजट और प्रौद्योगिकी दोनों प्रभावित होते हैं। एक टेलीविजन सीरीज को बनाने में जितना अधिक समय लगता है, उतना ही अधिक धन खर्च होता है। बेहतर तकनीक एक फिल्म बनाने की प्रक्रिया को गति दे सकती है और बजट को थोड़ा नियंत्रित कर सकती है। बजट और प्रौद्योगिकी एक-दूसरे को प्रभावित करने की क्षमता रखते हैं। अंत में सबसे महत्वपूर्ण कारक निर्देशन होता है। दर्शकों के सामने एक लेखक की कल्पना को जीवित कर स्क्रीन पर दर्शाना आसान काम नहीं है। यदि निर्देशन अच्छा हो तभी कहानी को सही से फिल्माया जा सकता है वरना नहीं।
टेलीविजन जगत में कुछ ऐसी ही फिल्में और वेब सीरीज़ हैं, जो किसी उपन्यास या लघु कहानियों पर आधारित हैं। आइए, जानते हैं उनके नाम और वे किस उपन्यास पर आधारित है:
आज कल सिर्फ उपन्यासों पर ही नहीं बल्कि लोगों की जिंदागी पर आधारित फिल्में बनाई जा रही है, वो कहते है ना “रीयल लाइफ (Real life) से ही रील लाइफ (Reel life) के किरदार तय होते हैं”। पहले कई फिल्मों में ऐसा देखने को मिला है जहां किसी की असल जिंदगी पर फिल्म बनायी हो जैसे कि नीरजा (Neerja), ठाकरे (Thackeray), मांझी: द माउंटेन मैन (Manjhi: The Mountain Man), दंगल (Dangal), पैडमैन (Padman) आदि। मूल जीवन पर आधारित ये फिल्में दर्शकों को बहुत पसंद आती हैं। लेकिन अब सीरीज में भी ऐसा हो रहा है। सुनने में आ रहा हैं कि प्रसिद्ध वेब सीरीज “मिर्जापुर-२” के मुन्ना भईया भी रीयल लाइफ से इंस्पायर (Inspire) है। दरअसल हाल ही में रिलीज़ हुई इस वेब सीरीज़ की कहानी पॉवर (power), पॉलिटिक्स (politics) और प्रतिशोध की कहानी है। इसमें एक ख़ास किरदार है, मुन्ना भईया। माना जा रहा है कि इनकी स्टोरी कुछ-कुछ जौनपुर के रियल लाइफ़ गैंगस्टर “मुन्ना बजरंगी” से मिलती है। हालांकि, वेब सीरीज़ निमार्ता का कहना है कि ये किरदार काल्पनिक है, लेकिन अगर आप मुन्ना बजरंगी की जिंदगी के बारे में जानेंगे तो आप भी इस इत्तेफ़ाक से सहमत नज़र आएंगे कि मुन्ना भईया का किरदार जौनपुर के मुन्ना बजरंगी पर आधारित है। चलिए जानते हैं जौनपुर के कुख़्यात गैंगस्टर मुन्ना बजरंगी के बारे में:-
मुन्ना बजरंगी का असल नाम प्रेम प्रकाश सिंह (Prem Prakash Singh) था जो कालीन का व्यापार करता था। वह सिर्फ 17 साल का था जब उसके खिलाफ हत्या और अवैध हथियार रखने का पहला मामला दर्ज किया गया, उसने कक्षा 5 के बाद स्कूल छोड़ दिया था। बाद में वो धीरे-धीरे मुन्ना बजरंगी के तौर पर विख्यात होने लगा। इसके साथ ही वो जौनपुर में एक गैंगस्टर गजराज सिंह के गिरोह में शामिल हो गया, मिर्जापुर, जौनपुर और वाराणसी में लोग उसका नाम सुनते ही कांपने लगते थे। मुन्ना 1990 के दशक में राजनीतज्ञ मुख्तार अंसारी के संपर्क में आया और कुछ ही दिनों में उनका करीबी सहयोगी बन गया। मुन्ना बजरंगी जब अंसारी के साथ था तब उसने गिरोह की रंजिश के तहत नवंबर 2005 की दोपहर में बीजेपी के कद्दावर नेता कृष्णानंद राय की छह एके-47 (six AK-47) राइफलों से 400 से अधिक गोलियां चला कर हत्या कर दी। इसके कुछ समय बाद उसने एक और बीजेपी नेता रामचंद्र सिंह की हत्या कर दी। तब से बजरंगी पुलिस की मोस्ट वांटेड (most wanted) लिस्ट में था।
मुन्ना बजरंगी को समाजवादी पार्टी का कथित तौर पर सपोर्ट था। कहते है 1990 के दशक की शुरुआत में, मुलायम सिंह यादव की समाजवादी पार्टी के शासन में, यूपी में अपराध फल-फूल रहा था और मुना ने अपने इस बाहुबल के दम पर कई ग़ैरक़ानूनी काम किए और करोड़ों की संपत्ति का मालिक बन गया। मुन्ना बजरंगी के बारे में एक और बात बहुत कही जाती है कि उत्तर प्रदेश में गैंग वॉर (Gang war) में एके-47 का चलन इसने ही शुरू किया था। कई वर्षों तक, मुन्ना ने मुलायम सिंह यादव की समाजवादी पार्टी का समर्थन किया, लेकिन ये गिरोह 2000 के दशक के मध्य में मायावती की बहुजन समाज पार्टी का सहयोगी बन गया। मुन्ना बजरंगी ने केवल राजनैतिक पार्टियों का सहयोग ही नहीं किया बल्कि उसमे 2012 में अपना दल (Apna Dal) और पीस पार्टी ऑफ इंडिया (Peace Party of India) के तहत तिहाड़ जेल में कैद रहते हुए भी जौनपुर के मरियाहू (Mariyahu) से उम्मीदवार के रूप में चुनाव लड़ा था, परंतु असफल रहा।
कुछ स्रोतों के अनुसार, 40 से अधिक हत्याओं और जबरन वसूली के बाद, मुन्ना बजरंगी अपने परिवार के साथ मुंबई में स्थानांतरित हो गया। उसके सिर पर 7,00,000 का इनाम था। आखिरकार अंत में पुलिस को इसका पता चल गया और मुंबई पुलिस के सहयोग से दिल्ली पुलिस ने उसको धर लिया। इसके बाद आपराधिक गिरोहों और राजनेताओं के साथ उनकी सांठगांठ ने अधिकारियों को मुन्ना को एक जेल से दूसरे जेल में स्थानांतरित करने के लिए कहा तथा जुलाई 2018 को जब उसे झांसी जेल से बागपत जेल ले जाया गया तो वहां उसकी एक अन्य कैदी सुनील राठी से लड़ाई हो गई और सुनील राठी ने ताबड़तोड़ गोलियां चलाकर जेल में ही मुन्ना की हत्या कर दी। इसके बाद उत्तर प्रदेश के मुख्यमंत्री योगी आदित्यनाथ ने न्यायिक जांच के आदेश देकर जेल अधिकारियों को निलंबित कर दिया और इस केस की सीबीआई (CBI) जांच के आदेश दिये। मुन्ना बजरंगी के मारे जाने के साथ ही यूपी में गैंगवार का दौर खत्म हो गया। तो मुन्ना भईया और मुन्ना बजरंगी की कहानी में इस प्रकार की काफ़ी समानताएं हैं। इसलिए लोग मिर्ज़ापुर के इस किरदार को बजरंगी से ही प्रेरित बता रहे हैं।
© - 2017 All content on this website, such as text, graphics, logos, button icons, software, images and its selection, arrangement, presentation & overall design, is the property of Indoeuropeans India Pvt. Ltd. and protected by international copyright laws.