इतिहास गवाह है कि महामारी और असाध्य बीमारियों से मनुष्य की रक्षा में पशुओं का बहुत बड़ा योगदान रहा है। उदाहरण के लिए चेचक उन्मूलन के लिए उसकी वैक्सीन (Vaccine) की खोज और उत्पादन के दौरान पशुओं पर बहुत परीक्षण किए गए। 1980 में चेचक उन्मूलन टीका बनने से पहले 300 से 500 मिलियन लोगों की मृत्यु 12000 साल लंबे कालखंड में हुई। इसी तरह 1950 में 40 साल तक बंदर- चूहों पर प्रयोग के बाद पोलियो वैक्सीन का आविष्कार हुआ और लाखों लोगों की इस बीमारी से रक्षा हुई। ज्यादातर प्रायद्वीप से पोलियो उन्मूलन हो चुका है। उत्तर प्रदेश में आमतौर पर पाया जाने वाला बंदर जिसे रीसस मकाक (Rhesus Macaque) कहते हैं, लोगों से बहुत घुला मिला होता है। यह काफी सचेत होता है। आज सारे विश्व में कोरोनावायरस महामारी से बचाव के लिए वैक्सीन खोजने के परीक्षण चल रहे हैं। पशुओं पर किए जाने वाले इन परीक्षण को लेकर कई प्रकार की धारणाएं रही हैं। यह एक बहुत ही जटिल मुद्दा है।
रीसस मकाक: पुराने जमाने के बंदर
इनकी जनसंख्या अच्छी खासी होती है तथा यह किसी भी स्थान पर रह लेते हैं। दक्षिणी, मध्य और दक्षिण पूर्व एशिया में काफी संख्या में मिलते हैं। वैसे आमतौर पर यह कहीं भी रह सकते हैं। यह भूरे या सलेटी रंग का होता है। चेहरा गुलाबी होता है। औसतन इनकी दुम 20.7- 22.9 सेंटीमीटर लंबी होती है। वयस्क नर बंदर 53 सेंटीमीटर लंबा और 7.7 किलोग्राम वजन का होता है। इनके मुकाबले मादा बंदर छोटी, औसतन 45 सेंटीमीटर लंबी और 5.3 किलोग्राम वजन की होती है। इन के 32 दांत होते हैं। इनमें आत्मनिरीक्षण का माद्दा होता है। कुछ परीक्षणों में जब इन्हें आईना दिखाया गया तो इन्होंने उनमें देखा और अपने आप को शीशे में देखकर संवारा। इससे पता चलता है कि यह बंदर अपने बारे में पूरी तरह सचेत होते हैं। इसी तरह की एक रिपोर्ट सितंबर 2010 में प्रकाशित हुई थी, यह बताया गया कि यह बंदर अपने को शीशा देखकर पहचान लेते हैं, बस थोड़ा समय लगता है यह समझने में कि आईना क्या होता है और इसमें खुद को कैसे देखते हैं? वैसे बंदर के अलावा दूसरे जानवर आईना देखकर अपने को नहीं पहचान पाते।
इंसान के साथ बंदर के आक्रमण की खबरें अक्सर आती रहती हैं। कभी-कभी बंदर के काटने के मामले भी सामने आते हैं।
वैक्सीन बनाने में बंदर के उपयोग का औचित्य:
कुछ समय पहले सरकार ने अचानक बंदरों के निर्यात को पूरी तरह प्रतिबंधित कर दिया था। यूएसए (USA) जो कि बंदरों का सबसे बड़ा खरीददार देश था, उसे निर्देश दिए कि बंदरों पर प्रयोग कम करें इस निर्णय के कई तरह के असर हुए। विदेशी मुद्रा के साथ-साथ बंदरों के निर्यातकों के कामकाज पर भी काफी असर पड़ा। इस प्रतिबंध की वजह इंटरनेशनल प्राइमेट प्रोटेक्शन लीग ((International Primate Protection League)) की शिकायत थी कि चिकित्सा संबंधी शोध के लिए अमेरिका द्वारा मंगाए गए बंदरों का इस्तेमाल उस काम के बजाय परमाणु बम संबंधी परीक्षणों के लिए सुरक्षा शोध प्रयोगशालाओं में किया जाना था। 1950 में इसी तरह की एक रिपोर्ट के कारण बंदर के निर्यात पर रोक लगाई गई थी, जो 5 वर्ष बाद अमेरिकी सर्जन जनरल द्वारा यह आश्वासन देने पर हटाई गई कि आयात किए जा रहे बंदरों का इस्तेमाल पोलियो वैक्सीन के शोध पर ही होगा। वर्तमान में भारत 20000 बंदर सालाना निर्यात करता था। यह संख्या राष्ट्रीय वन्यजीव बोर्ड द्वारा तय होती है।
कोविड-19 वैक्सीन की खोज में पशुओं की भूमिका:
इतिहास में हमेशा से महामारी या सर्वव्यापी महामारी के दौर में संक्रामक रोगों की रोकथाम के शोध के लिए जानवरों का उपयोग होता रहा है। आजकल हम नई महामारी कोविड-19, जो तीव्र श्वसन सिंड्रोम कोरोनावायरस 2 ((Respiratory Syndrome Coronavirus 2) SARS-CoV-2) से फैल रही है, का सामना कर रहे हैं। इसकी वैक्सीन बनाने के लिए विश्व स्तर पर सभी चिकित्सा इकाइयां शोध कर रही है। यूनाइटेड किंगडम (United Kingdom) के वैज्ञानिकों की अगुवाई में सभी इकाइयां उनका सहयोग कर रही हैं। चिकित्सा अनुसंधान परिषद (एमआरसी) (Medical Research Council (MRC)) कोरोनावायरस से संबंधित सूची ( पोर्टफोलियो (Portfolio)) में सहायता कर रही है।
एमआरसी द्वारा वित्तीय सहायता प्राप्त कोविड-19 के लिए जानवरों पर शोध:
इंपीरियल कॉलेज लंदन (Imperial College London) के प्रोफेसर रॉबिन शटटॉक (Professor Robin Shattock) और उनकी टीम
SARS-CoV-2 के विरुद्ध प्रभावी वैक्सीन तैयार करने के लिए नई तकनीक का प्रयोग कर रहे हैं। इस नई तकनीक से वैक्सीन का निर्माण तेजी से हो सकेगा। वायरस का जैविक क्रम पता चलने के मात्र 2 हफ्तों में इस शोध टीम ने एमआरसी की वित्तीय सहायता से सफलतापूर्वक नई वैक्सीन तैयार की है। इस विषय में जानवरों पर शोध फरवरी में शुरू हो गए थे। यह परीक्षण चूहों पर हुए। शोधार्थियों के साथ टीम अब पेरिस (Paris) में बंदर पर रिसर्च (Research) करने जा रही है।
ऑक्सफोर्ड विश्वविद्यालय (University of Oxford) में प्रोफेसर सारा गिलबर्ट (Professor Sarah Gilbert) और उनकी टीम एक अन्य परीक्षण कर रही है, जिसमें वह एडिनोवायरस (Adenovirus) का सुरक्षित संक्रमण प्रयोग कर रही हैं। वैक्सीन के पशुओं पर परीक्षण चल रहे हैं। इसके लिए नेवले और स्तनपाई जानवरों का चयन किया गया है। सूअर पर भी इस वैक्सीन का प्रभाव देखा जा रहा है। सामान्य परिस्थितियों में जानवरों पर परीक्षण के बाद मनुष्य पर वैक्सीन का परीक्षण होता है, लेकिन समान वैक्सीन के अन्य बीमारियों में सफल परिणामों को देखते हुए इसे जानवर और मनुष्य पर साथ-साथ प्रयोग किया जा रहा है।
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