दुनिया में लाखों तरह के फूल पाए जाते हैं, जिसकी खूबसूरती देख कर हर कोई उन पर मोहित हो जाता है। ये फूल सदियों से हमारे घरों की शोभा बढ़ाते आ रहे हैं। कुछ पौधे तो ऐसे भी होते है जो देखने में किसी भी फूल से कम नहीं है, जैसे कि गूदेदार पौधा (Succulent Plant)। ये ऐसे पौधे होते हैं जिनका कोई भाग साधारण से अधिक मोटा या मांसल (Fleshy) होता है। यह अक्सर शुष्क या रेगिस्तानी क्षेत्रों में पाये जाते हैं और पानी के भंडारण के लिए इन पौधों ने खुद को सदियों पहले ही अनुकूलित बना लिया था। यह पानी आमतौर से पौधे के पत्तों या टहनियों व शाखों में रखते हैं और उन्हें काटने पर रस, जल या गोंद जैसा पदार्थ निकलता है। कैक्टस (Cactus), एलोवेरा (Aloevera), एचेवेरिया (Echeveria), कलान्चो (Kalanchoe) आदि जैसे कई गूदेदार पौधों को अपने असाधारण रूप के लिये सजावटी पौधों के लिये भी उगाया जाता है। परंतु कुछ फूल को हम न केवल उनके रूप के लिये बल्कि उनकी खुशबू के लिये भी उगाते है। इनमें कई दुर्लभ प्रजाति के फूल भी पाए जाते हैं। लेकिन एक फूल ऐसा भी है जिसकी बदबू और आकार की वजह से शायद आप इसे अपने घर पर न लगाना चाहें।
हम बात कर रहे हैं दुनिया के सबसे खूबसूरत और दुर्लभ फूल एमोर्फोफैलस टाइटेनम (Amorphophallus Titanum) की। यह इंडोनेशिया (Indonesia) के पश्चिमी सुमात्रा (Sumatra) में वर्षावनों का मूल निवासी है। यह दुर्लभ प्रजाति केरल के एक खूबसूरत बगीचे में देखने को मिलती है, जो सबका मनमोह लेती है। इस फूल के खिलने पर केरल के अलाट्टिल (Alattil) के गुरुकुल बोटैनिकल सैंक्चुअरी (Gurukula Botanical Sanctuary) के आगे पिछे सैंकड़ों लोग कतार में खड़े रहते हैं। इस फूल की एक और खास बात है कि यह फूल 9 साल के बाद खिलता है और और खिलने के केवल 48 घंटे तक ही जीवित रहता है। यह भारत का सबसे ऊँचा फूल जोकि लगभग 3-4.6 मीटर (10-15 फीट) तक बढ़ता है।
ज्यादातर फूलों में से अच्छी सुंगध आती है लेकिन इस फूल की बात करें तो इसकी महक सड़े मांस की तरह बदबूदार है। इसकी इस विशिष्ट गंध के कारण ही इसे “कॉर्प्स” (Corpse) अर्थात लाश के फूल नाम से भी जाना जाता है। यह स्व: परागण (Self Pollination) करने में असमर्थ हैं, इस कारण ये मक्खियों और कीट पतंगों को आकर्षित करने के लिए सड़े मांस की बदबू का उपयोग करता है। इस दुर्गंध और भ्रम के कारण कीट परागकण क्रिया में इसकी सहायता करते हैं। चूंकि पुष्पक्रम का रंग भी गहरा लाल होता है और इसकी बनावट भी मांस के समान होती है इसलिए यह कीटों को और भी अधिक भ्रमित करता है। विश्लेषण से पता चलता है कि इस बदबू में डाइमिथाइल ट्राइसल्फाइड (Dimethyl Trisulfide), डाइमिथाइल डाइसल्फ़ाइड (Dimethyl Disulfide), ट्राइमेथिलैमाइन (Trimethylamine), आइसोवालरिक एसिड (Isovaleric Acid), बेंज़िल अल्कोहल (Benzyl Alcohol), फिनोल (Phenol), और इण्डोल (Indole) जैसे रसायन शामिल हैं। इसकी दुर्लभता के कारण इस फूल को अंतर्राष्ट्रीय प्रकृति संरक्षण संघ (International Union for Conservation of Nature) ने लुप्तप्राय प्रजातियों के रूप में वर्गीकृत किया गया है।
इसमें नर और मादा दोनों फूल एक ही पुष्पक्रम में उगते हैं। पहले मादा फूल खिलते हैं जिसके एक या दो दिन बाद नर फूल खिलते हैं। यह प्रक्रिया आमतौर पर फूल को आत्म-परागण से रोकती है। इसकी यह विचित्र खुशबू स्पैडिक्स (Spadix) द्वारा निकलती है और चारों तरफ फैल जाती है। एक स्पैथ (Spathe) द्वारा फूल से लिपटे ये स्पैडिक्स एक बड़ी पंखुड़ी की तरह दिखते है। ये अंदर से खोखले होते हैं और इसमें छोटे फूलों के दो वलय (Ring) होते हैं, ऊपरी वलय नर फूलों को धारण करता है, निचला वलय चमकीले लाल-नारंगी मादा फूलों से भरा होता है।
इसी के समान एक और विशाल पुष्प रेफ्लीसिया (Rafflesia) भी है। मलेशिया (Malaysia), इंडोनेशिया (Indonesia), थाईलैंड (Thailand) और फिलीपींस (Philippines) में पाया जाने वाला रेफ्लीसिया एक आश्चर्यजनक परजीवी पौधा है, जिसका फूल वनस्पति जगत के सभी पौंधों के फूलों से बड़ा लगभग 100 सेंटीमीटर (40 इंच) व्यास का होता है और इसका वजन 10 किलोग्राम तक हो सकता है। सभी प्रजातियों में फूल की त्वचा छूने में मांस की तरह प्रतीत होती है और इसके फूल से सड़े मांस की बदबू आती है, जिससे कुछ विशेष कीट पतंग इसकी ओर आकर्षित होते हैं। अब तक इसकी 28 प्रजातियां खोजी जा चुकी हैं। यह पहली बार 1791 और 1794 के बीच जावा (Java) में फ्रांसीसी सर्जन (French Surgeon) और प्रकृतिवादी लुई डेसचैम्प्स (Louis Deschamps) द्वारा खोजा गया था। परंतु 1803 में अंग्रेजों द्वारा इसके नोट्स (Notes) और चित्र जब्त कर लिये गये थे, जिस कारण पश्चिमी विज्ञान को इस फूल की जानकारी उपलब्ध नहीं हो पायी। बाद में (1818) इसकी खोज सबसे पहले इंडोनेशिया (Indonesia) के वर्षा वनों में हुई थी, जब जोसेफ अर्नाल्ड (Joseph Arnold) के एक सेवक ने इसे देखा। इसका नामकरण उसी खोजी दल के नेता स्टैमफोर्ड रेफ्लस (Stamford Raffles) के नाम पर हुआ। इसकी अधिकांश प्रजातियों में नर और मादा अलग-अलग फूल होते हैं, लेकिन कुछ में उभयलिंगी (Hermaphroditic) फूल भी पाये जाते हैं और इस पौधे में तना, पत्तियां या जड़ें नहीं होती।
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