विश्व भर में गुलाब को सबसे सुंदर फूल माना जाता है, गुलाब इतना सुगंधित होता है कि इसका उपयोग इत्र बनाने में किया जाता है। जौनपुर में गुलाब की खेती इत्र बनाने के लिये बड़े पैमाने पर की जाती है, यहाँ पर उत्पादित गुलाब प्रदेश के अन्य जिलों में व भारत के अन्य प्रदेशों में भी भेजा जाता है। यहाँ पर स्वदेशी और संकर दोनों नस्लों के गुलाब उगाये जाते हैं। प्राचीन दुनिया में यह अत्यधिक बेशकीमती, सुंदर, सुगंधित फूल सौंदर्य और जुनून का प्रतीक था और ग्रीक (Greek) और रोमन (Roman) सभ्यताओं में प्रेम की देवी एफ़्रोडाइट (Aphrodite) और शुक्र के लिए अलौकिक था। ऐसा माना जाता है कि गुलाब की खुशबू मन को शांत और साफ करती है।
गुलाब आज सर्वव्यापी है और विशेषज्ञ इत्र बनाने वाले और खुशबू डिजाइनिंग कंपनियों (Designing Companies) द्वारा बनाए गए इत्र का एक प्रमुख घटक है, हालांकि एक या दो दशक पहले तक वे पुराने जमाने और अप्रचलित माना जाने वाली सुगंध की श्रेणी में आते थे। फिर भी गुलाब हजारों वर्षों से अपनी सुगंध को फैला रहे हैं। सबसे पहला पुरातात्विक विवरण 35 से 32 मिलियन साल पहले पैलेओलिथिक (Paleolithic) युग के कोलोराडो रॉककिस (Colorado Rockies) में खोजे गए गुलाब के पत्ते से पाया गया है। कलात्मक रूपांकनों में उनकी पहली उपस्थिति एशिया (Asia) में लगभग 3000 ईसा पूर्व में हुई थी। यह कहा जाता है कि मिस्र (Egypt) की रानी क्लियोपेट्रा (Cleopatra - नील नदी की रानी), ने मार्क एंथनी (Marc Anthony) के साथ एक भावुक प्रेम संबंध के चलते, उनके लिए गुलाब की पंखुड़ियों से एक कमरा भर दिया था। केवल इतना ही नहीं प्राचीन काल की महिलाओं द्वारा गुलाब की पंखुड़ियों का उपयोग सौन्दर्य-प्रसाधन के रूप में भी किया जाता था।
मूल अमेरिकी भारतीयों (American Indians) द्वारा औषधीय रूप से गुलाब के विभिन्न भागों का उपयोग किया जाता था, जैसे प्राचीन चिकित्सकों ने बुखार, सर्दी, संक्रामक ज़ुकाम, दस्त, और पेट की समस्याओं के इलाज में, और यहां तक कि गुलाब के फूलों का तेल बनाकर घावों की सूजन को शांत किया जाता था। 1800 के उत्तरार्ध के विक्टोरियन युग (Victorian Era) में बगीचों में फूलों की मनभावन खुशबू और सुंदरता को देखते हुए लगाया गया। यह एक समय था जब वनस्पति विज्ञानियों ने इत्र को परिभाषित करने और वर्गीकृत करने का पहला प्रयास किया था। हालांकि, मूल गुलाब की गंधों को वर्गीकृत करने और उनके रसायनों को ठीक से पहचानने में एक सौ से अधिक वर्षों का समय लगा था। गुलाब की गंध सात अलग-अलग श्रेणियों में आती है, वे हैं: गुलाब, नास्टर्टियम (Nasturtium), ऑरिस (Orris), वायलेट (Violet), सेब, लौंग और नींबू। बाकी अन्य 26 कम प्रचलित सुगंध भी हैं। आमतौर पर, गहरे रंग के गुलाब अपनी मोटी और मखमली पंखुड़ियों के लिए जाने जाते हैं और उनसे सबसे गहरी सुगंध आती है। लाल और गुलाबी गुलाब की खुशबू गुलाब की असली खुशबू के रूप में जानी जाती है। सफेद और पीले रंग के फूलों में वायलेट, नास्टर्टियम और नींबू के समान सुगंध होती है। नारंगी गुलाब में अक्सर फल, वायलेट, नास्टर्टियम और लौंग की गंध आती है।
गुलाब से केवल इत्र का ही निर्माण नहीं किया जाता है, बल्कि गुलाब का तेल भी बनाया जाता है। रोज आयल (Rose Oil) के रूप में जाना जाने वाला यह तेल संभवतः 10वीं शताब्दी में फारस (Persia) में बनाया गया था, जो यूरोप (Europe) में गुलाब आयात करने वाली पहली सभ्यता थी। गुलाब का तेल अपने प्रतिउपचायक, जीवाणुरोधी, कसैले, अवसादरोधी और सूजनरोधी गुणों के लिए जाना जाता है। गुलाब के तेल के दो अलग-अलग प्रकार हैं : रोज ओटो (Rose Otto) और रोज एब्सोल्यूट (Rose Absolute)। ये डेमसेना (Damascena) गुलाब की पंखुड़ियों से व्युत्पत्ति साझा करते हैं, जो गुलाब की सैकड़ों प्रजातियों में से एक है, तथा सीरिया (Syria) की मूल उत्पत्ति है, और इत्र और अरोमाथेरेपी (Aromatherapy) दोनों में अत्यधिक मूल्यवान है। हालांकि, दोनों गंध, रंग और घनत्व में भिन्न हैं।
रोज ओटो तेल को हाइड्रो-डिस्टिलेशन (Hydro-distillation) के माध्यम से प्राप्त किया जाता है, एक प्रक्रिया जिसमें गुलाब की पंखुड़ियों को पानी में भिगोया जाता है और फिर गर्म किया जाता है, जिसके बाद वह तेल छोड़ देता है। वाष्पशील पदार्थों को फिर भाप में संघनित किया जाता है और गाढ़ा किया जाता है, और जब वह ठंडा हो जाता है, तो तेल सतह पर तैरने लगता है। दूसरी ओर, रोज़े एब्सोल्यूट, सॉल्वेंट एक्सट्रैक्शन (Solvent Extraction) के माध्यम से प्राप्त किया जाता है, एक विधि जिसमें एक बड़ी मात्रा में विलायक से भरे डब्बे में गुलाब की पंखुड़ियों को रखा जाता है। पंखुड़ियों के सुगंधित तत्वों को डब्बे को घुमाकर निकाला जाता है, जिससे विलायक वाष्पित हो जाता है, जो गुलाब के ठोस पदार्थ को उत्पन्न करता है। इस सामग्री में इथेनॉल (Ethanol) मद्यसार मिलाया जाता है, जो गैर-सुगंधित घटकों के निस्पंदन का काम करता है। परिणामस्वरूप उत्पन्न हुए तरल को गुलाब के तेल के रूप में जाना जाता है। केवल एक बूंद तेल बनाने के लिए 60 गुलाब की आवश्यकता होती है, और 100 किलो पंखुड़ियों से मात्र 28 ग्राम तेल निकलता है।
वहीं गुलाब के तेल की लागत को कम करने के लिए, कुछ बेईमान व्यापारी गुलाब के तेल को गेरियम (Geranium) या पामारोसा (Palmarosa) तेलों के साथ मिला देते हैं, ये दोनों गुलाब के तेल के मुख्य घटक ग्रेनियॉल (Geraniol) से समृद्ध हैं। इनमें से कुछ "गुलाब के तेल" 90% गेरियम या पामारोसा से 10% तक मिलावटी होते हैं। इसे गुलाब की सुगंध को बढ़ाने के रूप में जाना जाता है। साथ ही इस बात का आवश्य ध्यान रखें कि शुद्ध गुलाब का तेल सीधे त्वचा पर इस्तेमाल नहीं किया जाना चाहिए, क्योंकि यह लाल त्वचा और धब्बे जैसे प्रत्यूर्जता (Allergy) का कारण बन सकता है।
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