भारत के विभिन्न मंदिर अपने आप में रहस्यमयी गाथाओं को समेटे हुए हैं, तथा इन्हीं मंदिरों में से एक जौनपुर का त्रिलोचन महादेव मंदिर भी है। त्रिलोचन महादेव मंदिर न केवल भक्तों की आस्था का मुख्य केंद्र है, बल्कि पर्यटन के लिए भी महत्वपूर्ण माना जाता है। यह मंदिर क्षेत्र का सबसे प्रमुख मंदिर है, तथा विशेष रूप से भगवान शिव की अराधना के लिए जाना जाता है।
ऐसा विश्वास है, कि इस पवित्र धाम में सच्चे मन से मांगी हर मुराद पूरी होती है, इसलिए शिवरात्रि या सावन जैसे अवसरों पर यहां भक्तों का तांता लगा रहता है। मंदिर से जुड़ी खास बात ये है कि, यहां स्थित शिवलिंग समय के साथ बड़ा होता जा रहा है। ऐसा माना जाता है कि करीब 60 साल पहले शिवलिंग की ऊंचाई 2 फ़ीट थी, लेकिन आज यह ऊंचाई 3 फ़ीट से अधिक हो गयी है। इतना ही नहीं, समय के साथ शिवलिंग की चमक भी बढ़ी है तथा शिवलिंग पर भोले बाबा की तीसरी आंख साफ नज़र आने लगी है। इस घटना से महादेव पर लोगों की आस्था और भी प्रगाढ़ होती जा रही है, तथा भक्तों की आस्था देख, मंदिर को पर्यटन स्थल के रूप में विकसित किया गया है। पर्यटन महत्व को देखते हुए मंदिर परिसर का सौंदर्यीकरण भी कराया गया है। यह मंदिर एक छोटे से कुंड के सामने बना है, तथा किवदंतियों की मानें तो, भगवान ब्रह्मा ने यहां एक यज्ञ का आयोजन किया था, जिसके बाद भगवान शिव यहां स्वयं प्रकट हुए। ऐसा विश्वास है कि, मंदिर में मौजूद शिवलिंग कहीं से लाया नहीं गया, अपितु यह अपने आप ही यहां स्थापित हुआ है। कहा जाता है कि, मंदिर को लेकर आस-पास के दो गांवों रेहटी और डिंगुरपुर में विवाद था कि, यह मंदिर किस गांव की सरहद के भीतर है। कई पंचायतें और तर्क-वितर्क हुए, किंतु कोई परिणाम नहीं आया। तब दोनों गांवों ने निर्णय लिया कि, स्वयं भगवान भोलेनाथ इस बात का फैसला करेंगे। इस प्रकार दोनों पक्षों ने मंदिर में अपने-अपने पक्षों का ताला लगाया और घर चले गए। अगले दिन जब दोनों ही पक्ष मंदिर पहुंचे तो, देखा कि, शिवलिंग स्पष्ट रूप से उत्तर दिशा में रेहटी गांव की तरफ झुका हुआ था। यह देख सभी आश्चर्यचकित हुए और तभी से मंदिर को रेहटी गांव के भीतर माना जाने लगा। मंदिर की संरचना की बात करें, तो इसके अंदर एक शिवलिंग और कई छोटे मंदिर मौजूद हैं, जो अन्य देवताओं को समर्पित हैं। मंदिर के सामने पूर्व दिशा में मौजूद रहस्यमयी ऐतिहासिक कुंड में हमेशा जल भरा रहता है, जिसका सम्बंध करीब 9 किलोमीटर दूर, सई नदी से बताया गया है। मान्यता है कि, कुंड में स्नान करने से बुखार और चर्म रोग जैसी बीमारियां ठीक हो जाती हैं। हाल ही में, मंदिर में एक अप्रिय घटना देखने को मिली जिसके तहत, आकाशीय बिजली गिरने से मंदिर के ऊपर बना गुंबद टूट गया। आकाशीय बिजली गिरने से नक्काशी, त्रिशूल, सोलर लाइट (Solar Light) और बिजली के तार क्षतिग्रस्त हुए, हालांकि घटना के कारण कोई मानव नुकसान नहीं हुआ तथा मंदिर दर्शनों के लिए खुला है।
त्रिलोचन महादेव मंदिर, काशी विश्वनाथ से महज़ एक घंटे की दूरी पर स्थित है तथा यदि आप त्रिलोचन महादेव मंदिर के दर्शन करना चाहते हैं तो, आपके लिए सड़क मार्ग और रेल मार्ग दोनों की सुविधा उपलब्ध है। यदि आप सड़क मार्ग का प्रयोग कर रहे हैं तो, वाराणसी से लखनऊ राजमार्ग के ज़रिए आप मंदिर पहुंच सकते हैं। वाराणसी से करीब 40 किलोमीटर दूर त्रिलोचन बाज़ार स्थित है तथा यहां से दाहिने हाथ पर त्रिलोचन महादेव मंदिर का दरवाज़ा आपको सीधे मंदिर तक ले जाएगा। दरवाज़े से मंदिर की दूरी महज़ 500 मीटर है। रेल मार्ग से जाने के लिए आपको वाराणसी-लखनऊ रेल मार्ग पर त्रिलोचन रेलवे स्टेशन पर उतरना पड़ेगा। स्टेशन (Station) से मंदिर की दूरी करीब 2 किलोमीटर है। इस प्रकार आप आसानी से मंदिर तक पहुंच सकते हैं तथा त्रिलोचन महादेव के दर्शन कर सकते हैं।
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