जौनपुर में ईस्‍लामी शिक्षा का इतिहास

जौनपुर

 21-11-2020 08:33 AM
ध्वनि 2- भाषायें

शिक्षा मनुष्य के सफल जीवन का मुख्य आधार है और किसी भी समाज को प्रगतिशील बनाने में शिक्षा का अहम् योगदान होता है। शिक्षा से ही व्‍यक्ति का सर्वांगीण विकास होता है। शिक्षा के स्‍वरूप जैसे धार्मिक शिक्षा, व्‍यसायिक शिक्षा, व्‍यवहारिक शिक्षा आदि हैं किंतु इनका उद्देश्‍य एक ही है, व्‍यक्ति का विकास करना। इस्लाम धर्म में भी शिक्षा का सर्वाधिक महत्व है, इसका अंदाजा आप इस बात से लगा सकते हैं कि अरबी में शिक्षा के लिए तीन शब्दों का उपयोग किया जाता है। सबसे पहला है तालीम (Ta'līm), जो 'अलिमा' (Alima) से बना है, जिसका अर्थ है जानना, जागरूक होना, विचार करना और सीखना। दूसरा शब्द है तरबियाह (Tarbiyah) जो 'रबा' (Raba) से बना है, जिसका अर्थ है ईश्वर की इच्छा के आधार पर आध्यात्मिक और नैतिक विकास और तीसरा शब्द है तायदिब (Ta'dīb) जो 'अदुबा' (Aduba) से बना है, जिसका अर्थ है सामाजिक व्यवहार में सुसंस्कृत या परिष्कृत होना। प्रारंभिक काल से ही शिक्षा ने इस्लाम में महत्वपूर्ण भूमिका निभाई है। आधुनिक युग से पूर्व, इस्लाम में शिक्षा कम उम्र से ही प्रारंभ कर दी जाती थी, उस समय अरबी और कुरान का अध्ययन कराया जाता था। तब छात्र तफ़्सीर (आम तौर पर क़ुरान की व्याख्या के लिये प्रयोग किया जाता है और हिंदी में तफ़्सीर (Tafsir) का अर्थ टीका तथा भाष्य होता है) और फ़िक़्ह (Fiqh) (इस्लामी न्यायशास्त्र (मज़हबी तौर-तरीके) को कहा जाता है) में प्रशिक्षण ग्रहण करते थे। इस्लाम धर्म के शुरूआत की कुछ शताब्दियों तक शिक्षा पूरी तरह से अनौपचारिक थी, लेकिन 11वीं और 12वीं शताब्दियों में सत्ताधारी कुलीन लोगों ने उलमा या मौलाना (इस्लाम में धार्मिक ज्ञान के संरक्षक) के समर्थन और सहयोग से मदरसों के रूप में जाना जाने वाले उच्च धार्मिक शिक्षण संस्थानों की स्थापना शुरू की।
इन मदरसों ने जल्द ही जन-समुदायों के बीच वृद्धि की और देखते ही देखते ये पूरे इस्लामी जगत में प्रचलित हो गये, ये मदरसे मुख्य रूप से इस्लामी नियम कानून के अध्ययन के लिए समर्पित थे, लेकिन उन्होंने धर्मशास्त्र, चिकित्सा और गणित जैसे अन्य विषयों की भी पेशकश की। ऐतिहासिक रूप से मुसलमानों को ये प्रतिष्ठित शिक्षण (जैसे दर्शन और चिकित्सा शास्त्र) पूर्व इस्लामी सभ्यताओं से विरासत में मिली, जिसे उन्होंने "पुरातन विज्ञान" (Ancient Science) या "तर्कसंगत विज्ञान" (Rational Science) का नाम दिया। ये धार्मिक पुरातन विज्ञान कई शताब्दियों तक फले-फूले, और उनके प्रसारण ने शास्त्रीय तथा मध्यकालीन इस्लाम में शैक्षिक ढांचे का निर्माण किया। उस समय के मदरसों में औपचारिक अध्ययन केवल पुरुषों को दिया जाता था महिलाओं को नहीं। केवल प्रमुख शहरी परिवारों की महिलाओं को ही निजी तौर पर शिक्षित किया जाता था। उनमें से कई महिलाओं ने इजाज़ा (Ijazas) प्राप्त कर घर से ही हदीथ (Hadith) अध्ययन, सुलेख और कविता पाठ में तालीम हासिल की। कामकाजी महिलाओं ने धार्मिक ग्रंथों और व्यावहारिक कौशल को मुख्य रूप से एक-दूसरे से सीखा, हालांकि उन्हें मस्जिदों और निजी घरों में पुरुषों के साथ कुछ निर्देश भी मिले। उस समय इस्लामी शिक्षा संस्मरण पर केंद्रित थी, लेकिन उन्नत छात्रों को ग्रंथ पाठकों और लेखकों के रूप में भी प्रशिक्षित किया गया। इसमें आकांक्षी विद्वानों के समाजीकरण की एक प्रक्रिया भी शामिल थी। इस शैक्षिक प्रणाली में दिशा-निर्देश छात्रों और उनके शिक्षक के बीच व्यक्तिगत संबंधों पर केंद्रित होते थे। शिक्षा प्राप्ति का औपचारिक सत्यापन, इजाज़ा आदि शैक्षिक संस्था की बजाय एक विशेष विद्वान द्वारा प्रदान किया जाता था, और इसके बाद धारक को विद्वानों की एक वंशावली के भीतर रखा जाता था, जो कि शैक्षिक प्रणाली में एकमात्र मान्यता प्राप्त पदानुक्रम का तरीका था। मदरसा परिसर में आमतौर पर एक मस्जिद, छात्रावास और एक पुस्तकालय होता था। इन मदरसों का रखरखाव एक वक्फ (Waqf) (धर्मार्थ दान) द्वारा किया जाता था, इसके अलावा प्राध्‍यापकों (Professors) के वेतन, छात्रों के वजीफे और निर्माण आदि भी वक्फ के द्वारा ही देखे जाते थे। ये मदरसे एक आधुनिक कॉलेज (Modern College) के विपरीत थे, इनके पास मानकीकृत पाठ्यक्रम या प्रमाणन की संस्थागत प्रणाली का अभाव था। परंतु ये मदरसे मध्ययुगीन दुनिया के शुरुआती शिक्षा केंद्रों में से एक थे। धीरे-धीरे ये शिक्षा संस्थान दुनिया भर में फैल गये। 859 ईस्वी में स्थापित अल करौइन विश्वविद्यालय (Al Karaouine University) को गिनीज बुक ऑफ रिकॉर्ड्स (Guinness Book of Records) में दुनिया के सबसे पुराने डिग्री (Degree) देने वाले विश्वविद्यालय के रूप में सूचीबद्ध किया गया है। अल-अजहर विश्वविद्यालय भी एक प्रारंभिक विश्वविद्यालय है जो कि फातिमी खिलाफत (इस्माइली शिया इस्लाम विचारधारा को मानने वाले जो मिस्र साम्राज्य (Egyptian Empire) के हजरत मुहम्मद के वशंज थे और दुनियाभर में फैले इस्माइली शिया मुस्लिमों के इमाम थे) के संस्करणों में से एक है, जिसमें संगठित निर्देश 978 में शुरू हुए थे। मिस्र में काहिरा विश्वविद्यालय (Cairo University) की स्‍थापना के कुछ वर्ष बाद, भारत में भी कई शिक्षा केंद्र विकसित हुए और इनका विस्‍तार हुआ। इस्लामी शिक्षा के सबसे महत्वपूर्ण केंद्रों में से एक जौनपुर भी है। 1351 ईस्वी में सुल्तान फिरोज शाह तुगलक द्वारा इसकी नींव रखने और शर्की राजाओं (1394-1500 ईस्वी) की राजधानी होने के बाद जौनपुर को सुंदर और विशाल मस्जिद, मदरसा और मठों से सजाया गया, जहाँ विभिन्न हिस्सों से विद्वान और भक्त आया करते थे। जौनपुर के अलावा दिल्ली, आगरा, लाहौर, फ़तेहपुर सीकरी, मुल्तान, गुजरात, कश्मीर, गौड़ (लक्ष्मणावती), इलाहाबाद, अजमेर, पटना, हैदराबाद, अहमदाबाद और बीदर भी महत्वपूर्ण केंद्र हैं। उस समय जहाँ भी मुस्लिम सत्ता स्थापित थी, इस्लामी शिक्षा और संस्कृति के महत्वपूर्ण केंद्र बन गए।
जौनपुर पर लेखक मौलाना खैर-उद-दीन मुहम्मद द्वारा लिखी गयी 200 साल पुरानी पुस्तक "ताज़कीरत-उल उलामा ऑर ए मेमोयर ऑफ़ दी लर्नड मेन" (Tazkirat-ul Ulama Or A Memoir Of The Learned Men) में उन्होंने कुछ प्रमुख सिद्ध पुरुषों का एक संक्षिप्त विवरण दिया है, जो उस दौरान काफी प्रसिद्ध हुए थे। इस लिंक (https://rampur.prarang.in/posts/1955/A-list-of-scholars-of-Jaunpurs-past-1300-1800) के माध्यम से आप इन विद्वानों के विषय में विस्तार से जान सकते हैं। यह पुस्तक जौनपुर में इस्लामी शिक्षा के इतिहास का अद्भुत नमूना है। जौनपुर अपना एक वि‍शि‍ष्‍ट ऐति‍हासि‍क, सामाजि‍क, सांस्कृतिक, एवं राजनैति‍क अस्‍ति‍त्‍व रखता है, जिस पर कभी शर्की शासन करते थे। दिल्ली में राजनीतिक अनिश्चितता के दौरान शर्की राज्य की स्थिरता और समृद्धि ने बड़ी संख्या में इस्लामी विद्वानों और महानुभावों को जौनपुर की ओर आकर्षित किया, जिन्होंने इस शहर को इस्लामिक कला, साहित्य और धार्मिक गतिविधि के केंद्र में बदल दिया। शर्की राजवंश के संरक्षण ने इस क्षेत्रीय सांस्कृतिक उत्थान में महत्वपूर्ण भूमिका निभाई, उन्होंने कई विद्वानों और सूफियों का समर्थन किया, साथ ही साथ अनेकों भव्‍य भवनों, मस्‍जि‍दों तथा मकबरों का निर्माण और रखरखाव किया। शर्की शासकों ने संगीत का भी संरक्षण किया, इसके बारे में आप विस्तारपूर्वक हमारे इस लेख (https://jaunpur.prarang.in/posts/1939/Arrival-of-Sufi-music-and-ceremony-called-Sama-in-Jaunpur) में पढ़ सकते हैं। साथ ही शि‍क्षा, संस्‍क़ृति, संगीत, कला और साहि‍त्‍य के क्षेत्र में जो अनूठा स्‍वरूप शर्कीकाल में वि‍द्यमान रहा, वह जौनपुर के इतिहास में सबसे महत्‍वपूर्ण है। जौनपुर अपने दिनों में इस्लामी शिक्षा के लिये प्रसिद्ध था। यहां तक कि शेरशाह, जो बाद में भारत का सर्वोपरि मुस्लिम शासक बना, उसने भी जौनपुर से ही शिक्षा ग्रहण की थी, उन्होंने इतिहास, कविता, और दर्शन जैसे विषयों पर अध्ययन किया था। उन्होंने फारसी और अरबी भी सीखी थी। यह इब्राहिम शर्की (1402-40) के शासनकाल के दौरान इस्लामी शिक्षा का एक प्रसिद्ध स्थान था, उस काल में यहां कई प्रसिद्ध कॉलेज (College), विश्वविद्यालय (University) और मस्जिदें थी, जिन्होंने काफी लंबे समय तक अपनी प्रसिद्धि बनाए रखी। यहां की शिक्षा ने लोगों के दिल और दिमाग को बहुत प्रभावित किया। इब्राहिम के शासनकाल के दौरान, जौनपुर को शिक्षा के एक महत्वपूर्ण केंद्र के रूप भारत के शिराज (शिराज-ए-हिंद) के सम्मान से सम्मानित किया गया और इसकी तुलना फारस (Persia) में "शिराज" से की गई थी। कई विद्वानों ने यहां अपना निवास स्थान बनाया। उच्च शिक्षा के लिए सैकड़ों पुरुष दूर-दूर से यहां आते थे। शेख इलाहाबाद जौनपुरी, ज़बीर दिलवारी मौलाना, हसन बक्शी और नूर-उल-हक जैसे कई विद्वान यहीं से निकले थे। जौनपुर में सैकड़ों मदरसे थे और अध्यापकों को उनकी साहित्यिक योग्यता के आधार पर पदक और जागीर प्रदान की जाती थी। मुनीम खान ने भी प्रसिद्ध जौनपुर मदरसा की स्थापना की और महमूद शाह की पत्नी बीबी राजी ने भी जौनपुर में एक जामा-मस्जिद, एक मठ और एक मदरसा का निर्माण करवाया था। जौनपुर मुगल साम्राज्य के अंतिम दिनों तक एक महत्वपूर्ण शैक्षिक केंद्र के रूप में प्रसिद्ध रहा। मुगल बादशाहों ने जौनपुर में शैक्षणिक संस्थानों की प्रगति में बहुत रुचि ली। वे अपने शिक्षण संस्थानों को बहुत सारा धन प्रदान करते थे। मुहम्मद शाह के समय में भी, यहां 20 प्रसिद्ध स्कूल मौजूद थे। परंतु समय बीतने के साथ जौनपुर संरक्षण की कमी की वजह से उच्च शिक्षा के केंद्र के रूप में अपनी महिमा खो बैठा। संदर्भ
https://en.wikipedia.org/wiki/Education_in_Islam
https://www.yourarticlelibrary.com/education/centers-of-learning-during-islamic-rule-in-india/44821
https://www.yourarticlelibrary.com/education/indian-education/10-medieval-centres-of-islamic-learning-discussed/63494
https://rampur.prarang.in/posts/1955/A-list-of-scholars-of-Jaunpurs-past-1300-1800
https://archive.org/details/in.ernet.dli.2015.334064/page/n1/mode/2up
https://jaunpur.prarang.in/posts/1939/Arrival-of-Sufi-music-and-ceremony-called-Sama-in-Jaunpur
चित्र सन्दर्भ:
मुख्य चित्र में जौनपुर किले के मैदान में कुछ इस्लामिक बच्चों का सांकेतिक चित्रण है। (Prarang)
दूसरा चित्र जौनपुर के प्रसिद्ध इमानिया नासिरया मदरसा का है। (Prarang)
तीसरा चित्र लाल दरवाजा मस्जिद, जौनपुर के समीपवर्ती मदरसे का है। (Canva)



RECENT POST

  • बैरकपुर छावनी की ऐतिहासिक संपदा के भंडार का अध्ययन है ज़रूरी
    उपनिवेश व विश्वयुद्ध 1780 ईस्वी से 1947 ईस्वी तक

     23-11-2024 09:21 AM


  • आइए जानें, भारतीय शादियों में पगड़ी या सेहरा पहनने का रिवाज़, क्यों है इतना महत्वपूर्ण
    विचार I - धर्म (मिथक / अनुष्ठान)

     22-11-2024 09:18 AM


  • नटूफ़ियन संस्कृति: मानव इतिहास के शुरुआती खानाबदोश
    सभ्यताः 10000 ईसापूर्व से 2000 ईसापूर्व

     21-11-2024 09:24 AM


  • मुनस्यारी: पहली बर्फ़बारी और बर्फ़ीले पहाड़ देखने के लिए सबसे बेहतर जगह
    पर्वत, चोटी व पठार

     20-11-2024 09:24 AM


  • क्या आप जानते हैं, लाल किले में दीवान-ए-आम और दीवान-ए-ख़ास के प्रतीकों का मतलब ?
    वास्तुकला 1 वाह्य भवन

     19-11-2024 09:17 AM


  • भारत की ऊर्जा राजधानी – सोनभद्र, आर्थिक व सांस्कृतिक तौर पर है परिपूर्ण
    आधुनिक राज्य: 1947 से अब तक

     18-11-2024 09:25 AM


  • आइए, अंतर्राष्ट्रीय छात्र दिवस पर देखें, मैसाचुसेट्स इंस्टिट्यूट ऑफ़ टेक्नोलॉजी के चलचित्र
    वास्तुकला 1 वाह्य भवन

     17-11-2024 09:25 AM


  • आइए जानें, कौन से जंगली जानवर, रखते हैं अपने बच्चों का सबसे ज़्यादा ख्याल
    व्यवहारिक

     16-11-2024 09:12 AM


  • आइए जानें, गुरु ग्रंथ साहिब में वर्णित रागों के माध्यम से, इस ग्रंथ की संरचना के बारे में
    विचार I - धर्म (मिथक / अनुष्ठान)

     15-11-2024 09:19 AM


  • भारतीय स्वास्थ्य प्रणाली में, क्या है आर्टिफ़िशियल इंटेलिजेंस और चिकित्सा पर्यटन का भविष्य
    विचार 2 दर्शनशास्त्र, गणित व दवा

     14-11-2024 09:15 AM






  • © - 2017 All content on this website, such as text, graphics, logos, button icons, software, images and its selection, arrangement, presentation & overall design, is the property of Indoeuropeans India Pvt. Ltd. and protected by international copyright laws.

    login_user_id