क्यों भारत 1951 शरणार्थी सम्मेलन का हिस्सा नहीं है?

जौनपुर

 20-11-2020 09:29 PM
सिद्धान्त 2 व्यक्ति की पहचान

विश्व भर के शरणार्थियों (जो युद्ध, उत्पीड़न और संघर्ष के कारण अपने घरों को छोड़ने के लिए मजबूर रहे हैं) की अनिश्चित स्थिति के बारे में जागरूकता बढ़ाने के लिए विश्व शरणार्थी दिवस मनाया जाता है। संयुक्त राष्ट्र 1951 शरणार्थी सम्मेलन के अनुसार, एक शरणार्थी वह व्यक्ति है, जिसे अपनी जाति, धर्म, राष्ट्रीयता, किसी विशेष सामाजिक समूह की सदस्यता, या राजनीतिक विचारों के कारण होने वाले उत्पीड़न की आशंकाओं से बचने के लिए अपने घर और देश को छोड़ना पड़ता है। शरणार्थी दुनिया के सबसे कमजोर लोगों में से हैं, जिन्हें अक्सर उनके सबसे बुनियादी अधिकारों से वंचित किया जाता है। 1951 के शरणार्थी सम्मेलन और इसके 1967 संलेख के अनुसार, शरणार्थियों को किसी भी देश में अन्य विदेशी नागरिकों के समान व्यवहार किया जाना चाहिए, और कई अन्य मामलों में यह व्यवहार राष्ट्रीय नागरिकों के समान होना चाहिए। लेकिन 1951 का शरणार्थी सम्मेलन गैर-वापसी सिद्धांत के साथ अपने मेजबान देश के प्रति शरणार्थियों के दायित्वों पर भी प्रकाश डालता है। इस सिद्धांत के अनुसार एक शरणार्थी उस देश में वापस नहीं लौट सकता, जहां वह अपने जीवन या स्वतंत्रता के लिए गंभीर खतरों का सामना करता है। हालांकि, यह उन शरणार्थियों पर लागू नहीं होता है, जिन्हें देश की सुरक्षा के लिए खतरा माना जाता है या जिन्हें गंभीर अपराध का दोषी ठहराया गया है।
1951 के सम्मेलन में निहित अधिकारों में निष्कासित नहीं किए जाने का अधिकार (कुछ शर्तों के अलावा), अवैध रूप से दूसरे राज्य के क्षेत्र में प्रवेश करने के लिए दंडित नहीं किये जाने का अधिकार, काम करने का अधिकार, आवास का अधिकार, शिक्षा का अधिकार, सार्वजनिक राहत और सहायता का अधिकार, धर्म की स्वतंत्रता का अधिकार, न्यायालयों तक पहुँचने का अधिकार, क्षेत्र के भीतर आंदोलन की स्वतंत्रता का अधिकार, पहचान और यात्रा दस्तावेज जारी करने का अधिकार शामिल हैं। इसके अलावा, शरणार्थी अन्य अधिकारों के भी हकदार बन जाते हैं, जो इस मान्यता पर आधारित है कि वे जितने अधिक समय तक शरणार्थी बने रहेंगे, उन्हें उतने ही अधिक अधिकारों की आवश्यकता होगी। 2017 में शरणार्थियों के लिए संयुक्त राष्ट्र उच्चायुक्त (United Nations High Commissioner for Refugees - UNHCR) विवरण के अनुसार भारत में 2,00,000 शरणार्थी निवास कर रहे हैं। ये शरणार्थी म्यांमार (Myanmar), अफगानिस्तान (Afghanistan), सोमालिया (Somalia), तिब्बत (Tibet), श्रीलंका (Sri Lanka), पाकिस्तान (Pakistan), फिलिस्तीन (Palestine) और बर्मा (Burma) जैसे देशों से आते हैं। इसलिए यह कहा जा सकता है कि भारत पूरे क्षेत्र के लोगों के लिए एक सुरक्षित आश्रय स्थल रहा है। जहां भारत को शराणार्थियों के लिए एक आश्रय स्थल के रूप में आदर्श माना जाता है, वहीं यह थोड़ा अजीब लग सकता है कि, भारत 1951 के शरणार्थी सम्मेलन का हस्ताक्षरकर्ता नहीं रहा था और इस निर्णय के पीछे कई कारक हैं, सर्वप्रथम यह है कि अंतर्राष्ट्रीय आलोचना और आंतरिक मामलों में बाह्य और अनावश्यक हस्तक्षेप के डर से जवाहरलाल नेहरू के अधीन भारत ने 1951 के सम्मेलन और 1967 के सम्मेलन पर हस्ताक्षर नहीं करने का निश्चय किया। सम्मेलन पर हस्ताक्षर करने वाले देश के लिए यह आवश्यक है कि वह शरणार्थियों के रूप में स्वीकार किये गये लोगों के प्रति आतिथ्य और आवास के एक न्यूनतम मानक को स्वीकार करें, लेकिन यदि भारत ऐसा करने में विफल रहता है, तो उसे अनेक अंतर्राष्ट्रीय आलोचना का सामना करना पड़ता। दक्षिण एशिया में सीमाओं की अनुपयुक्त प्रकृति, निरंतर जनसांख्यिकीय परिवर्तन, गरीबी, संसाधन संकट और आंतरिक राजनीतिक असंतोष आदि के कारण भारत के लिए सम्मेलन को स्वीकार करना असंभव था। 1951 के सम्मेलन पर हस्ताक्षर करने का मतलब था कि भारत की आंतरिक सुरक्षा, राजनीतिक स्थिरता और अंतर्राष्ट्रीय संबंधों की अंतर्राष्ट्रीय जांच की अनुमति देना। वहीं सम्मेलन पर हस्ताक्षर न करने के अन्य कारक भी हैं जैसे, जब द्वितीय विश्व युद्ध की समाप्ति के बाद संयुक्त राष्ट्र के सदस्यों के सामने पहली बार सम्मेलन प्रस्तावित किया गया था, तब भारत ने इसे शीत युद्ध की रणनीति के रूप में देखा। स्वतंत्रता के बाद भारत निष्पक्ष रहने की कोशिश कर रहा था और इसलिए उस समय उसने सम्मेलन पर हस्ताक्षर नहीं किया। हालाँकि भारत के कानून से परहेज के कोई आधिकारिक कारण नहीं हैं, लेकिन संभावित कारणों में से एक सम्मेलन में 'शरणार्थी' शब्द की परिभाषा हो सकती है। यह उन कारणों को प्रतिबंधित करता है जो लोगों को सामाजिक और राजनीतिक अधिकारों के उल्लंघन या जाति, धर्म और राष्ट्रीयता के आधार पर उत्पीड़न का कारण बनती है। इस परिभाषा को 'यूरो-केंद्रित (Euro-centric)' माना जाता है क्योंकि यह हिंसा या गरीबी को प्रमुख कारणों में से एक मानने में विफल है।
शरणार्थियों के लिए संयुक्त राष्ट्र उच्चायुक्त की बैठक में भारतीय प्रतिनिधि ने कहा कि ‘अधिकांश शरणार्थी आंदोलन सीधे तौर पर विश्व भर में व्यापक रूप से गरीबी और अभाव से संबंधित हैं, विशेष रूप से विकासशील देशों में जिसका महत्वपूर्ण उदाहरण दक्षिण एशिया है। इस प्रकार, सम्मेलन विकासशील देशों की स्थितियों को ध्यान में रखने में विफल रहता है। सम्मेलन पर हस्ताक्षर करके भारत को उन जिम्मेदारियों को भी उठाना होगा जिन्हें वहन करने की क्षमता उसमें नहीं है। सम्मेलन शरणार्थियों को आवास और काम के अधिकार का आश्वासन देता है। भारत जैसे देश, जो पहले से ही विकास से सम्बंधित क्षेत्रों में पीछे है, में शरणार्थियों की एक व्यापक संख्या बुनियादी ढांचे, श्रम बाजार और राष्ट्रीय सुरक्षा पर विनाशकारी प्रभाव डाल सकती है। परिणामस्वरूप भारत न तो इस सम्मेलन का एक हस्ताक्षरकर्ता है और न ही शरणार्थियों से परिभाषा में बताए गए व्यवहार के लिए समर्पित एक राष्ट्रीय नीति का अनुसरण करता है, जिसका मतलब है कि यह अलग-अलग शरणार्थी समूहों के लिए एक अलग दृष्टिकोण का उपयोग करने के लिए मजबूर है। भारत को शरणार्थियों के प्रति अपने दृष्टिकोण और व्यवहार को औपचारिक रूप देने की आवश्यकता है। भारत को एक राष्ट्रीय ढांचे के साथ आना चाहिए, जो इसके प्रतिबंधों और क्षमताओं के अनुकूल हो। ऐसा करना सभी शरणार्थी समूहों का औचित्यपूर्ण और समान उपचार सुनिश्चित करेगा और वैश्विक समुदाय में भारत के स्थान को उच्च स्थान में लेकर आएगा।

संदर्भ :-
https://bit.ly/3lE4zP8
https://bit.ly/38V027m
https://bit.ly/2UDHS1B
चित्र सन्दर्भ:
प्रथम चित्र में प्रवासियों और शरणार्थियों का सांकेतिक चित्रण है। (Pixabay)
दूसरे चित्र में श्री लंका से आये शरणार्थियों को दिखाया गया है। (Prarang)
तीसरे चित्र में 1947 में विभाजन के बाद पाकिस्तान से आये शरणार्थियों को दिखाया गया है। (Prarang)


RECENT POST

  • पूर्वांचल का गौरवपूर्ण प्रतिनिधित्व करती है, जौनपुर में बोली जाने वाली भोजपुरी भाषा
    ध्वनि 2- भाषायें

     28-12-2024 09:22 AM


  • जानिए, भारत में मोती पालन उद्योग और इससे जुड़े व्यावसायिक अवसरों के बारे में
    समुद्री संसाधन

     27-12-2024 09:24 AM


  • ज्ञान, साहस, न्याय और संयम जैसे गुणों पर ज़ोर देता है ग्रीक दर्शन - ‘स्टोइसिज़्म’
    विचार 2 दर्शनशास्त्र, गणित व दवा

     26-12-2024 09:28 AM


  • इस क्रिसमस पर, भारत में सेंट थॉमस द्वारा ईसाई धर्म के प्रसार पर नज़र डालें
    विचार I - धर्म (मिथक / अनुष्ठान)

     25-12-2024 09:23 AM


  • जौनपुर के निकट स्थित काशी विश्वनाथ मंदिर के गहरे अध्यात्मिक महत्व को जानिए
    विचार I - धर्म (मिथक / अनुष्ठान)

     24-12-2024 09:21 AM


  • आइए समझें, भवन निर्माण में, मृदा परिक्षण की महत्वपूर्ण भूमिका को
    भूमि प्रकार (खेतिहर व बंजर)

     23-12-2024 09:26 AM


  • आइए देखें, क्रिकेट से संबंधित कुछ मज़ेदार क्षणों को
    य़ातायात और व्यायाम व व्यायामशाला

     22-12-2024 09:19 AM


  • जौनपुर के पास स्थित सोनभद्र जीवाश्म पार्क, पृथ्वी के प्रागैतिहासिक जीवन काल का है गवाह
    शुरुआतः 4 अरब ईसापूर्व से 0.2 करोड ईसापूर्व तक

     21-12-2024 09:22 AM


  • आइए समझते हैं, जौनपुर के फूलों के बाज़ारों में बिखरी खुशबू और अद्भुत सुंदरता को
    गंध- ख़ुशबू व इत्र

     20-12-2024 09:15 AM


  • जानिए, भारत के रक्षा औद्योगिक क्षेत्र में, कौन सी कंपनियां, गढ़ रही हैं नए कीर्तिमान
    हथियार व खिलौने

     19-12-2024 09:20 AM






  • © - 2017 All content on this website, such as text, graphics, logos, button icons, software, images and its selection, arrangement, presentation & overall design, is the property of Indoeuropeans India Pvt. Ltd. and protected by international copyright laws.

    login_user_id