संख्याएं आधुनिक जीवन को संभव बनाती हैं। दुनिया में, बिना संख्या के हम शायद कोई भी काम नहीं कर सकते। फिर वह काम चाहे गगनचुंबी इमारत बनाने का हो, राष्ट्रीय चुनाव आयोजित करने का हो, शादी की योजना बनाने का हो या फिर कुछ भी खरीदने का हो। ऐसे कई कार्यों को संख्या के उपयोग के बिना कर पाने में हम पूरी तरह से असमर्थ हैं। लेकिन वास्तव में आखिर यह गणितीय तर्क या क्षमता कहां से आती है? यह प्रश्न एक लंबे समय से बना हुआ है तथा इसके उत्तर खोजने के प्रयास लंबे समय से किये जा रहे हैं। हालांकि कुछ हालिया शोध मनुष्यों में गणितीय तर्क की उत्पत्ति के बारे में लंबे समय से पूछे जाने वाले इस सवाल का जवाब देने में मदद करते हैं। मस्तिष्क, मन और चेतना पर कैनेडियन इंस्टीट्यूट फॉर एडवांस्ड रिसर्च अज़रीली (Canadian Institute For Advanced Research Azrieli) कार्यक्रम के सदस्य, स्टानिस्लास डिहाने (Stanislas Dehaene), द्वारा किया गया शोध गणितीय तर्क की उत्पत्ति का जवाब देने में मदद करता है। शोध के अनुसार, ‘दो, एक से अधिक है’, बच्चों द्वारा ये बताने की क्षमता में जो तंत्रिका तंत्र शामिल होता है, वही तंत्रिका तंत्र पेशेवर गणितज्ञों द्वारा सबसे जटिल गणितीय प्रश्नों को करने या सोचने में भी उपयोग किया जाता है। शोध के अनुसार उन्नत गणितीय तर्क मस्तिष्क की पृष्ठीय पार्श्विका (Dorsal Parietal) और अग्र भाग (Frontal Areas) और भाषा कौशल में शामिल मस्तिष्क क्षेत्रों पर निर्भर है। कई शोधकर्ताओं ने अनुमान लगाया था कि, उच्च गणित समस्याओं को हल करने की क्षमता भाषा की क्षमता से संबंधित होनी चाहिए, क्योंकि दोनों के लिए प्रतीकों और सम्बंधों के जटिल हेर-फेर की आवश्यकता होती है। शोध के परिणाम बताते हैं, कि उच्च गणितीय क्षमता उसी मूल परिपथ पर निर्भर करती है, जो हर कोई अंतरिक्ष, समय और संख्या जागरूकता के बारे में हमारे अंतर्ज्ञान के लिए उपयोग करता है।
यह जानना भी दिलचस्प होगा कि हमारा मस्तिष्क कैसे जटिल योग और गुणन को हल करता है या फिर उसका सामना करता है? एक अध्ययन में इस बात को बताया गया है, कि गणित की गंभीर समस्याओं को करते समय मस्तिष्क की गतिविधि का स्तर बदल जाता है तथा समस्या के परिणाम तक पहुंचने तक चार अलग-अलग तंत्रिका चरण प्रक्रिया में शामिल होते हैं। ये चार चरण एन्कोडिंग (Encoding-समस्या को पढ़ना और समझना), योजना (यह सोचना कि इसे कैसे हल किया जाये?) हल करना (संख्याओं की गणना करना), उत्तर देना (सही उत्तर लिखना) हैं। ये चरण दिमाग के कार्य करने की प्रक्रिया की बेहतर समझ प्रदान करते हैं।
हमारी दुनिया में संख्याओं की केंद्रीय भूमिका है तथा ये भूमिका संख्याओं को पहचानने और उन्हें समझने में हमारे मस्तिष्क की अलौकिक क्षमता या कौशल का साक्ष्य भी प्रदान करती है। इस बात पर कई शोधकर्ता लगे हुए हैं, कि यह कौशल किस प्रकार से कार्य करता है? परंपरागत रूप से, वैज्ञानिकों का मानना है, कि हम उसी तरह से संख्याओं का उपयोग करना सीखते हैं, जिस तरह से हम कार चलाना सीखते हैं। इस दृष्टि से, संख्याएँ एक प्रकार की तकनीक है, एक मानव-निर्मित आविष्कार हैं, जिसके लिए हमारा दिमाग अनुकूलित हो सकता है। इस बात का समर्थन इतिहास भी करता है, क्योंकि संख्या का उपयोग करने वाले लोगों का सबसे पुराना साक्ष्य लगभग 30,000 साल पहले का है। वैज्ञानिक जेसिका केंटन (Jessica Cantlon) और अन्य शोधकर्ताओं के अनुसार हमारी प्रजाति में गणित के लिए एक सहज या जन्मजात कौशल है। यह वो कौशल है, जिसे 300 हज़ार साल पहले शायद हमारे पूर्वजों ने भी साझा किया हो। यह कौशल वास्तव में जन्मजात है। हार्वर्ड (Harvard) विश्वविद्यालय के एक संज्ञानात्मक मनोवैज्ञानिक, वेरोनिक इज़ार्ड (Veronique Izard) द्वारा किया गया अध्ययन भी यह बताता है, कि नवजात शिशुओं में पहले से ही संख्याओं की बुनियादी समझ होती है। उनकी संख्या की अवधारणा अमूर्त है, वे इसे अपनी इंद्रियों के माध्यम से स्थानांतरित कर सकते हैं। उनके अनुसार जैसे-जैसे हम बड़े होते हैं, गणितीय अंतर्ज्ञान विकसित होता है। मस्तिष्क स्वचालित रूप से संख्याओं को संसाधित करता है तथा बचपन से बुढ़ापे तक गणितीय अंतर्ज्ञान कुछ नियमों का पालन करता है। मनुष्य के दिमाग में तंत्रिका-कोशिकाओं की एक पट्टी होती है, जो इंट्रापैरियट सल्कस (Intraparietal Sulcus) के पास स्थित होती है। यह तब सक्रिय होती है, जब कठिन संख्याओं का सामना होता है। ये सभी अध्ययन यह सुझाव देते हैं, कि हम अपने पूरे जीवन में एक ही मानसिक एल्गोरिथ्म (Algorithm) का उपयोग करते हैं तथा गणित का मौलिक अंतर्ज्ञान मनुष्य की प्रकृति में ही स्थित है।
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