एकांत और अपने में सीमित जीवन जीने की आदत ने समाज और परिवार में संबंधों के बीच के संतुलन को प्रभावित किया है। यह संबंध पति पत्नी के हो सकते हैं, कर्मचारी और अधिकारियों, बच्चों और अभिभावकों, छात्रों और अध्यापकों के बीच के भी हो सकते हैं। एक और संबंध भी है जो जीवन भर बहुत नजदीक रहते हुए भी छीन-झपट और एक-दूसरे से बढ़कर सुविधा मांगने की आपस में लड़ाई लड़ते रहते हैं। यह रिश्ता है भाई बहन का। तमाम शोध यह सुझाव देते हैं कि सहयोगी संबंध नुकसानदेह तनाव को कम करते हैं। उनसे होने वाले शारीरिक और मानसिक फायदों में विषाणु से लड़ने की क्षमता शामिल है। 5 महीने की कोरोना विषाणु से बचाव की लड़ाई ने सबको बुरी तरह झकझोर दिया है। इसने उन रिश्तो को भी खत्म किया है, जो सामान्य दिनों में हमारे मददगार होते थे। कभी रक्षाबंधन और भाई दूज जैसे त्यौहार दूरदराज बसे भाई-बहनों के स्नेह के तार जोड़ देते थे, उनमें एक-दूसरे की अहमियत की याद ताजा कर देते थे। देखना तो यह है कि सदियों पुराना यह रिश्ता संबंधों की इस संकटकालीन स्थिति में कितना रामबाण सिद्ध होता है। अकेलेपन की इस महामारी की संवादहीन स्थिति में आज सारे रिश्ते खामोश हो गए हैं।
भाई दूज : भाई-बहन का स्नेह पर्व
दिवाली के धूम-धड़ाके और रोशनी से सजे त्यौहार के बाद बहनों का बहुप्रतीक्षित त्यौहार आता है- भाई दूज। बहन भाई के माथे पर पवित्र टीका लगाकर उसकी आरती करती है, उसकी बुरी बला से रक्षा की कामना करती है। बदले में भाई उसे उपहार और आशीर्वाद देता है।
मिथक और कथाएं
भाई दूज को यम द्वितीया भी कहते हैं। इसकी कथा यह है कि इस दिन यमराज अपनी बहन यमुना से मिलने जाते हैं, जो उनके माथे पर टीका लगाकर उनकी कुशलता की प्रार्थना करती है। तब से यह प्रथा चली आ रही है कि जो भाई अपनी बहन से इस दिन तिलक करवाता है, वह कभी मुसीबत में नहीं पड़ता, हमेशा सुरक्षित रहता है।
एक किवदंती यह है कि इस दिन नरकासुर राक्षस के वध के बाद भगवान कृष्ण अपनी बहन सुभद्रा से मिलने गए थे, जो पवित्र दिए, फूल और मिठाई से उनका स्वागत की थी और माथे पर तिलक की थी।
भाई दूज के जन्म की एक अन्य कथा है कि जैन धर्म के संस्थापक महावीर ने जब निर्वाण लिया, उनके भाई राजा नंदी वर्धन उनकी याद में बहुत दुखी हुए तब उनकी बहन सुदर्शना ने उन्हें सांत्वना दी। तब से स्त्रियों के प्रति श्रद्धा बढ़ी है। बंगाल में यह पर्व भाई फोटा के नाम से मनाया जाता है। महाराष्ट्र में इसे भाऊबीज और नेपाल में भाई टीका कहते हैं।
भाई दूज का महत्व
दूसरे भारतीय त्योहारों की तरह इसमें भी पारिवारिक और सामाजिक संबंध मजबूत होते हैं। खास तौर पर विवाहित लड़कियों के लिए यह शुभ अवसर दिवाली के बाद अपने मायके वालों से मिलने का होता है। आज के समय में जो बहने दूर होती हैं, वह डाक से टीके की सामग्री भेजती हैं। आभासी तिलक और भाई दूज ई-कार्ड्स (e-cards) ने भाई बहनों के लिए इसे मनाना आसान कर दिया है।
विशेष संदर्भ
गुरुदेव रवींद्रनाथ टैगोर से जुड़ा भाई दूज का एक विशेष संदर्भ है। उन्होंने 1905 में बंगाल के विभाजन के विरोध में भाई-बहन के स्नेह के प्रतीक इस पर्व का इस्तेमाल शांति और भाईचारे की बहाली के लिए किया। हिंदू मुस्लिमों में सद्भाव के लिए उन्होंने एक-दूसरे की कलाइयों पर लाल धागा बंधवाया था। विभाजन के दौरान पूरे समय राखी बंधन समारोह की घोषणाएं बंगाली और अंग्रेजी अखबारों में छपती रही।
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