समुद्र तटीय इलाकों में रहने वाले लोग आर्थिक रूप से अनचाहे खर्चों के बोझ से दब जाते हैं, जब जल्दी-जल्दी बार-बार बाढ़ आती है। मुसीबत तब ज्यादा बढ़ जाती है, जब समुद्र की सतह ऊंची हो जाती है और बाढ़ का खतरा बढ़ जाता है। समुद्री ज्वार की अपनी अलग कहानी है। ऊंचे ज्वार से आई बाढ़ को कभी-कभी बाधा बाढ़ भी कहते हैं, जब पानी तटीय क्षेत्र के खतरे के निर्धारित निशान को भी पार कर जाता है और गलियों और पार्किंग की जगह में भर जाता है। ट्रैफिक में बाधा पड़ती है। पैदल यात्री भी नहीं चल पाते हैं। समुद्र का यह ज्वार भाटा मछुआरों की रोजी-रोटी बंद करा देता है। पानी में वाहनों का चलना प्रतिबंधित हो जाता है। एक शोध के अनुसार 2035 तक 1 वर्ष में 170 समुद्र तटीय समुदाय 26 ज्वार भाटा बाढ़ के दिनों का सामना करेंगे। जब 12 इंच समुद्री तल बढ़ जाता है, 24% लोगों का वहां आना जाना बंद हो जाता है। इस तरह राजस्व की सैकड़ों हजारों में हानि होती है।
ज्वार भाटा
समुद्र की सतह के उठने गिरने को ज्वार भाटा कहते हैं। यह चंद्रमा और सूर्य के गुरुत्वाकर्षण बल और पृथ्वी के घूमने के मिले-जुले प्रभावों से पैदा होते हैं। ज्वार भाटा समुद्र में पैदा होते हैं और तटीय क्षेत्र की तरफ बढ़ते हैं, जहां वह नियमित रूप से समुद्र की सतह के ऊपर नीचे होने के रूप में दिखते हैं। जब लहरें सबसे ज्यादा ऊंचाई पर होती है तो उच्च ज्वार होता है। लहरों के सबसे निचले भाग में पहुंचने को निम्न ज्वार कहते हैं। उच्च और निम्न ज्वार भाटा के अंतर को ज्वारीय क्षेत्र कहते हैं। किसी खास जगह में ज्वार भाटा आने की पूर्व समय सारणी भी होती है। यह बहुत सारे कारकों पर निर्भर होती है जैसे सूर्य और चंद्रमा का एक रेखा में आना, गहरे समुद्र में ज्वार भाटा आने का तरीका, समुद्र की उभयचर प्रणाली, समुद्र तट का आकार और समुद्र की गहराई। हालांकि यह सब अनुमान होते हैं। ज्वार भाटा का वास्तविक समय और ऊंचाई हवा और वातावरण के दबाव पर आधारित होते हैं। समय पैमाने पर ज्वार घंटों से लेकर वर्षों के अंतर पर संभव हो सकते हैं। इसके भी कई कारक होते हैं। ज्वार भाटा सिर्फ समुद्र तक ही सीमित नहीं है, यह दूसरी प्रणालियों में भी हो सकते हैं, जब भी एक गुरुत्वाकर्षण क्षेत्र, जो समय या स्थान में बदल सकता हो, मौजूद हो।
ज्वार भाटा में बदलाव के चरण
समुद्र की सतह कई घंटों तक उठी हुई रहे, अंतर ज्वार क्षेत्र को समेटे हुए; बाढ़ ज्वार।
पानी अपनी उच्चतम ऊंचाई तक उठ जाए और उच्च ज्वार तक पहुंच जाए।
कुछ घंटों बाद समुद्र की सतह नीची हो जाए, अंतर ज्वार को प्रकट करते हुए । घटी हुई लहर।
पानी बहना रुक जाए और समुद्र की सतह नीचे आ जाए, निचला ज्वार कहलाता है।
ज्वार भाटा का मनुष्य पर प्रभाव
समुद्र में आमतौर पर प्रतिदिन दो ज्वार भाटा आते हैं। इसका अर्थ हुआ दो उच्च ज्वार, 2 निम्न ज्वार प्रतिदिन। सबसे ज्यादा इनका प्रभाव समुद्री जीवन पर पड़ता है। खासतौर से वे लोग जो समुद्र के किनारे रहते हैं। बहुत सी मछलियां और समुद्री जीव, जिनका भोजन के लिए भक्षण होता है, वे ज्वार के साथ साथ चलते हैं। इसलिए मछुआरे बहुत ध्यान रखते हैं कि कब उन्हें बाहर जाना चाहिए और कब जाल फेंकना चाहिए। समुद्री जहाजों पर भी ज्वार का असर होता है। जहाज पर तैनात कर्मचारी ज्वार पर पूरी नजर रखते हैं। निचले ज्वार के समय जहाज मिट्टी में धंस जाते हैं। उच्च ज्वार के समय बंदरगाह पर बहुत सी नाव का प्रबंध होता है। जहाज रोक कर रखे जाते हैं। अगर जहाज का जाना बहुत जरूरी होता है तो उसे ढोकर गहरे पानी में ले जाते हैं ताकि वह तैर सके। वैज्ञानिक इन ज्वार के बारे में सही भविष्यवाणी कर सकते हैं। आजकल ज्वार का बिजली उत्पादन में भी इस्तेमाल हो रहा है।
मछलियों का जीवन कैसे प्रभावित होता है?
ज्वार का प्रवाह समुद्र में रह रहे छोटे जीवों और छोटी मछलियों को मथ कर सतह पर ले आता है। किनारे पर उनको बड़ी मछलियां खा जाती हैं। जब भोजन सामग्री खत्म हो जाती है, मछलियां उस जगह को छोड़ देती हैं। इसी प्रकार एक जगह की मछलियों की खाना खाने की आदतें, दूसरी जगह की मछलियों से अलग होती हैं।
ज्वार कितना ऊंचा जाएगा यह चांद की स्थिति सूरज के साथ कैसी है इस पर निर्भर होता है। जब दोनों एक पंक्ति में होते हैं, ज्वार सबसे ऊंचा होता है। जब दोनों एक दूसरे के विपरीत होते हैं तब ज्वार की ऊंचाई छोटी होती है। एक बार जब चांद की कक्षा उसे सूर्य के सबसे नजदीक ले जाती है, जैसा कि महीने के 27. 5 दिनों में होता है, हमें महीने के सबसे ऊंचे ज्वार देखने को मिलते हैं। चंद्रमा जब सूर्य से सबसे ज्यादा दूरी पर होता है, ज्वार बहुत नीचे होते हैं।
ज्वार गहरे पानी में मछली पकड़ने पर भी असर डालते हैं। ज्यादा पौष्टिक आहार वाले तलछट पानी को मथकर ज्वार सतह पर ले जाता है।
ज्वार का सबसे ज्यादा प्रभाव छिछले पानी, खाड़ी, मुहाना और बंदरगाह पर पड़ता है और चट्टानों के आसपास ज्वार को दबाव में सकरे रास्तों से होकर गुजरना पड़ता है।
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