लगभग 300,000 साल पहले, अफ्रीका के कुछ हिस्सों में हमारे मानव पूर्वजों ने पत्थरों के टुकडों का उपयोग करके छोटे, नुकीले उपकरण बनाने शुरू किये जिसे उन्होंने लेवेलोइस (Levallois) तकनीक का उपयोग करके बनाया. तकनीक का नाम पेरिस के एक उपनगर, जहां इस तरह से बनाए गए उपकरण पहली बार खोजे गए थे, के नाम पर रखा गया था. तकनीक पिछले युग के बड़े, कम परिष्कृत उपकरणों का गहरा उन्नयन था, जो अफ्रीका में मध्य पाषाण (Middle Stone) युग और यूरोप और पश्चिमी एशिया में मध्य पुरापाषाण (Middle Paleolithic) युग को चिन्हित करती है. उसी समय के आसपास यूरोप में निएंडरथल (Neanderthals) ने भी इन उपकरणों का इस्तेमाल किया। वैज्ञानिकों ने सोचा था कि यह तकनीक दुनिया के अन्य हिस्सों में बहुत बाद में फैली, सम्भवतः आधुनिक मानव के अफ्रीका से बाहर चले जाने के बाद। लेकिन भारत में वैज्ञानिकों ने हाल ही में लेवलोइस तकनीक से बनाए गए हजारों पत्थर के औजारों की खोज की, जो 385,000 साल पहले के थे। ये नवीनतम निष्कर्ष जर्नल नेचर (Journal Nature) में बुधवार को प्रकाशित हुए, जो यह सुझाव देते हैं कि शोधकर्ताओं ने जैसा पहले सोचा था, उससे बहुत पहले ही लेवलोइस तकनीक दुनिया भर में फैल चुकी थी. भारतीय समूह ने इन उपकरणों को भारत के सबसे प्रसिद्ध पुरातात्विक स्थलों में से एक - अत्तिरामपक्कम (Attirampakkam) जो दक्षिणी भारत में वर्तमान चेन्नई शहर के पास स्थित है, से प्राप्त किया. स्थल की सबसे पुरानी कलाकृतियों में बड़े भुज वाली कुल्हाड़ियां और क्लीवर (Cleavers) हैं, जो 15 लाख साल पुराने हैं, और प्रारंभिक पाषाण काल की पुरानी ऐचलियन (Acheulian) संस्कृति से जुड़े हैं। हाल ही में प्राप्त उपकरण, जो 385,000 से 172,000 साल के बीच के हैं, आकार में छोटे हैं और लेवेलोइस तकनीक से स्पष्ट रूप से बनाए गए हैं. इन्हें बनाने के लिए पहले कछुए के खोल के आकार में एक प्रारंभिक पत्थर का निर्माण किया गया है, उसके बाद इसे पूर्वनिर्मित पत्थर से पीटा गया है, ताकि नुकीलें किनारों के साथ एक परत बनायी जा सके.
संदर्भ:
https://www.youtube.com/watch?v=yNsqE_jQQ8w
https://www.youtube.com/watch?v=bqRaxlQH1IE
https://www.npr.org/sections/health-shots/2018/01/31/582102242/discovery-in-india-suggests-an-early-global-spread-of-stone-age-technology