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इतिहास में जौनपुर अपने क़िलों की अभेद्यता के लिए मशहूर रहा है।यह सम्भव है कि ऐसे क़िले जिनमें घुसपैठ सम्भव नहीं थी, उनके समान आकार- प्रकार के अन्य क़िलों की नाप-जोख करके गोह नामक सरीसृप की मदद से इसे सम्भव किया गया हो।इस गोह के बारे में लोककथाओं में बहुत बढ़ा-चढ़ा कर विशद काल्पनिक वर्णन किया गया है।हम उडुम्बू पुडी छिपकली की ज़बरदस्त पकड़ को कई भारतीय भाषाओं में मुहावरे की तरह प्रयोग करते हैं जिसका सांकेतिक मतलब होता है कि किसी चीज़ पर इतनी कड़ी पकड़ कि वह छुड़ाई न जा सके।एक किंवदंती के अनुसार मुग़ल काल में, छिपकली हर सेना के शस्त्र बक्से का अनिवार्य औज़ार होती थी।अभेद्य क़िलों की दीवारों की नाप के लिए, इस छिपकली की कमर के आस-पास मोटी रस्सी बांधकर इसे क़िले की दीवार पर छोड़ दिया जाता था।छिपकली क़िले की प्राचीरों में दरार ढूँढ लेती थी और उसमें धंसकर बैठ जाती थी और पथरीली दीवारों को कसकर ऐसे पकड़ लेती थी कि एक सैनिक आराम से रस्सी के सहारे क़िले की मेहराब तक पहुँच जाता था।शिवाजी के विश्वासपात्र सेनापति तानाजी मालूसरे के बारे में कहा जाता है कि उन्होंने सिंहगढ़ की लड़ाई में छिपकली का प्रयोग क़िले की दीवारों को मापने और उसपर क़ब्ज़ा करने के लिए किया था।वास्तव में मराठों के एक पूरे वंश का नाम घोरपड़े रख दिया गया।
बंगाल की छिपकली (Bengal Monitor)
इसे सामान्य भारतीय छिपकली भी कहा जाता है।यह बड़े स्तर पर भारतीय उपमहाद्वीप, दक्षिण- पूर्व एशिया और पश्चिमी एशिया में पाई जाती है।यह बड़ी छिपकली मुख्य रूप से ज़मीनी होती है।इसकी लम्बाई लगभग 61 से 175 सेंटीमीटर होती है।युवा छिपकली पेड़ों पर पाई जाती हैं लेकिन वयस्क छिपकलियाँ ज़मीन पर संधिपाद प्राणियों (Arthopds), चिड़ियों, अंडों और मछलियों का शिकार करती हैं।बहुत से शिकारी इनका शिकार करते हैं।
यह सरीसृप वर्ग का Animalia Chordata प्रजाति का जंतु होता है।युवा छिपकली ज़्यादा रंगीन होती है।इन पर गाढ़े रंग की धारियाँ होती हैं।पेट सफ़ेद होता है।उस पर धारियाँ बनी होती हैं।सिलेटी और पीले रंग के धब्बे होते हैं।ख़ासतौर पर पूर्वी क्षेत्र में इस तरह की छिपकलियाँ होती हैं।इनमें बाहरी नासिका छिद्र होते हैं।साँपों की तरह इनकी जीभ बीच से कटी होती है।इसका मुख्य काम सम्वेदन को महसूस करना है।खाने को निगलने में यह कोई भूमिका नहीं निभाती।इनके शरीर और पूँछ में वसा जमा रहता है।जब शिकार नहीं मिलता तो इसी से काम चलता है।बंगाली छिपकली ज़्यादातर अकेली ज़मीन पर पाई जाती है।यह जंगल में रहने के बजाय खेती की ज़मीन पसंद करती हैं।चट्टानों-घरों की दरारों में इनका निवास होता है।ये ज़्यादातर शर्मीली और इंसानों से दूर रहने वाली होती हैं।इनकी औसत उम्र 22 साल होती है।
प्रजनन : इनका प्रजनन समय जून से सितम्बर होता है।168-254 दिनों के बीच अंडे तैयार हो जाते हैं।40-80% अंडों से बच्चे तैयार हो जाते हैं।बंगाली छिपकली के पेट की खाल से खंजड़ी का drum head बनता है।
संरक्षण : भक्षण और दवाइयों में इस्तेमाल के कारण इनकी संख्या घट रही है।कीटनाशक छिड़काव से भी इन्हें नुक़सान पहुँचता है।ईरान में इनसे सम्भावित ख़तरों को देखते हुए इनको मार दिया जाता है।इसलिए इनके संरक्षण की चिंता करना ज़रूरी हो गया है।
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