माना जाता है कि सभी धर्म इंसानों की भलाई और सही राह दिखाने के लिये बनाये गये थे, तभी शायद सभी धर्मों कई समानताएं देखने को मिल जाती हैं, जैसे कि हिन्दू धर्म में माना जाता है कि भगवान राम, श्री कृष्ण आदि सभी दिव्य पुरूष थे, आज भी इनके पदचिह्नों तक को पूजा जाता है। ऐसे ही मुस्लिम समाज में पैगंबर मुहम्मद साहब को पूजा जाता है। लोगों की उनमें इतनी आस्था है कि सदियों से ये माना जाता आ रहा है कि मुहम्मद साहब दिव्य पुरूष थे, उनकी कोई परछाई नहीं बनती थी, उनके बालों में आग नहीं लगती थी और रेत पर चलते समय उनकी चप्पलों के निशान तक नहीं बनते थे। कहते हैं पैगंबर मुहम्मद साहब अल्लाह के भेजे हुए दूत थे, जो इंसानों के लिए अच्छाई की सौगात और अल्लाह के संदेशों को लेकर आए। मुस्लिम मान्यताओं के अनुसार पैगंबर मोहम्मद साहब जब पहाड़ों पर चलते थे, तो उनके पैरों के निशान शिला पर अंकित हो जाते थे, और इन्हीं पदचिह्न वाले पत्थरों को इस्लामी दुनिया में “कदम ऐ रसूल” या कदम शरीफ या कदम रसूल अल्लाह या कदम मुबारक के नाम से जाना जाता है।
वर्तमान में "कदम ऐ रसूल" मक्का से लेकर दुनिया के विभिन्न पवित्रस्थलों में स्थित हैं। परंतु इस मान्यता को इस्लाम के कुछ रूढ़िवादी लोगों ने अभी तक स्वीकार नहीं किया, लेकिन इस विचार को व्यापक रूप से प्रचारित किया गया और इस तरह के पैरों के निशान वाली शिला के आसपास कई पवित्र स्थानों का निर्माण कराया गया है। सबसे पहला और सबसे प्रसिद्ध पदचिह्न यरुशलेम में डोम ऑफ द रॉक (Dome of the Rock) में है। इस्लामिक मान्यताओं के अनुसार पैगम्बर मुहम्मद ने इसी स्थान से रात के सफ़र (मेराज) की यात्रा प्रारम्भ की थी। इसके अलावा ये कदम रसूल इस्तांबुल, दमिश्क, काहिरो आदि में संरक्षित हैं। भारत की बात करें तो ये कदम रसूल अहमदाबाद (गुजरात), दिल्ली, बहराइच (उत्तर प्रदेश), कटक (उड़ीसा), जौनपुर और गौर एवं मुर्शिदाबाद (पश्चिम बंगाल) में हैं। जौनपुर में कदम रसूल की संख्या सबसे ज्यादा देखने को मिलती हैं।
इतिहास इक़बाल अहमद के अनुसार जौनपुर में नौ से बारह हजरत मुहम्मद के कदम रसूल मौजूद हैं। एक कदम ऐ रसूल ख्वाजा सदर जहां और हज़रत सोन बरीस के बीच में मौजूद है। दूसरा कदम ऐ रसूल मोहल्ला बाग़ ऐ हाशिम पुरानी बाजार में, तीसरा मोहल्ला सिपाह में और चौथा पंजेशरीफ के पास मौजूद है। कुछ और क़दम ऐ रसूल है जो शाह का पंजा, सदर इमाम बाड़ा, हमज़ापुर और छोटी लाइन रेलवे स्टेशन, मुफ़्ती मुहल्लाह, और बड़े इमाम सिपाह के पास आज भी देखे जा सकते हैं। सिपाह मोहल्ले में मौजूद पदचिह्न फिरोजशाह के मकबरे के पास स्थित हैं। कहा जाता है कि इस पदचिह्न को यहां इब्राहिम शाह के काल में बहराम खां द्वारा मदीना शरीफ से लाया गया था। इसके बाद सैयद पुत्र ख्वाजा मीर द्वारा इस पदचिह्न और हजरत मोहम्मद साहब के हाथ के चिह्न को 1613 ई. में अरब में ले जाया गया था। मोहल्ला बाग़ ऐ हाशिम में पाए जाने वाले कदम शरीफ अन्य पदचिह्नों से अलग है। ज्यादातर पदचिह्न अंदर की ओर धसे हुए होते हैं जैसे हमारे पैरों के निशान बनते हैं। परंतु ये उभरे हुए कदम के निशान हैं। इसलिए ये जौनपुर में पाये जाने वाले अन्य कदम रसूलों से अलग हैं। यह एक पुराने मकबरे में एक कब्र के ऊपर लगा हुआ है। कहा जाता है कि बादशाह अकबर के शासन काल में पटना के रहने वाले मोहम्मद हाशिम साहब जब हज को मक्का मदीने गए तो वहाँ से यह कदम ऐ रसूल ले आये, जिसे उन्होंने अपने बड़े बेटे की कब्र पे लगा दिया था।
इनके अलावा पंजा शरीफ में मौजूद पदचिह्न की भी बड़ी मान्यता है, क्योंकि कहा जाता है कि पंजे शरीफ इमामबाड़ा में मौजूद पद चिन्ह और हज़रत अली के दस्त (हाथ) के चिन्ह को शाहजहाँ के दौर में ख्वाजा मीरे के पुत्र सय्यद अली 1615 में सऊदी और इराक़ से खरीद के लाये थे। उन्होंने इसके लिये एक ऊंचा सा टीला बनवाया, जहां आज पंजे शरीफ में हज़रत अली का रोज़ा है। परंतु सय्यद अली का देहांत आस पास के भवन बनने के पहले ही हो गया और उनकी क़ब्र मुफ़्ती मोहल्ले में ख्वाजा मीर के मक़बरे के अंदर बनवायी गई। पंजे शरीफ इमामबाड़ा का शेष निर्माण एक मुसंभात चमन नामक महिला ने बाद में पूरा करवाया और उसके विराट गेट पे फारसी में लिखवाया :-
रोज़ा ऐ शाह ऐ नजफ कर्द चमन चू तामीर
ताकि सरसबज़ अर्ज़ी हुस्न अम्लहां बाशद
साल ऐ तारिख चुनी वजहे खेरद मुफ्त भले
पंजा ऐ दस्त यदुल्लाह दर इज़ा बाशद
इसका मतलब है: रोज़ा शाह ऐ नजफ़ का निर्माण चमन ने पूरा करवाया है, इसलिए की कर्म सदैव हरा भरा रहे, यहां अल्लाह के शेर का हाथ है।
इस पाक जगह के उत्तर में सौ क़दमों की दूरी पर चमन की पुत्री नौरतन द्वारा हज़रत अब्बास अलमदार का रौज़ा और इमामबाड़ा भी बनवाया गया था, जो आज भी मौजूद है। कहा जाता है की यहां सभी की बड़ी से बड़ी मुरादें पूरी हुआ करती हैं।
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