ऐसा कोई भी व्यक्ति नहीं होगा जिसने रामायण की कथा नहीं सुनी होगी, परंतु बहुत ही कम लोगों ने आल्हा रामायण के बारे में सुना होगा। लेकिन प्रश्न यह उठता है कि आल्हा रामायण क्या है व इसकी रचना किसने की थी? और आल्हा कौन थे? दरसल यह रामायण (हालांकि लिखित रूप में नहीं लिखी गई है लेकिन मौखिक रूप से कविता में प्रसारित है) वाल्मीकि की रामायण के बाद और तुलसीदास की रामायण से कई सौ साल पहले रची गई थी। "पृथ्वीराज रासो" की तरह, इस रामायण ने रामलीला के मंत्र और गीतों से भी अत्यधिक लोकप्रियता हासिल की और आज भी, रामायण का यह संस्करण (मूल वाल्मीकि नहीं और न ही तुलसीदास संस्करण) राजस्थान, बिहार, मध्य प्रदेश और गुजरात के कुछ हिस्सों में बहुत लोकप्रिय है। भारत के उपन्यास सम्राट 'मुंशी प्रेमचंद' ने आल्हा के काम पर एक दिलचस्प रचना लिखी थी, और वह इसमें आल्हा रामायण का भी उल्लेख करते हैं।
आल्हा कहानी में प्रेमचंद आल्हा का वर्णन करते हुए लिखते हैं कि “आल्हा का नाम किसने नहीं सुना? पुराने जमाने के चन्देल राजपूतों में वीरता और जान पर खेलकर स्वामी की सेवा करने के लिए किसी राजा महाराजा को भी यह अमर कीर्ति नहीं मिली। राजपूतों के नैतिक नियमों में केवल वीरता ही नहीं थी बल्कि अपने स्वामी और अपने राजा के लिए जान देना भी उसका एक अंग था। आल्हा और ऊदल की जिन्दगी इसकी सबसे अच्छी मिसाल है, इनकी मिसाल हिन्दोस्तान के किसी दूसरे हिस्से में मुश्किल से मिल सकेगी। आल्हा और ऊदल के कारनामों के बारे में एक चन्देली कवि ने एक कविता लिखी और उस कविता को रामायण से भी अधिक लोकप्रियता प्राप्त हुई। यह कविता आल्हा के नाम से ही प्रसिद्ध है और आठ-नौ शताब्दियाँ गुजर जाने के बावजूद उसकी दिलचस्पी और सर्वप्रियता में अन्तर नहीं आया है।”
आल्हा रामायण की एक दिलचस्प वीडियो (आज कई मिलियन व्यूज (Million Views) में लोकप्रियता के साथ) यूट्यूब (YouTube) में लोगों का ध्यान आकर्षित कर रही है, इन वीडियो को आप निम्न लिंक में जाकर देख सकते हैं:
आल्हा एक मौखिक महाकाव्य है, यह कहानी पृथ्वीराज रासो और भाव पुराण की कई मध्यकालीन पांडुलिपियों में भी पाई जाती है। एक धारणा यह भी है कि कहानी मूल रूप से महोबा के बर्ग के जगनिक द्वारा लिखी गई थी, लेकिन अभी तक इस बात की पुष्टि करने वाली ऐसी कोई पांडुलिपि नहीं मिली है। पुराणों में कहा गया है कि माहिल(जो एक राजपूत थे), आल्हा और उदल के दुश्मन थे, उनका कहना था कि आल्हा अलग परिवार से आए हैं क्योंकि उनकी माँ एक आर्यन अहीर थी। वहीं भाव पुराण के अनुसार आल्हा की माता, देवकी, अहीर जाति की सदस्य थीं, अहीर "सबसे पुरानी जाति" है।
भाव पुराण में यह भी बताया गया है कि केवल उनकी माताएं अहीर जाति से नहीं थी बल्कि बक्सर के उनके पैतृक पिता भी अहीर थे।
आल्हा भारत के बुंदेलखंड क्षेत्र में लोकप्रिय आल्हा-खंड कविता के नायकों में से एक है और इसके रचयिता जगनिक हैं, जो कालिंजर तथा महोबा के शासक परमाल (परमर्दिदेव) के दरबारी कवि थे। इस रचना को संपूर्ण रूप से मौखिक परंपरा द्वारा आगे सौंपा गया और वर्तमान में कई पुनरावृत्तियों में मौजूद है, जो भाषा और विषय दोनों में एक दूसरे से भिन्न हैं। बुंदेली, बघेली, अवधी, भोजपुरी, मैथिली और कन्नौजी के प्रसंग इनमें से सबसे प्रसिद्ध हैं।
वर्तमान में आल्हा खण्ड की जगनिक द्वारा लिखी गई कोई भी प्रति मौजूद नहीं है, अभी इसकी संकलित की गई प्रति ही उपलब्ध है, जिसका संकलन विभिन्न विद्वानों ने अनेक क्षेत्रों में गाये जाने वाले आल्हा गीतों के आधार पर किया है। इसलिए आज हमें इसके विभिन्न संकलनों में पाठांतर मिल सकते हैं और कोई भी प्रति पूर्णतः प्रमाणिक नहीं मानी गई है। आल्हा-खण्ड का सबसे लोकप्रिय संस्करण ललिताप्रसाद मिश्र द्वारा लिखा गया ग्रंथ है, जो संवत 1956 (1900 CE) में मुंशी नवल किशोर के पुत्र प्रयाग नारायण के अनुरोध पर रचा गया था।
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