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जौनपुर उत्तर प्रदेश का एक ऐसा शहर है, जिसे कुछ अन्य विशिष्टताओं के साथ अपनी मस्जिदों के लिए विशेष रूप से जाना जाता है। इन्हीं मस्जिदों में से एक है, 'खालिस मुखलिस मस्जिद' जो कि जौनपुर की उल्लेखनीय मस्जिदों में से एक है। अपनी विशेषताओं के कारण ही बड़ी संख्या में पर्यटक इस मस्जिद को देखने आते हैं और इसीलिए यह मस्जिद जौनपुर में प्रमुख पर्यटक आकर्षण में से एक बन गयी है। इस मस्जिद को सन् 1430 के आसपास सुल्तान इब्राहिम के शासनकाल में बनाया गया था। उस समय उन्होंने इसका नाम दो अधीक्षकों, 'मलिक खालिस' और 'मलिक मुखलिस' के नाम पर रखा था। मस्जिद मूल रूप से प्रसिद्ध संत सैय्यद उस्मान के सम्मान में बनाई गई थी। संत सैय्यद उस्मान शिराज में पैदा हुए तथा बाद में दिल्ली आ गए, और वहाँ से तैमूर के आक्रमण के कारण जौनपुर चले गए। उनके वंशज आज भी मस्जिद के पास रहते हैं। मस्जिद को 'चार उंगली मस्जिद' के रूप में भी जाना जाता है क्योंकि यहाँ की दीवारों में जो ईंटे उपयोग में लायी गयी हैं, उनमें से प्रत्येक का आकार चार उंगली के बराबर है अर्थात प्रत्येक ईंट की लंबाई लगभग चार इंच है।
मस्जिद एक आवासीय बस्ती के बीच में स्थित है और 14वीं शताब्दी के जीवन का प्रतिनिधित्व करती है। खालिस मुखलिस मस्जिद एक जौनपुर शैली की मस्जिद है, जो काफी हद तक अटाला मस्जिद के समान दिखती है, हालांकि रूप और संरचना में यह छोटी और सरल है। इसके उदाहरण सामने के स्तम्भों और सजावट में देखे जा सकते हैं। इसकी संरचना सरल और सेवाभावी है जो कि सामान्य उच्च प्रोपीलोन (Propylon), गुंबददार विशाल कक्ष, दो छोटे कक्ष और लगभग 66 फीट गहरे एक बड़े वर्गाकार घेरे के साथ बना है। इसमें एक समतल छत भी है, जिसे हिंदू शैली में बने कुछ स्तंभों की दस पंक्तियों ने वहन किया हुआ है। मस्जिद को 'दरबिया मस्जिद' के नाम से भी जाना जाता है।
इमारत की पूरी संरचना सरल है। दीवारों के साथ इसके द्वारों को सिकंदर लोदी के आदेशों के अनुसार नीचे खींच लिया गया था। यह जर्जर हालत में वर्षों तक रहा, लेकिन अब इसकी मरम्मत की गई है और यह उपयोग में है। मुख्य प्रवेश द्वार के बाईं ओर दक्षिणी खंभे पर स्थित चबूतरे में एक पत्थर तीन इंच लंबा है। यहाँ प्रत्येक सप्ताह के शुक्रवार को आयोजित होने वाली विशेष प्रार्थनाएं मन को परम शांति प्रदान करने के लिए जानी जाती हैं और इसलिए भारी संख्या में पर्यटक इसका लाभ लेने के लिए यहां पहुंचते हैं। यह मस्जिद वास्तव में इस्लामिक वास्तुकला के विशिष्ट उदाहरणों में से एक है।