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जौनपुर के आखिरी शासक हुसैन शाह को अपनी संगीत संबंधी उपलब्धियों के कारण 'गंधर्व' का खिताब मिला था। उन्होंने हिंदुस्तानी शास्त्रीय संगीत के अंतर्गत ख्याल गायकी के विकास के लिए बहुत काम किया।। उन्होंने खुद कई नए रागों की रचना की। इनमें सबसे चर्चित मल्हार- श्याम, गौर- श्याम, भोपाल- श्याम, हुसैनि या जौनपुरी आसा वरी (जिसे आजकल जौनपुरी कहते हैं) और जौनपुरी बसंत हैं। यहां तक कहा जाता है कि शास्त्रीय संगीत के चार प्रमुख प्रारूपों में से एक ठुमरी का भी जन्म ख्याल से हुआ था।
ख्याल का इतिहास
ख्याल को लोकप्रिय बनाने का श्रेय नियामत खां को जाता है, जिनका उपनाम सदारंग था। उनके साथ शामिल किए जाते हैं उनके भतीजे फिरोज खां, जिनका उपनाम अदारंग था। यह दोनों मोहम्मद शाह रंगीले ( 1719- 1748) के दरबारी गायक थे। ऐसा लगता है कि ख्याल गायकी पहले से ही थी, लेकिन आज के रूप-रंग में नहीं थी। कुछ संगीतकार इसका श्रेय अमीर खुसरो को देते हैं, जिन्होंने संगीत गायकी के 6 रूप बनाए थे- कौल,कलबना,नक्श,गुल ,तराना और ख्याल। लेकिन इसके पूरे प्रमाण मौजूद नहीं है। सदारंग- अदारंग ने इश्क पर उर्दू शायरी को अपनी धुनों से संवारा। ख्याल को उस समय ध्रुपद के समकक्ष माना गया, ख्याल गायकी में ख्याल घरानों का चलन शुरू हुआ।
ख्याल के प्रमुख गुण
ख्याल का आधार 2 से 8 लाइन के छोटे गाने होते हैं, जिन्हें बंदिश कहते हैं । हर गायक एक ही बंदिश को अलग-अलग तरह से गाता है, सिर्फ शब्द और राग वहीं रहते हैं । ख्याल बंदिशें उर्दू हिंदी फारसी का एक प्रकार दारी, भोजपुरी, पंजाबी, राजस्थानी या मराठी भाषाओं में स्वरबद्ध की गई। प्रेम, भक्ति, राजा या भगवान की प्रशंसा, मौसम, सुबह- रात, कृष्ण लीलाएं पर ख्यालों की रचना की गई। बंदिश के दो भाग होते हैं-स्थाई और अंतरा। गायक अपने गायन के लिए हारमोनियम, सारंगी, वॉयलिन, तबला पृष्ठभूमि में तानपुरा वाद्यों का प्रयोग करते हैं। ख्याल गायकी में एक ताल, झूमरा, झपताल, तिलवाड़ा, तीन ताल रूपक और आड़ाचौताला तालों का प्रयोग होता है।
पारंपरिक ख्याल गायन में दो गानों का प्रयोग होता है, धीमी लय में बड़ा ख्याल और छोटा ख्याल तेज लय में गाया जाता है। आमतौर पर दोनों का राग एक होता है, ताले अलग होती हैं। बड़े ख्याल में शुरू में बिना ताल वाद्य के आलाप लिया जाता है, जो राग का स्वरुप स्पष्ट करता है । ख्याल गायकी में आलाप ध्रुपद से छोटा होता है। ताने ख्याल गायन की खास अंग होती हैं। ख्याल गायन के समापन के लिए तराना, ठुमरी टप्पा का प्रयोग होता है।
ख्याल और ध्रुपद
उत्तर भारत में ख्याल गायकी शास्त्रीय संगीत की प्रमुख विधा बन गई है। यह फारसी भाषा का शब्द है जिसका मतलब होता है कल्पना। ध्रुपद के शास्त्रीय स्वरूप से अलग ख्याल गायकी में प्रयोग और गायन की पूरी आजादी होती है । हालांकि चुने हुए राग की मर्यादा का पूरा ध्यान रखने की बाध्यता भी ख्याल गायकी में होती है।
चित्र सन्दर्भ:
1. मुख्य चित्र में ख्याल प्रस्तुत करते हुए कलाकारों को दिखाया गया है। (Youtube)
2. दूसरा चित्र - असावरी रागिनी, रागमाला पेंटिंग (Wikimedia)
3. अंतिम चित्र में 'रागमाला’ (18 वीं शताब्दी) से लिया गया एक लघु चित्रण है जिसमें उस समय के और भूतकाल के उस्तादों की एक साथ काल्पनिक महफ़िल दिखाई देती है। शीर्ष पंक्ति में बाएं से दाएं: तानसेन, फिरोज खान 'अदरंग', निअमत खान 'सदरंग' और नीचे की पंक्ति में बाएं से दाएं: करीम खान (हैदराबाद के दरबार में जाने वाले अदरंग के शिष्य), और निजाम के दरबार में एक प्रसिद्ध संगीतकार करीम खान के पुत्र खुशाल खान 'अनूप' दिखाई देते हैं। (Wikipedia Commons)
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