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अक्सर वैज्ञानिकों द्वारा यह दावा किया जाता है कि इस दुनिया के अतिरिक्त भी इस ब्रह्माण्ड में कई और ऐसे ग्रह हैं, जहां जीवन मौजूद है, जिन्हें हम एलियंस (Aliens) के नाम से जानते हैं। ऐसे ग्रहों की खोज वैज्ञानिक दशकों से करते हुए आ रहे हैं। जिसके लिए वे ड्रेक समीकरण (Drake Equation) का उपयोग करते हैं। ड्रेक समीकरण के माध्यम से ब्रह्माण्ड में बुद्धिजीवियों को खोजने का प्रयास किया जाता है, जिनसे हम बातें कर सकें और इस ब्रह्माण्ड को और अच्छे से जान सकें। यह समीकरण सर्वप्रथम आकाशगंगा में तारा निर्माण की औसत दर के बारे में बात करता है। इसका प्रमुख कारण यह है कि किसी भी ग्रह में स्वयं का प्रकाश नहीं होता है, वे तारे के माध्यम से प्रकाश अर्जित करते हैं, क्योंकि किसी भी ग्रह में जीवन के लिए एक विशेष वातावरण की आवश्यकता होती है, जिसमें एक तापमान और नमी दोनों की मौजूदगी अनिवार्य है। अत: इसके निकट तारे का होना अत्यंत आवश्यक है।
इस प्रकार तारे हमारे जीवन के वे अभिन्न अंग हैं, जिनके बिना जीवन की कल्पना संभव नहीं है। हमारा सूर्य भी एक तारा ही है। इसके जैसे ब्रह्माण्ड में न जाने कितने तारे हैं, खगोलविदों के लिए यह प्रश्न रोचक भरा एवं विचलित कर देने वाला है। आकाश में तारों की गिनती करना समुद्र तट पर रेत के कणों की गिनती करने के समान है। जिसका अनुमान हम समुद्र तट की सतह को मापकर, और रेत की परत की औसत गहराई को निर्धारित करके लगा सकते हैं। इसी प्रकार तारों की गणना के लिए आकाशगंगाओं का सहारा लिया जाता है। ब्रह्मांड में अनेक आकाशगंगाएं उपस्थित हैं, जिनमें से हमारी आकाशगंगा 'मिल्की वे(Milky Way)' में ही लगभग 10^11 से 10^12 तारे हैं और ब्रह्माण्ड में अनुमानत: 10^11 या 10^12 आकाशगंगाएं हैं।
इसके अनुसार यदि आप तारों की संख्या का अनुमान लगाएं तो आपको लगभग 10^22 से 10^24 तारे मिलेंगे। किंतु यह एक सटीक अनुमान नहीं होगा, जिस प्रकार समुद्र तट पर सभी जगह रेत की गहराई एक समान नहीं होती है, उसी प्रकार ब्रह्माण्ड में सभी आकाशगंगा एक समान नहीं हैं। यूरोपीय अंतरिक्ष अनुसंधान केंद्र के खगोलशास्त्री हर्शेल (Herchel) ने आकाशगंगाओं की गणना करने में महत्वपूर्ण भूमिका निभाई। उन्होंने उपरोक्त श्रृंखला में प्रकाश की चमक से तारों की संख्या का अनुमान लगाने का प्रयास किया। किंतु यह बिल्कुल सटीक अनुमान होगा यह कहना थोड़ा कठिन है क्योंकि ब्रह्माण की कई आकाशगगाओं को ना तो आंखों से देखा जा सकता है और ना ही दूरबीन से, ऐसे में उनकी चमक को मापना थोड़ा कठिन कार्य होगा।
हर्शेल ने तारों की संख्या का अनुमान लगाने के लिए इनकी उत्पत्ति का अनुमान लगाने का भी प्रयास किया यदि यह पता लगा लिया जाता है कि इनकी उत्पत्ति और विस्तार किस दर से हुआ तो फिर ब्रह्माण्ड में इनकी वर्तमान संख्या का भी पता लगाया जा सकता है। अत: आकाशगंगाओं का पता लगाकर तारों की गणना करना थोड़ा आसाना कार्य होगा। इसिलिए विभिन्न विलुप्त आकाशगंगाओं का पता लगाने हेतु पिछले कई दशकों से अनेक मिशन चलाए गए। जिन्होंने कई विलुप्त आकाशगंगाओं को उजागर भी किया, जिससे तारों की गणना में कुछ हद तक सहायता मिली है।
हर्शेल ने तारों की संख्या का अनुमान लगाने के लिए इनकी उत्पत्ति का अनुमान लगाने का भी प्रयास किया। यदि यह पता लगा लिया जाता है कि इनकी उत्पत्ति और विस्तार किस दर से हुआ तो फिर ब्रह्माण्ड में इनकी वर्तमान संख्या का भी पता लगाया जा सकता है। अत: आकाशगंगाओं का पता लगाकर तारों की गणना करना थोड़ा आसाना कार्य होगा। इसलिए विभिन्न विलुप्त आकाशगंगाओं का पता लगाने हेतु पिछले कई दशकों से अनेक मिशन चलाए गए। जिन्होंने कई विलुप्त आकाशगंगाओं को उजागर भी किया, जिससे तारों की गणना में कुछ हद तक सहायता मिली है।
खगोलविद् आये दिन ब्रह्माण्ड में कुछ नया खोज रहे हैं, कुछ समय पूर्व (2016) हमारे सूर्य के सबसे निकट प्रॉक्सिमा सेन्टॉरी (Proxima Centauri) नामक तारे की खोज की गयी। जो पृथ्वी से लगभग 4.243 प्रकाशवर्ष दूरी पर है। यह आकृति में पृथ्वी से बड़ा है तथा इसके साथ ही इसके आसपास के वातावरण में नमी की संभावना देखी गयी है, जो जीवन के प्रति अनुकूलता को दर्शाती है। हालांकि मनुष्य के लिए अभी इस तक पहुंचना हजारों वर्ष की यात्रा के बराबर है। बिना तारे के किसी निकटतम ग्रह की खोज करना संभव नहीं है। 