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मेहराब - इस शब्द का मुस्लिम धर्म में विशेष महत्व है, हालाँकि मूल रूप से इसका एक गैर-धार्मिक अर्थ था और बस एक घर में एक विशेष कमरे जैसे एक महल में राजा के सिंहासन कक्ष को दर्शाता था।
फत अल-बारी (पृष्ठ 458) के अनुसार मेहराब "राजाओं का सबसे सम्माननीय स्थान" और "स्थानों में सर्वश्रेष्ठ व पूजनीय है।”
अरबी स्रोतों के अलावा, इस्लाम में मस्जिदें (पृष्ठ 13) के अनुसार, थियोडोर नोल्डेके (Theodor Nöldeke) शहर के लोग यह मानते हैं कि यह मूल रूप से एक सिंहासन कक्ष को दर्शाता है।
मेहराब (अरबी: محراب, miārāb, pl। محاريب maḥārīb), (फ़ारसी: مهرابه, mihrāba), एक मस्जिद की दीवार में एक अर्धवृत्ताकार आला है। जो क़िबला, यानी मक्का में काबा की दिशा को इंगित करता है। जिससे मुसलमानों को प्रार्थना करते समय वह अपने सामने दिखाई पड़े। जिस दीवार में मेहराब दिखाई देती है, वह दीवार "क़िबला दीवार" कहलाती है। मेहराब के दाईं ओर एक मीनार स्थित है, जो एक उभरे हुए मंच की तरह है, जिसमें से एक इमाम (प्रार्थना का अगुआ या लीडर) मण्डली को संबोधित करता है।
मेहराब को धार्मिक दृष्टिकोण से देखा जाए तो यह इस्लामी संस्कृति को प्रदर्शित करता है। इसे मस्जिद में एक महत्वपूर्ण केंद्र बिंदु माना जाता है, जो प्रार्थना की दिशा को इंगित करता है। अगर इसकी बनावट की बात करें तो आम तौर पर इसकी सजावट बहुत आकर्षक होती है। इसमें बने ज्यामितीय डिजाइन, रैखिक पैटर्न (Pattern) इसको और भी अद्भुत बनाते हैं। यह अलंकरण धार्मिक उद्देश्य की पूर्ति करता है। इसमें कुरान से लिए गए सुलेख ईश्वर के प्रति भक्ति के प्रतीक हैं। इनके सभी डिज़ाइन आपस में जुड़े हुए से प्रतीत होते हैं तथा उनके बीच में खाली स्थान बहुत ही कम होता है।
भारत के उत्तर प्रदेश राज्य का प्राचीन शहर जौनपुर, जो वर्ष 1360 में तुगलक वंश के शासक फिरोज शाह तुगलक द्वारा स्थापित किया गया था। वर्ष 1559 में जब बादशाह अकबर ने इसे मुग़ल साम्राज्य में मिला लिया, उसके पश्चात् यहां कई मस्जिदों की स्थापना हुई। उन्हीं में से एक है- अटाला मस्जिद।
अटाला मस्जिद (1423)
वर्तमान समय में जौनपुर में जो मस्जिदें शेष रह गयी हैं, वहां राजसी मेहराब एक मुख्य विशेषता है। ऐसा माना जाता है कि इसका निर्माण दिल्ली के बागपुर मस्जिद से प्रेरित होकर किया गया था। उसमें बने आला, झुकी हुई दीवारें, बीम, स्तंभों का रूप और संरचना इत्यादि सभी इसी बात का सबूत हैं। तुगलक वंश के सुल्तान मुहम्मद शाह और फिरोज शाह के अधीन दिल्ली में निर्मित मस्जिदों, मकबरों और अन्य इमारतों की झलक इसमें दिखाई पड़ती हैं। इतना ही नहीं इस शैली को जौनपुर की अन्य मस्जिदों में भी देखा जा सकता है।
इस मस्जिद के निर्माण में दिल्ली के कई हिंदू और मुस्लिम कामगार शामिल थे। इसके आलावा, अटाला मस्जिद में गंगा नदी से संबंधित वास्तुकला और शिल्प का समावेश भी मिलता है। संक्षेप में कहें तो इस मस्जिद में जौनपुर के भवन की अनूठी विशेषताओं जैसे- प्रार्थना कक्ष में राजसी तोरण, विभिन्न आकारों में तीन गुंबद, पश्चिम दिशा में पीछे की दीवार की संरचना और शैली, मुख्य प्रार्थना कक्ष की अन्य सजावट, मेहराब और अन्य सजावट इत्यादि का मिश्रण है।
मेहराब शब्द का प्रयोग प्राचीन काल से ही किया जा रहा है। उस समय इसे 'अरबी मीराब' कहते थे, जो मुख्य रूप से एक मस्जिद के क़िबला की दीवार (जो मक्का के ठीक सामने थी तथा जहां प्रर्थना की जाती थी) होती थी। यह आकर में भिन्न-भिन्न हो सकते हैं परन्तु प्रत्येक मेहराब की सजावट बहुत सुंदर नक्काशी से की जाती है। इसकी शुरुआत उमय्यद राजकुमार अल-वलीद (705–715) के शासनकाल में हुई थी, उस समय के दौरान मदीना, येरुशलम और दमिश्क में प्रसिद्ध मस्जिदों का निर्माण किया गया था। अधिकांश प्रार्थना आसनों में एक मेहराब भी होता था, जो एक खंड के आकार का डिजाइन होता था। घुटने टेकने से पहले, व्यक्ति गलीचा रखता था ताकि प्रार्थना करते वक्त मेहराब मक्का के सम्मुख रहे।
इस प्रकार कहा जा सकता है कि यह मुस्लिम समुदाय के लिए महत्वपूर्ण स्थल है। इसे धार्मिक पक्ष से देखें तो मेहराब इंसान को ईश्वर से जोड़ने का एक पवित्र और पूजनीय स्थल है और यदि धार्मिक पक्ष से ना देखें, तो सुन्दर सजावट वाला यह स्थान आज भी पुराने राजाओं के शासनकाल और उनकी जीवनशैली की छवि दर्शाता है।