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जौनपुर की भौगोलिक स्थिति के कारण यहाँ काफी कम मात्रा में खनिज पदार्थ पाए जाते हैं, यहाँ केवल चुनिंदा स्थानों में कंकड़ और कुछ घास के मैदानों में रेत पाई जाती है। आमतौर पर रेत का उपयोग कई उद्देश्यों के लिए किया जाता है, जैसे कि इसका उपयोग ईंट के निर्माण में भी किया जाता है। ईंट शब्द निर्माण सामग्री की छोटी इकाइयों को संदर्भित करता है, इन्हें अक्सर जली हुई मिट्टी से बनाया जाता है और मसाले (सीमेंट, रेत, और पानी से युक्त एक संबंध पदार्थ) के साथ सुरक्षित किया जाता है। प्राचीन काल से ही लोकप्रिय ईंट हमें गर्मी से बचाती है, जंग से लड़ने में मदद करती है और आग से सुरक्षा प्रदान करती है। साथ ही इसके आकार की वजह से ये सीमित स्थानों में संरचनाओं के लिए और साथ ही घुमावदार डिजाइनों के लिए एक आदर्श सामग्री मानी जाती है। इसके अलावा, न्यूनतम रखरखाव के साथ, ईंट की इमारतें आम तौर पर लंबे समय तक चलती हैं।
उपर्युक्त व्यावहारिक कारणों और इसके सौंदर्यवादी रूप से सुखदायक माध्यम की वजह से ईंट का उपयोग निर्माण सामग्री के रूप में कम से कम 5,000 वर्ष पहले से किया जाता आ रहा है। ऐसा माना जाता है कि पहली ईंट शायद मध्य पूर्व (जो कि अब इराक में टाइगरिस (Tigris) और यूफ्रेट्स (Euphrates) नदियों के बीच है) में बनाई गई थी। उस समय वहाँ के शुरुआती निर्माणकर्ताओं द्वारा ईंट को प्राकृतिक सामग्रियों का उपयोग करके धूप में सेंक कर बनाया जाता था। हालांकि इन ईंटों का सीमित उपयोग किया जाता था, क्योंकि वे मजबूत नहीं थी, जिस वजह से इनका इस्तेमाल बाहर नहीं किया जा सकता था। बेबीलोन के लोग, जो बाद में मेसोपोटामिया पर हावी हो गए थे, द्वारा सबसे पहले ईंट को जलाकर उसका निर्माण किया गया था, इससे उन्होंने कई बुर्ज-मंदिरों का निर्माण भी किया गया था। ऐसे ही मध्य पूर्व से ईंट बनाने की कला पश्चिम में मिस्र में फैल गई और इसके बाद वहाँ से पूर्व में फ्रांस और भारत में आई थी।
चीन के बाद, भारत विश्व भर में ईंटों का दूसरा सबसे बड़ा निर्माता है। भारत में प्रमुख ईंट उत्पादक राज्य उत्तर प्रदेश, हरियाणा और पंजाब हैं। इन राज्यों का देश में पूरे उत्पादन का लगभग 65% हिस्सा है। भारत में ईंटों का उत्पादन मुख्य रूप से ईंधन और मिट्टी की उपलब्धता के कारण भारत भर में भिन्न है। आज भी, ईंटों का उत्पादन करने के लिए पारंपरिक तकनीकों का उपयोग किया जाता है। ईंटों की निर्माण प्रक्रिया मौसमों पर भी निर्भर रहती है क्योंकि सुखाने और जलाने की प्रक्रिया अभी भी खुली हवा के तहत की जाती है। भारत में ईंट बनाने की प्रक्रिया निम्न है :-
1. कच्चे माल को तैयार करें :- इस पहले चरण में मिट्टी का खनन किया जाता है और फिर उसे एक समतल ज़मीन पर बिछाया जाता है, जहां इसमें से सभी प्रकार की अशुद्धियों (जैसे वनस्पति पदार्थ, पत्थर, कंकड़ आदि) को साफ किया जाता है। एक बार जब सामग्री शुद्ध हो जाती है तो इसे कुछ महीनों के लिए खुला रख दिया जाता है। इसके बाद काओलिन (Kaolin) और शेल (Shale) सहित प्राकृतिक मिट्टी के खनिजों की मदद से ईंट को मुख्य आकार दिया जाता है।
2. आकार देना और ढालना :- पहले के समय में ईंटों को आकार देने के लिए उपयोग किए जाने वाले सांचे लकड़ी के बने होते थे और ईंटों को बनाने के लिए निर्माताओं ने रेत का इस्तेमाल किया ताकि मिट्टी साँचों में न चिपक जाए। लेकिन आज इस प्रक्रिया के लिए कई अन्य विकल्प उपलब्ध हैं। अंतः उत्पाद की गुणवत्ता के आधार पर, ईंटों को कई अलग-अलग तरीकों से ढाला जाता है। ईंटों को आकार देने या ढालने के लिए सबसे आम तरीके हैं हाथ की ढलाई और मशीन की ढलाई।
• हाथ की ढलाई : संयमित मिट्टी को इस तरह से साँचे में ढाला जाता है कि वह सभी कोनों में भर जाएं। अतिरिक्त मिट्टी को तार वाले ढांचे की मदद से हटाया जाता है। एक बार उचित आकार तैयार हो जाने के बाद, ढांचे को उठा लिया जाता है और जमीन पर कच्ची ईंट मौजूद रहती है।
• मशीन से ढालना : इस विधि का उपयोग वहाँ किया जाता है जहां बड़ी संख्या में ईंटें निर्मित होती हैं। आवश्यक रूप से ईंटों को ढालने के लिए दो अलग-अलग प्रकार की मशीनों का उपयोग किया जाता है:
1. लचकदार चिकनी मिट्टी की मशीनें - यहां उपयोग की जाने वाली मिट्टी लचीली होती है और इसे एक आयताकार आकार के ढाँचे में डाला जाता है जो ईंटों की लंबाई और चौड़ाई के बराबर होती है। इसके बाद इन्हें ढांचे में तारों की मदद से ईंटों की एक समान चौड़ाई में काटा जाता है।
2. सूखी चिकनी मिट्टी की मशीनें - यहाँ सूखी मिट्टी को पाउडर (Powder) के रूप में संघनित किया जाता है जिसे मशीनों की सहायता से साँचे में भरा जाता है। फिर कठोर और अच्छे आकार की ईंटों को बनाने के लिए उच्च दबाव के संपर्क में लाया जाता है।
3. सुखाना :- ईंट बनाने की प्रक्रिया में सुखाने की प्रक्रिया सबसे महत्वपूर्ण चरणों में से एक है। अब आप ज़रूर यह सोच रहे होंगे कि ईंट को क्यों सुखाया जाता है? इसका मुख्य कारण ईंटों को दरारों से बचाना है। ईंटों को सुखाने से यह सुनिश्चित किया जाता है कि ईंटों के जलने की प्रक्रिया से पहले नमी को हटा दिया जाता है। इसके अलावा सुखाने से कच्ची ईंटों की ताकत बढ़ जाती है, जिससे यह बिना नुकसान पहुंचाए जलने की प्रक्रिया के लिए भट्ठे में अधिक तापमान पर भी बनी रहती है। आमतौर पर सुखाने की प्रक्रिया 7 से 14 दिनों तक की होती है।
4. जलाने की प्रक्रिया :- सुखाने के बाद, ईंटों को भट्टियों में उच्च तापमान पर रख दिया जाता है। ईंट बनाने की प्रक्रिया में जलाना एक और बहुत महत्वपूर्ण कदम है। भारत में ईंटों को दो अलग-अलग प्रक्रिया से जलाया जाता है: पज़वा और भट्ठा।
वहीं वर्तमान समय में जहां कोविड-19 (Covid-19) से बचने के लिए हमारे द्वारा एकल उपयोग मास्क (Mask) और दस्तानों का उपयोग किया जा रहा है। ये एकल उपयोग वाले मास्क और दस्ताने एक बार इस्तेमाल किए जाने के बाद कूड़े के ढेर में शामिल हो जाते हैं, जिससे वे प्रदूषण की समस्या को ओर अधिक बड़ा रहे हैं। इस कचरे के ढेर से लड़ने में मदद करने के लिए ‘रीसायकल मैन ऑफ इंडिया (Recycle Man Of India)’ के नाम से मशहूर बिनिश देसाई द्वारा व्यक्तिगत सुरक्षा उपकरणों से पर्यावरण के अनुकूल ईंट को पेश किया गया है। इसे बनाने से पहले उन्होंने मास्क की सामग्री का पता लगाया, जो गैर-बुने फाइबर से बने थे।
शोध के लिए उन्होंने अपने परिवार से इस्तेमाल किए गए मास्क को इकट्ठा करना शुरू किया और प्रयोग को शुरू करने से पहले उन मास्क को निस्संक्रामक पर दो दिन के लिए डाल कर रखा। फिर उन्होंने उन्हें अपनी प्रयोगशाला में बनाए गए "विशेष बाइंडर (Binder)" की मदद से एक साथ मिलाया। इन ईंटों के लिए, सफल अनुपात 52% पीपीई (PPE) + 45% कागज अपशिष्ट + 3% बाइंडर था। अन्तः उनके द्वारा बनाई गई इस ईंट 2.0 को पी-ब्लॉक (P-Block) नाम दिया गया। वर्तमान में यह परियोजना वाणिज्यिक स्तर पर है क्योंकि पी-ब्लॉक के लिए बुनियादी ढांचा मौजूद है, और केवल 2.0 संस्करण के लिए कुछ कदम उठाने की आवश्यकता है।
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