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जौनपुर की प्रमुख गोमती नदी में डॉल्फिन (Dolphin) को देखते ही हम उसकी ओर मोहित हो जाते हैं, लेकिन क्या यहाँ आकार में सबसे बड़ी जीव व्हेल (Whale) पाई जाती होगी? हालाँकि व्हेल मछलियां अन्य समुद्री जानवरों के साथ समुद्र को साझा करते हुए रहती हैं, लेकिन वे इन जानवरों से बहुत भिन्न हैं और इन्हें समुद्र में जीवित रहने के लिए विभिन्न परिस्थितियों की आवश्यकता होती है। व्हेल एक समुद्री स्तनधारी होती हैं, जो हवा में सांस लेती हैं, दूध का उत्पादन करती हैं, जन्म देती हैं और गर्म रक्त वाली होती हैं। इस तथ्य के बावजूद कि ये स्तनधारी समुद्र में पाई जाती हैं, व्हेल ताजे पानी के वातावरण में लंबे समय तक जीवित नहीं रह सकती हैं। वास्तव में व्हेल की सभी ज्ञात प्रजातियाँ ताजे पानी के बजाय खारे पानी के वातावरण में रहती और पनपती हैं, इसके पीछे भी कई कारण मौजूद हैं।
दरसल व्हेल और उनके शिकार खारे पानी के प्राकृतिक गुणों से जैविक रूप से अनुकूलित होते हैं। जैसे खारे पानी में लवण और खनिज होते हैं, जो एक व्हेल को शार्क (Shark) या अन्य व्हेल से लड़ने के कारण लगी चोट और घावों को संक्रमणों से दूर करने में और भरने में सहायता करते हैं। वहीं खारे पानी में व्हेल को पर्याप्त भोजन प्राप्त हो जाता है, जो आमतौर पर समुद्र में पाया जाता है, न की ताजे पानी में। यह भी एक आम कारण है कि क्यों व्हेल ताजे पानी में नहीं पाई जाती है। व्हेल काफी भारी होते हैं, इसलिए जितना संभव हो उतना कम प्रयास करके पानी की सतह पर तैरना उनके लिए काफी जरूरी होता है, खारे पानी के गुण व्हेल को पानी में आसानी से तैरने में मदद करते हैं। इन सभी तथ्यों से हमें यह पता चलता है कि गोमती नदी में व्हेल नहीं पाई जा सकती है।
लेकिन क्या आप जानते हैं कि लाखों साल पहले व्हेल अन्य चार पैरों वाले जीवों की तरह भूमि पर ही निवास करती थी। 50 मिलियन वर्ष पहले समुद्र में इस तरह का कोई जीव नहीं पाया जाता था। किन्तु ये व्हेल समुद्र में कैसे पहुंची? दरअसल भोजन की तलाश में ये जीव भूमि से जल में उतरे जिससे इनके पैर पंखों में रूपांतरित हो गये। वहीं कुछ व्हेल में आज भी पैरों की हड्डियां आंशिक रूप से दिखायी देती हैं। समुद्र में पायी जाने वाली पहली व्हेल पैकिसीटस (Pakicetus) थी। आज की ब्लू (Blue) व्हेल पैकिसीटस की तुलना में 10 हजार गुना अधिक भारी है, आश्चर्य की बात तो यह है कि व्हेल द्वारा ये विशाल आकार कैसे प्राप्त किया गया? एक नए अध्ययन के अनुसार, महासागरों में अपने भोजन के वितरण में परिवर्तन के परिणामस्वरूप व्हेल लगभग 2-3 मिलियन वर्ष पहले विशाल आकार में विकसित होने लग गई थी। पूरे विश्व में इनकी कई सारी प्रजातियाँ पाई जाती है, जिसमें ब्लू व्हेल सबसे बड़ी है। पूरी तरह से विकसित होने पर ये 150 टन से अधिक हो सकती हैं और लंबाई में 29.9 मीटर तक बढ़ सकती है। कुछ अनुमानों में कहा गया है कि एक बड़ी ब्लू व्हेल का वजन 180 टन तक हो सकता है। हालांकि, कुछ मिलियन साल पहले तक व्हेल 10 मीटर से अधिक नहीं बढ़ती थी। एक विवरण से यह भी पता चलता है कि आज हमारे समक्ष मौजूद विशाल व्हेल में से अधिकांश व्हेल के इतिहास में मौजूद नहीं हैं।
शोधकर्ताओं द्वारा लगभग 4.5 मिलियन वर्ष पहले विकसित हुए इस शरीर के अंतर का पता लगाया गया, जिसमें पाया गया कि उस समय न केवल 10 मीटर से अधिक लंबे शरीर के साथ व्हेल विकसित होना शुरू हुई, बल्कि उनकी छोटी प्रजातियां भी गायब होने लगीं। शोधकर्ताओं का कहना है कि हिमयुग की शुरुआत में हुए विकासवादी परिवर्तन, जलवायु परिवर्तन से मेल खाते है, जिसने विश्व के महासागरों में व्हेल की खाद्य आपूर्ति को फिर से आकार दिया होगा। इस परिवर्तनकाल के समय ब्लू व्हेल (जो समुद्री जल से केवल छोटे शिकार जैसे क्रिल का उपभोग करती थी) द्वारा उपभोग की जाने वाली क्रिल काफी प्रचुर मात्रा में प्राप्त होने लगी। ब्लू व्हेल के चयनात्मक भोजन उपभोग की इस प्रणाली (जो लगभग 30 मिलियन वर्ष पहले विकसित हुई थी) ने मूल रूप से व्हेल के आकार में वृद्धि को बढ़ावा दिया, क्योंकि जैसे-जैसे शिकार के समृद्ध स्रोत विशेष स्थानों और वर्ष के समय में केंद्रित होते गए, इसने व्हेल की खाद्य आपूर्ति को बढ़ाया और इस तरह-दशकों में उनके शरीर के आकार में क्रमिक विकास हुआ।
वहीं हिंद महासागर अभयारण्य सदस्य के रूप में अपनी पहली बैठक में सेशेल्स (Seychelles) के छोटे से द्वीप राष्ट्र द्वारा प्रस्तावित किए जाने के बाद, व्हेल और उनके प्रजनन क्षेत्र के संरक्षण के लिए 1979 में हिंद महासागर व्हेल अभयारण्य की स्थापना की गई थी। यह हिंद महासागर का वह क्षेत्र है, जहां अंतर्राष्ट्रीय व्हेलिंग आयोग द्वारा सभी प्रकार के वाणिज्यिक व्हेल के शिकार पर प्रतिबंध लगाया गया है। प्रत्येक 10 वर्षों में अंतर्राष्ट्रीय व्हेलिंग आयोग द्वारा हिंद महासागर व्हेल अभयारण्य की स्थिति की समीक्षा की जाती है। हिंद महासागर व्हेल अभयारण्य की अब तक 1989, 1992, 2002 और 2012 में चार बार समीक्षा की जा चुकी है। हिंद महासागर व्हेल अभयारण्य व्हेल की कई प्रजातियों का घर है। ब्लू (Blue), फिन (Fin), हम्प्बैक (Humpback), मिंके (Minke), सेई (Sei), मेलोन हेडेड (Melon Headed), पिग्मी ब्लू (Pygmy Blue), स्पर्म (Sperm) आदि व्हेल की ऐसी प्रजातियां हैं, जो भारतीय महासागर में पायी जाती हैं।
संदर्भ :-
https://www.whalefacts.org/can-whales-live-in-fresh-water/
https://bit.ly/2KPhKME
https://en.wikipedia.org/wiki/Indian_Ocean_Whale_Sanctuary
https://www.businessinsider.in/how-whales-became-the-largest-animals-ever/articleshow/65813945.cms
https://www.nytimes.com/1979/07/14/archives/indian-ocean-ruled-a-whale-sanctuary-commission-establishes-a.html
http://www.walkthroughindia.com/offbeat/10-species-whales-found-indian-ocean/
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