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पुरातत्व का अध्ययन अत्यंत ही दिलचस्प विषय है। यह हमें हमारे इतिहास और धरोहर के विषय में बताने का कार्य करता है। धरोहर का अर्थ मात्र यह नहीं होता जिसमे कोई एक मंदिर या मस्जिद हो या अन्य कोई भवन हो। धरोहर में पुरातात्विक टीले, शैलचित्र आदि सब भी आते हैं। अब यह समझने के लिए एक महत्वपूर्ण विषय है कि आखिर यह शैलचित्र होता क्या है? शैल चित्र वास्तविकता में एक ऐसी विधा है जो कि पाषाण काल से ही मनुष्य बनाते आये हैं। पूरे विश्व भर में शैल चित्र बड़े पैमाने पर पाए जाते हैं। पाषाणकालीन व्यक्ति गुफाओं में अपनी दैनिक दिनचर्या आदि का अंकन विभिन्न प्राकृतिक रंगों के माध्यम से करता था और वो आज भी जंगलों आदि में मौजूद हैं। भारत में पहली बार कार्लाइल (Carlyle) ने 19वीं शताब्दी के प्रारम्भ में मिर्जापुर के जंगलों में यह शैल चित्र गुफा की खोज की थी, उसके बाद से मानों भारत में हजारों शैल चित्र गुफाओं की खोज हो चुकी है। भारत का सबसे वृहत शैल चित्र स्थल भीम बेटका है, जो भोपाल के नजदीक रायसेन जिले में स्थित है।
इसी कड़ी में एक अन्य महत्वपूर्ण शैल चित्र पुरास्थल लेखिछाज है, जो की विन्ध्य की सुरम्य पहाड़ियों में स्थित है, यह पुरास्थल आसन नदी के किनारे एक चट्टान के नीचे बने गुफा में स्थित है। आसन नदी का महाभारत के कर्ण से एक अत्यंत ही महत्वपूर्ण जोड़ है। लेखीछाज, जिला मोरैना के जौरा तहसील के अन्तर्गत पहाड़गढ़ कस्बे में स्थित है। यह मोरैना, पहाड़गढ़ एवं जौरा से 45 कि.मी. दूर स्थित है। जौनपुर से इसकी दूरी करीब 400 किलोमीटर है। लेखीछाज दो शब्दों के संयोग से बना है, एक है लेख और दूसरा है छाज, इन दोनों शब्दों का अर्थ है 'छज्जे पर लिखाई'। यहाँ पर अनेकों चित्रों को उकेरा गया है, जो उस समय के मनुष्यों की जीवनशैली को बताने का कार्य करते हैं। यह एक रिहायसी पुरास्थल नहीं था, जिसका प्रमुख कारण यह है कि यहाँ पर किसी भी प्रकार का रहने का अवशेष नहीं प्राप्त हुए। इसके अलावा यह नदी से एकदम नजदीक है तो बाढ़ आने का ख़तरा अधिक है। अतः संभवतः यह कहा जा सकता है कि यहाँ पर पाषाणकालीन व्यक्ति किसी न किसी अनुष्ठान के लिए आता-जाता रहा होगा।
पहाड़गढ़ क्षेत्र का सर्वेक्षण सर्वप्रथम द्वारिकेश (द्वारिका प्रसाद शर्मा, मिशीगन विश्वविद्यालय (University of Michigan)) द्वारा सन् 1979 में किया गया। हांलाकि सर्वेक्षण से पहले ही इन शैलचित्रों की जानकारी पुराविदों को थी। यहाँ के शैलचित्रों का अंकन लाल-गेरूएं रंग से, काले रंग से, खड़िया या सफ़ेद रंग से किया गया है। यहाँ मानव एवं जानवरों दोनों के चित्र हैं, जानवरों में कुछ चित्र पालतू जानवरों के भी हैं। अधिकांश चित्रों को लाल रंग से भरा गया है, परन्तु कुछ रेखा चित्र भी प्राप्त हुए हैं। ये चित्र भिन्न-भिन्न काल के हैं और चित्रों का अंकन पुराने चित्रों के ऊपर किया गया है। नए चित्रों के अंकन से पहले पुराने चित्रों को मिटाया भी नहीं गया है। आज भी उन चित्रों के रंग एवं रेखाएं दिखायी दे रही हैं। चित्रों का कालक्रम बनावट के आधार पर ताम्रपाषाण से लेकर ऐतिहासिक युग तक किया जा सकता है। आखेट दृश्य: लेखीछाज से आखेट के कई दृश्य प्राप्त हुए हैं, जिनमें मनुष्य द्वारा धनुष-बाण, तलवार, कुल्हाड़ी आदि द्वारा विभिन्न जानवरों का शिकार करते हुए दिखाया गया है। शिकार में पालतू कुत्तों से भी सहायता ली गयी है। अधिकांश आखेट चित्रों में नीलगाय एवं हिरण का शिकार किया गया है।
मोरों द्वारा नाग का शिकार: इन चित्रों में दो मोर एक सर्प का शिकार कर रहे हैं। इस प्रकार के तीन चित्र प्राप्त हुए है, जिनमें से दो चित्र अब धुंधले हो चुके हैं। इसके अतिरिक्त अन्य चित्र में दो मोर नृत्य करते हुए अंकित किये गये हैं।
नृत्य दृश्य: इस चित्र में 8 आकृतियां एक-दूसरे के साथ कतार बद्ध नृत्य मुद्रा में प्रदर्शित हैं।
युद्ध दृश्य: इस चित्र में दो दल आपस में युद्ध करते हुए प्रदर्शित हैं। इसमें दो व्यक्ति अंकुश लिए हुए हाथी पर सवार हैं, जिनके आगे पीछे दो-दो सैनिक आपस में युद्ध करते हुए प्रदर्शित हैं। इसी प्रकार का एक और चित्र प्राप्त होता है, जो अब धुंधला हो चुका है।
घुड़ सवार: इस चित्र में दो घुड़सवार प्रदर्शित हैं। यह संभवत: एक जुलूस का दृश्य है।
बैलगाड़ी: बैलगाड़ी के तीन चित्र प्राप्त होते हैं, जिनमें से दो बैलगाड़ियों को दो-दो बैल खीच रहे हैं तथा तीसरी गाड़ी में चार बैल गाड़ी को खीच रहे हैं।
लेखिचाज से प्राप्त चित्र कतिपय उस समय की सामजिक संरचना और पारिस्थितिकी तंत्र की बेहतर जानकारी प्रदान करते हैं और यहाँ से प्राप्त चित्र आज वर्तमान जगत में यहाँ की ऐतिहासिकता और महत्व को समझाने का कार्य करते हैं।
सन्दर्भ :
https://bit.ly/2Pe5kmg
https://indiaghoomle.blogspot.com/search/label/Lekhichhaj
चित्र सन्दर्भ :
मुख्य चित्र में लेखीछाज के प्रमुख शैलचित्रों को दिखाया गया है। (Prarang)
दूसरे चित्र में लेखीछाज के नृत्य दृश्यों को दिखाया गया है। (Prarang)
तीसरे चित्र में लेखीछाज के शिलाओं और उनमें उकेरे गए आखेट चित्र, मोर दृस्य आदि दिखाए गए हैं। (Prarang)
अंतिम चित्र में बैल के साथ मानव दृश्यों को दिखाया गया है। (Prarang)
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