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अब्दुल रहीम खान-ए-खाना (Abdul Rahim Khan-I-Khana) या फिर 'रहीम' के नाम से मशहूर दोहे नीतिशास्त्र की अमूल्य निधि हैं। ऊपर लिखी रहीम की पंक्ति का अर्थ है कि, 'एक छोटी सी सुई देखने में मामूली हो सकती है, लेकिन जहां सिर्फ सुई की जरूरत होती है, वहां तलवार भी कुछ नहीं कर सकती।' यदि हम देखें तो आम घरेलू सुई से सिलाई मशीन की सुई की बनावट में बहुत फर्क होता है। इनका निर्माण खास उद्देश्य से होता है। एक सुई को बनाने के डेढ़ सौ (150) से अधिक चरण होते हैं।
सिलाई की अच्छी गुणवत्ता और ज्यादा उत्पादन के लिए सुई का बढ़िया होना बहुत जरूरी है। रोचक तथ्य है कि कढ़ाई की मशीन में एक समय में 1000 से ज्यादा सुइयों की जरूरत होती है। चमड़े का सामान बनाने वाली सिलाई मशीनों में लगने वाली सुई की नोक के अनेक प्रकार होते हैं। इस तरह सुई नाम का औज़ार सिलाई मशीन का प्राण तत्व होता है और बड़ी लंबी कहानी है इसके भारत तक पहुंचने की।
कैसे खोज हुई सिलाई की सुई की?
ऐसा माना जाता है कि सिलाई की सुई की खोज पुरापाषाण काल में हुई थी, जो 40000 साल पहले शुरू हुआ था। पहली सुई कब इजाद हुई, इस पर भी काफी विवाद है। मोटे तौर पर 30000 से 60000 साल पहले के दावे मिलते हैं। बहुत ज्यादा प्रमाण इस बात के मिले हैं कि काफी साल पहले खेती की शुरुआत से कुछ समय पहले सिलाई की सुई का आविष्कार हुआ। यह वह समय था जब आधुनिक लोग यूरेशिया (Eurasia) में घूम रहे थे, पुरातनपंथी गायब हो रहे थे, पहली बार गुफा चित्र बने और मछली पकड़ना शुरू हुआ था, यह वही समय था जब साधारण औज़ार बनने शुरू हुए थे। खाचा काटने वाली छेनी, जिसे 'खोदनी' भी कहा जाता था, की मदद से हड्डी, बारहसिंघा के सींग और हाथी दांत से दूसरे औजार बनाए जाते और आकार दिए जाते थे, तभी सुई का आविष्कार हुआ। इस समय लकड़ी और पत्थर के बजाय हड्डी और सींग का, औज़ार निर्माण में ज्यादा इस्तेमाल हुआ क्योंकि यह लकड़ी से ज्यादा मजबूत और पत्थर से ज्यादा लचीले होते हैं।
पश्चिमी यूरोप और मध्य एशिया में सुई के जो शुरुआती प्रमाण मिलते हैं, उनमें एक सिरे पर धागे के लिए दरार होती थी, जिसमें धागा टिकता था। आजकल की सुई की तरह उनमें पूरा छेद नहीं होता था। यह भी माना जाता है कि बाद में धागे और सुई के आविष्कार ने हिम युग में मनुष्य को ठंडी जगह पर रहने में सहायता की होगी। पूरा हिम युग 100000 साल पुराना है, लेकिन 22000 साल पहले उसके अंतिम पड़ाव में लोगों ने सिलना शुरू कर दिया था।
कहानी सिलाई मशीन की सुई की
19वीं शताब्दी सुई के उत्पादन का स्वर्णिम काल था। बढ़ी हुई आमदनी, कपड़ों का बढ़ा उत्पादन, सिलाई की मशीन का आविर्भाव, भाप के जहाजों से उद्योगों को बढ़ावा और नई मशीन की बढ़ी हुई क्षमता ने नई उम्मीदें पैदा की। उस समय यह भी नियम था कि एक देश अपने निवासियों को तीन-चार सुई साल में देता था। सुई अब काफी सस्ती हो गई है। 1996 में साइंटिफिक अमेरिकन (Scientific American) पत्रिका ने प्रतिदिन 300 मिलियन सुई उत्पादित होने की खबर दी, जिसमें से 3 मिलियन सिर्फ यूनाइटेड स्टेट्स (United States) में खरीदी जाती थी। यूएस (US) में हाथ से सिलने वाली सुई ब्रिटेन (Britain) से लाई जाती थी। एक शताब्दी पुराना इतिहास होने के बावजूद बड़े औद्योगिक पैमाने पर सिलाई के लिए अच्छी सुई और धागे, आज भी एक चुनौती बने हुए हैं। ज्यादा गर्मी से उत्पादन के समय सुई और धागे नष्ट हो जाते हैं। इसलिए टैक्सटाइल इंजीनियर (Textile Engineer) कंप्यूटर मॉडल (Computer Model) का प्रयोग करते हैं और उनके अध्ययनों से ना केवल सिलाई के तरीकों में, बल्कि औद्योगिक सिलाई में उपयोग सुई की धातु संरचना, उत्पादन और बनावट की गुणवत्ता सुधारने पर भी सकारात्मक निर्णय लिए हैं।
सिलाई मशीन का आविष्कार
1850 में सिलाई मशीन की खोज हुई। इसके आविष्कारक आइसैक सिंगर (Isaac Singer) और एलायस हॉवे (Elias Howe) थे। इसके बाद शुरू हुई सिलाई मशीन के लिए उपयुक्त सुई की खोज। 1807 में लियो लामर्ट्ज़ (Leo Lammertz) और स्टीफन बेसेल (Stephen Beissel) ने सिलाई मशीन की सुई की खोज की। सिलाई मशीन की सुई का आविष्कार लियो लामर्ट्ज़ और स्टीफन बेसेल ने जर्मनी (Germany) के आचेन (Aachen) इलाके में किया था जो बाद में सुई के निर्माण की वैश्विक राजधानी बन गई। इंग्लैंड के रेडिच (Reddich) शहर में हाथ से सिलाई वाली सुई का आश्चर्यजनक म्यूजियम (Museum) है, जिसमें विकास क्रम के हिसाब से विभिन्न सुईयां प्रदर्शित हैं।
दूसरे विश्वयुद्ध में सुई निर्माण फैक्ट्री (Factory) का बड़ा नुकसान हुआ। विश्वयुद्ध के बाद सुई के ब्रांड सारी दुनिया में घरेलू स्तर पर लोकप्रिय हो गए। 1996 में अल्टेक (Altek) द्वारा सिलाई मशीन की सुई निर्माण तकनीक भारत आई और इसमें भारत को सुई का विश्व स्तर का केंद्र बना दिया।