किसी भी धर्म को समझने के लिए दर्द और यातना का एक दौर सहन करना उसका महत्वपूर्ण हिस्सा होता है। वे प्रथाएं जो पीड़ा पैदा करती हैं, उन्होंने बहुत से धर्मों और संस्कृतियों को ऊंचा उठाया है। पीड़ा देने के तरीके अलग होते हैं, लेकिन इस रिवाज के पीछे के कारण लगभग एक समान होते हैं। आत्म उत्पीड़न के लक्ष्य के पीछे किसी पैगंबर का अनुसरण करने की इच्छा शामिल होती है। एक और विचार इस रिवाज के पीछे यह है कि दर्द के कारण शैतान शरीर छोड़ कर भाग जाता है। आत्म उत्पीड़न अक्सर सजा और पछतावे का एक रूप होता है, इस प्रथा के भयंकर होने के बावजूद बहुत सी संस्कृतिया इससे मोक्ष और पवित्रता के लिए जुड़ी हैं। शताब्दियों पहले जन्मा यह रिवाज दुनिया के बहुत से हिस्सों में मौजूद है और उस धर्म के प्रति अपने त्याग का एक प्रतीक है। मुहर्रम के दसवें दिन अशूरा पर आत्म उत्पीड़न या ततबीर और मातम का आयोजन होता है।
रिश्ता आत्म उत्पीड़न और बुत परस्ती का
बुत परस्तों की दुनिया में पुराने समय से आत्म उत्पीड़न की प्रथा चली आ रही है। यह खुद को सजा देने का पुराना तरीका है, रोम की स्थापना से पहले यह सजा गुलामों को दी जाती थी। प्राचीन फ़ारसियों में कोड़े लगाने की सजा भी प्रचलित थी। राजा की आज्ञा से गुलामों पर यह सजा बार-बार तामील होती थी, जैसा कि स्टोबेयस (Stobaeus) के मामले में देखने को मिलता है। उसने 42 सेकंड के अपने बयान में कहा- 'जब राजा के हुकुम से हम में से एक को कोड़े लगाए गए, जो कि एक आम दस्तूर था, तो उसे 9 बार उनका शुक्रिया अदा करना पड़ा क्योंकि उसे बहुत बड़ा एहसास उनके माध्यम से मिला और यह भी कि राजा ने उसे याद किया।’ बाद में सजा देने का फ़ारसियों का यह तरीका बदल गया । पीठ की जगह कपड़ों पर कोड़े मारे जाने लगे।
क्या है ततबीर
'ततबीर' अरबी भाषा का शब्द है। दक्षिण एशिया में इसे तलवार जानी और कमा जानी भी कहते हैं। यह एक रक्तपात वाला रिवाज है, जिसे मुहर्रम के दौरान शिया मुसलमान शोक प्रकट करने के लिए और माफी मांगने के लिए इस्तेमाल करते हैं। यह मुहर्रम की दसवीं तारीख(इस्लामिक कैलेंडर के अनुसार) और अशूरा के बाद 40वें दिन होती है। यह इमाम हुसैन की शहादत की याद में होता है।
मुहर्रम: शहादत और कुर्बानी की मिसाल
मुहर्रम इस्लामिक कैलेंडर का पहला महीना होता है इसलिए यह इस्लाम में बहुत महत्वपूर्ण स्थान रखता है। मुहर्रम की दसवीं तारीख या अशूरा को बहुत सी प्रमुख घटनाएं होती हैं । मुहर्रम के साथ बहुत सी कथाएं जुड़ी हैं और इतिहास में भी इसकी बहुत चर्चा होती रही है। ऐसा माना जाता है कि इस तारीख को पहली बार पृथ्वी पर बारिश हुई थी, आदम और हव्वा को माफी मिली और इस दिन उनका पृथ्वी पर आगमन हुआ। बहिश्त और दोजख का जन्म हुआ। ईश्वर के सिंहासन(अर्श), फैसले की कुर्सी, गार्डेड टेबलेट (अल-लौह अल-महफूज़) (Gaurded Tablet (al-lawh al-mahfooz)), दिव्य कलम, तकदीर, जीवन( हयात) और मौत का भी निर्माण ईश्वर ने इसी आशूरा के दिन किया था। इन्हीं सब कारणों से मुहर्रम को मुहर्रम-उल-हराम या पवित्र महीना कहते हैं, जिसमें किसी भी तरह का झगड़ा या युद्ध प्रतिबंधित है या उसे माफ कर दिया जाता है। इमाम हुसैन की कर्बला के लड़ाई के मैदान में शहादत के बाद मुहर्रम का रूप एकदम बदल गया। 10वीं मुहर्रम के दिन उनके पूरे परिवार की हत्या हो गई । सच की लड़ाई में शैतानी ताकतों के विरुद्ध इतनी बड़ी शहादत के बाद इमाम हुसैन ने साबित कर दिया कि झूठ पर हमेशा सच की जीत होती है।
सन्दर्भ :
https://timesofindia.indiatimes.com/city/lucknow/amid-pandemic-cloud-mahmudabads-royal-muharram-rituals-to-be-livestreamed-this-yr/articleshow/77601549.cms
https://en.wikisource.org/wiki/History_of_Flagellation
https://en.wikipedia.org/wiki/Tatbir
https://bit.ly/2OFTwV7
https://bit.ly/2BmpAHw
चित्र सन्दर्भ :
मुख्य चित्र मुहर्रम का सांकेतिक कलात्मक चित्रण है। (Prarang)
दूसरे चित्र में बहरीन (Bahrain) में ततबीर (मुहर्रम का जुलुस) दिखाया गया है। (Wikimedia)
आशूरा को दर्शाता एक चित्रण (wikimedia)
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