ब्लैकबेरी नाइट्स (Blackberry Nights) जौनपुर के इलाकों में काफी मिलती है। देखने में खूबसूरत, स्वाद में स्वादिष्ट और रसीली होने के साथ-साथ इसके साथ कुछ खतरे भी जुड़े हैं। इसके कच्चे फल विषाक्त होते हैं। इसलिए इसको छाटने में सावधानी रखनी होती है। बच्चों को भी इनसे दूर रखना जरूरी होता है। यह विडंबना ही है कि कच्ची ब्लैकबेरी सेहत के लिए घातक है, जबकि सामान्य फूल वाले इसी पौधे के अनेक औषधीय गुण भी हैं। पकी हुई बेरी और इनकी पत्तियों की सब्जी कुछ जगहों पर भोजन का हिस्सा होती है।
प्रजाति एवं परिचय
ब्लैक नाइट(Black Night) एक सामान्य श्रेणी की झाड़ी होती है। यह जंगली और अशांत क्षेत्रों में पाई जाती है। इनके फूलों की पंखुड़ियां हरे और सफेद रंग की होती हैं। आगे चलकर यह गोलाकार आकृति में आ जाती हैं तथा पीले रंग के पराग कोशो का विकास हो जाता है। बेरी का व्यास 6 से 8 मिलीमीटर होता है। इनका रंग हल्का काला या बैंगनी रंग का होता है। भारत में एक और नस्ल की बेरी होती है, जो पकने पर लाल रंग की हो जाती है। तेज गर्मी और ज्यादा नम जगहों पर इसकी बढ़वार बहुत धीमी हो जाती है और उत्पाद की गुणवत्ता भी अच्छी नहीं होती।
उपयोग: भोजन और औषधि के रूप में ब्लैकबेरी के कई उपयोग हैं और अलग-अलग क्षेत्रों में इसके विविध उपयोग होते हैं।
1. भोजन के रूप में उपयोग
बहुत पुराने समय से ब्लैकबेरी का भोजन के रूप में इस्तेमाल होता रहा है। 15वीं शताब्दी में चीन में इसे 'अकाल का भोजन' नाम दिया गया था। इसके कुछ प्रारूप विषाक्त होने के बावजूद, पकी हुई बेरी और उसकी उबली हुई पत्तियां भोजन के रूप में खाई जाती थी। बेरी का स्वाद मीठा और नमकीन मिला-जुला होता है। उबली हुई पत्तियां थोड़ी कड़वी होती हैं इसलिए इनका उपयोग पालक की तरह खाना बनाने में होता है। भारत में बेरी का उत्पादन व्यवसाय के रूप से नहीं होता। दक्षिण भारत में यह बहुत प्रचलित है।
औषधीय उपयोग
ब्लैकबेरी पौधे के औषधियों में इस्तेमाल के बारे में लंबा इतिहास है। प्राचीन ग्रीस में 14वी शताब्दी में, पेट्टी मोरेल (Petty Morel) नाम के पौधे की चर्चा थी, जो नासूर और जलोदर के उपचार में प्रयोग होता था। यह एक पारंपरिक यूरोपियन दवाई थी लेकिन इसे खतरनाक भी माना जाता था। इसका प्रयोग हरपीज(Herpes) के उपचार में भी होता था। इस पर काफी असहमति है कि ब्लैकबेरी की पत्तियां और फल जहरीले होते हैं। क्योंकि बहुत से लोग इसे खाद्य फसल के रूप में उगाते हैं। हो सकता है कि क्षेत्र और प्रजातियों के अनुसार ब्लैकबेरी की विषाक्तता भी प्रभावित होती हो। पारंपरिक भारतीय औषधियों का यह एक महत्वपूर्ण हिस्सा है। इसे पेचिस, पेट संबंधी बीमारियों और बुखार के उपचार में इस्तेमाल करते हैं, इसके रस को अल्सर (Ulcer) और त्वचा संबंधी बीमारियों में भी प्रयोग किया जाता है। फल का प्रयोग टॉनिक (Tonic), कब्ज दूर करने, भूख बढ़ाने, दमा और ज्यादा प्यास के उपचार में प्रयोग होता है।
ब्लैकबेरी को संस्कृत में 'काकामाची' कहते हैं। आयुर्वेद के अनुसार काकामाची एक बेहतरीन पत्तेदार हरी सब्जी है। अच्छे स्वास्थ्य के लिए इसका सेवन घी में तलकर करना चाहिए। पूरा पौधा जड़, पकी हुई बेरी, बीज, पत्तियां और तने समेत आयुर्वेदिक दवाइयों में प्रयुक्त होता है।
सावधानी
काकामाची को हमेशा ताजा खाना चाहिए, इसमें एंटी एजिंग(एंटी-aging) तत्व होते हैं, लेकिन अगर इसे कुछ दिन रख कर बासी खाते हैं, तो यह जहरीला हो जाता है।
-वागभट के अष्टांग समग्रह से संकलित (ch. 7.243)
(इसका मतलब यह है कि जब बेरी और उसके पत्तियों को पकाएं तो उसे ताजा खाएं, इसे देर तक रखकर बाद में ना खाएं।)
सन्दर्भ:
https://en.wikipedia.org/wiki/Solanum_nigrum
https://bit.ly/31X94eR
https://vitalveda.com.au/2019/01/14/kakamachi/
चित्र सन्दर्भ:
मुख्य चित्र में ब्लैकबेरी नाइट्स (Blackberry Nights) के फलों को दिखाया गया है। (Wikimedia)
दूसरे चित्र में अपने हाथ में ब्लैकबेरी नाइट्स (Blackberry Nights) को दिखाता हुआ एक व्यक्ति। (Flickr)
तीसरे चित्र में ब्लैकबेरी नाइट्स (Blackberry Nights) के चिकने एवं चमकदार फल को दिखाया गया है। (Pngtree)
अंतिम चित्र में ब्लैकबेरी नाइट्स (Blackberry Nights) के फूल और पत्तियों को दिखाया गया है। (Wikimedia)